Monday - 8 January 2024 - 9:44 PM

क्या है अविश्वास प्रस्ताव, जिस पर आज से 3 दिनों तक होगी बहस, फिर वोटिंग

जुबिली न्यूज डेस्क

मणिपुर की स्थिति को लेकर संसद के मानसून सत्र में 26 जुलाई को विपक्षी दलों के गठबंधन इंडिया ने अविश्वास प्रस्ताव पेश किया था. जिसे स्पीकर ने मंजूर कर लिया था. इसी के तहत  8 अगस्त से तीन दिनों तक इस पर बहस चलेगी और अंतिम दिन वोटिंग होगी.लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा 8 अगस्त को दोपहर 12 बजे शुरू होगी. एक ही दिन पहले लोकसभा में अपनी सदस्यता बहाल करने वाले राहुल गांधी पहले दिन इस चर्चा में हिस्सा लेते हुए संबोधित करेंगे.

बता दे कि ये चर्चा 8 अगस्त को शाम 7 बजे तक जारी रहेगी. फिर ये 9 अगस्त को फिर शुरू होगी. इसका आखिरी दिन 10 अगस्त को होगा. वोटिंग होने से पहले आखिरी दिन शाम 4 बजे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपना आखिरी भाषण इसमें देंगे. हालांकि विपक्ष का कहना है कि वह इस बार अविश्वास प्रस्ताव को हार जीत के लिए लेकर नहीं लाया है बल्कि चाहता है कि मणिपुर को लेकर सदन में समुचित चर्चा हो और प्रधानमंत्री इस पर बोलें.

अविश्वास प्रस्ताव क्या है

अब जानते हैं कि अविश्वास प्रस्ताव क्या है और इस बार सदन में इसका गणित क्या है. आजाद भारत में सरकारों के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव अक्सर लाए जाते रहे हैं. इससे सरकार और विपक्ष दोनों अपनी मजबूती की परख करते हैं. हालांकि ये प्रस्ताव एक प्रक्रिया के तहत ही लाया जा सकता है. बगैर इसके अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाया जा सकता. क्या है ये प्रक्रिया. कैसे संसद में ये प्रस्ताव पेश होता है.

किस तरह लाया जाता है अविश्वास प्रस्ताव

सबसे पहले विपक्षी दल या विपक्षी गठबंधन को लोकसभा अध्यक्ष या स्पीकर को इसकी लिखित सूचना देनी होती है. इसके बाद स्पीकर उस दल के किसी सांसद से इसे पेश करने के लिए कहते हैं.जब किसी दल को लगता है कि सरकार सदन का विश्वास या बहुमत खो चुकी है. तब वो अविश्वास प्रस्ताव पेश कर सकता है. अविश्वास प्रस्ताव को तभी स्वीकार किया जा सकता है, जब सदन में उसे कम से कम 50 सदस्यों का समर्थन हासिल हो. अगर लोकसभा अध्यक्ष या स्पीकर अविश्वास प्रस्ताव को मंजूरी दे देते हैं, तो प्रस्ताव पेश करने के 10 दिनों के अदंर इस पर चर्चा जरूरी है. इसके बाद स्पीकर अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में वोटिंग करा सकता है या फिर कोई फैसला ले सकता है. ये संवैधानिक व्यवस्था है. नियम 198 के तहत सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लोकसभा से ही लाया जा सकता है. राज्यसभा से नहीं.

मोदी सरकार के खिलाफ कितने अविश्वास प्रस्ताव

ये दूसरी बार होगा जबकि मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया जा रहा है. पहली बार ये वर्ष 2018 में लाया गया था. तब नरेंद्र मोदी सरकार इस प्रस्ताव के खिलाफ जीत में सफल रही थी. प्रस्ताव के पक्ष में तब 126 वोट लोकसभा में पड़े थे जबकि विपक्ष में 325 वोट.

लोकसभा में सीटों की स्थिति

अभी लोकसभा में बीजेपी के 301 सांसद हैं लेकिन अगर एनडीए गठबंधन की बात करें तो इस गठबंधन के पास लोकसभा में कुल 332 सांसद हैं. इस गठबंधन में लोकसभा में बीजेपी को लेकर 12 पार्टियां हैं और 3 निर्दलीय सदस्य वहीं  कांग्रेस के 49 सांसद हैं तो विपक्ष के नए बने गठबंधन इंडिया के कुल मिलाकर लोकसभा में 141 सांसद हैं. इस गठबंधन में लोकसभा में 15 दलों के सांसद हैं. वैसे लोकसभा में विपक्षी सांसदों की संख्या 205 है लेकिन कई विपक्षी दल इस अविश्वास प्रस्ताव में शामिल नहीं हैं.

क्या मोदी सरकार को खतरा है?

नहीं, मोदी सरकार को खतरा नहीं लगता, क्योंकि उनके पास बीजेपी के 301 सांसद हैं. लोकसभा में बहुमत के लिए 272 सीटों की जरूरत होती है. ऐसे में इनके दम पर बीजेपी अकेले ही सरकार बना सकती है.

कितनी बार अविश्वास प्रस्ताव आ चुके हैं

संसद में 27 से ज्यादा बार अविश्वास प्रस्ताव रखे जा चुके हैं. ये 28वां मौका है. 1978 में ऐसे ही एक प्रस्ताव ने मोरारजी देसाई सरकार को गिरा दिया था,  हालांकि मोरारजी देसाई ने विश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग से पहले ही इस्तीफा दे दिया था.  सबसे ज़्यादा या 15 अविश्वास प्रस्ताव इंदिरा गांधी की कांग्रेस सरकार के ख़िलाफ़ आए.

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किन तरीकों से लाया जा सकता है अविश्वास प्रस्ताव 

ध्वनि वोट – सांसद ध्वनि वोट इस पर पक्ष या विपक्षी नजरिया पेश कर सकते हैं

वोटों के बंटवारे से – ऐसे में अगर वोटों के बंटवारे की व्यवस्था होती है तो इलैक्ट्रॉनिक मशीन, स्लिप्स या बैलेट बॉक्स की मदद ली जाती है.

बैलेट वोट – जब अविश्वास प्रस्ताव में बैलेट बॉक्स का इस्तेमाल होता है तो इसका मकसद ये होता है कि सांसद गुप्त तरीके से वोट कर सकें. जैसे लोकसभा या विधानसभा चुनावों में जनता करती है.

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सांसदों को अविश्वास प्रस्ताव पर कितना समय मिलता है 

इस बार अविश्वास प्रस्ताव पर बहस करीब तीन दिन चलती है. आमतौर पर बहस से पहले स्पीकर के पास सभी सियासी दलों से वो लिस्ट पहुंचती है, जिसमें वो अपने उन नेताओं को अधिकृत करते हैं, जिन्हें बोलना होता है.फिर जब ये लिस्ट स्पीकर के पास पहुंच जाती है तो वह तय करते हैं कि किसे कितना समय देना है.

हालांकि सियासी दल भी जब लिस्ट भेजते हैं तो इसमें वो भी अपने कुछ नेताओं को बोलने के लिए ज्यादा समय देने का आग्रह करते हैं. आमतौर पर विपक्षी दलों के मुख्य नेताओं को बोलने के लिए 30 मिनट तक का समय मिलता है तो अन्य नेताओं को 10-15 मिनट का. प्रधानमंत्री का बोलने का कोई समय तय नहीं होता, वो अपनी मर्जी से कितने भी समय तक बोल सकते हैं.

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