सैय्यद मोहम्मद अब्बास
लखनऊ। शिवपाल यादव की नई पार्टी प्रगतिशील समाजवादी लोहिया भी चुनावी दंगल में ताल ठोंकती दिख रही है। हालांकि यह बात सच है कि इस चुनाव में शिवपाल यादव शायद ही एक सीट जीत सके लेकिन वह सपा के लिए परेशानी का केंद्र बने हुए है। सपा-बसपा के जोड़ वह ठग गठबंधन कहते नजर आ रहे हैं लेकिन उनकी राजनीतिक करने के तरीके से कई लोग बेहद हैरान है। जहां एक ओर शिवपाल यादव सपा को कई मौकों पर अपने निशाने पर लेते हैं तो दूसरी ओर उनका मुलायम प्रेम भी किसी से छुपा नहीं है।
मुलायम से प्रेम लेकिन राम गोपाल से बैर
कहा जाता है राजनीति में न तो कोई सगा होता है और न ही कोई अपना। ऐसे में शिवपाल यादव राजनीति धर्म निभाने की बात तो करते हैं लेकिन उनके दांवे में सच्चाई दिखती नहीं है। उन्होंने पहले कन्नौज से डिंपल यादव के खिलाफ प्रत्याशी उतारा था लेकिन बाद में वहां से भी प्रसपा ने किनारा कर लिया था जबकि मैनपुरी से पहले अपने भाई की खातिर किसी को वहां नहीं उतारा है। धर्मेंद यादव को लेकर शिवपाल की सोच बदली हुई है और बदायूं से कोई प्रत्याशी प्रसपा का नहीं खड़ा हो रहा है, लेकिन सवाल यही है नई पार्टी बनाने के बाद शिवपाल यादव ने ऐलान किया था कि वह यूपी की सभी सीटों पर चुनाव लड़ेगे लेकिन चुनाव नजदीक आने के बाद उनकी पोल खुलती दिख रही है। परिवार के मोह में शिवपाल अपने कुनबे के प्रति वफादारी दिखा रहे हैं।
तीनों को चुनाव जीताने के लिए शिवपाल ने अपने प्रत्याशी नहीं उतारने का फैसला किया है लेकिन फिरोजाबाद में शिवपाल यादव अपने भतीजे अक्षय यादव को हराने के लिए पूरा जोर लगा रहे हैं। सियासी गलियारों में यह बात आम हो चुकी है कि रामगोपाल यादव बरगलाने पर अखिलेश ने शिवपाल से किनारा किया है। माना तो यह भी जाता है सपा में वचस्व की लड़ाई को जन्म देने के पीछे रामगोपाल यादव का हाथ था।
मुलायम की खातिर शिवपाल ने अपने करियर को लगाया दांव पर
मुलायम के खातिर शिवपाल यादव ने अपने राजनीतिक करियर को भी दांव पर लगा दिया था। मुलायम के सपने को पूरा करने के लिए शिवपाल यादव ने अपनी इच्छाओं को दरकिनार कर दिया था लेकिन इस चुनाव में अपनी नई पार्टी प्रसपा को पहचान दिलाने वाले शिवपाल यादव अब भी दिल से सपा को चाहते हैं।
चुनावी पिच पर शिवपाल यादव ने बड़ा दांव चलते हुए परिवार की खातिर कन्नौज और मैनपुरी से अपने प्रत्याशी नहीं उतारने का फैसला किया है जबकि बदायूं संसदीय सीट पर सपा प्रत्याशी एवं सांसद धर्मेंद्र यादव के लिए शिवपाल यादव ने रास्ता साफ कर दिया है। माना जा रहा है कि यहां से भी प्रसपा प्रत्याशी चुनावी मैदान में नजर नहीं आ रहा है। ऐसे में अब कहा जा रहा है कि शिवपाल परिवार के खातिर आजमगढ़ से शायद ही कोई प्रत्याशी मैदान में उतारे लेकिन अभी कहना जल्दीबाजी हो सकता है।
शिवपाल ने आखिर क्यों उठाया ये कदम
कहा तो यह भी जा रहा है कि शिवपाल यादव ने यह कदम सोच-समझकर उठाया है। माना जा रहा है कि चाचा और भतीजे भले ही एक दूसरे खिलाफ खड़े होते हुए नजर आये लेकिन अब भी शिवपाल यादव का सपा प्रेम जगजाहिर हो रहा है। जानकारों की मानें तो शिवपाल यादव सपा में अपने आगे के लिए कुछ संभवाना बचाकर रखना चाहते हैं।
सपा कुनबे में रार किसी से छुपी नहीं हैं
उत्तर प्रदेश में सपा परिवार में रार किसी से छुपी नहीं है। अखिलेश की अपने चाचा शिवपाल यादव से नहीं बनी। आलम तो यह रहा कि मामला इतना ज्यादा आगे बढ़ गया कि अंत ने शिवपाल ने सपा से किनारा कर लिया और नई पार्टी बनाकर अखिलेश को चुनौती देते नजर आ रहे हैं।