जुबिली न्यूज डेस्क
पश्चिमी देशों में यूक्रेन पर रूस के हमले को लेकर भारत के रुख की चर्चा खूब हो रही है। दरअसल अमेरिका और यूरोप के देश चाहते है कि यूक्रेन पर हमले के मामले में रूस को अलग-थलग करने में भारत भी संयुक्त राष्ट्र में साथ दे।

लेकिन भारत ने अब तक इस मामले में किसी पक्ष के साथ दूरी बनाकर रखी है। यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में रूस के खिलाफ प्रस्ताव पर दो बार वोटिंग हुई और दोनों पर भारत वोटिंग से बाहर रहा है।
भारत के अलावा चीन और यूएई भी वोटिंग से बाहर रहे हैं।
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दरअसल रूस के वीटो करने के बाद यह प्रस्ताव अब संयुक्त राष्ट्र की आम सभा में लाया गया है। यहां बहुमत से प्रस्ताव पास हो सकता है। यहां भारत क्या करेगा, इसकी चर्चा गर्म है।
जानकारों का कहना है कि भारत यहां भी वोटिंग में न तो अमेरिका के नेतृत्व वाले प्रस्ताव के समर्थन में वोट करेगा और न ही विरोध में, लेकिन भारत को अपने खेमे में लाने की कोशिश पश्चिम के देश और रूस दोनों कर रहे हैं।
इतना ही नहीं जर्मनी के विदेश मंत्री ने भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर को फोन किया था और उनसे रूस को अलग-थलग करने की अपील भी की थी।

भारत में जर्मनी के राजदूत वॉल्टर लिंडर ने अंग्रेजी अखबार द हिन्दू से कहा है कि उन्हें अब भी उम्मीद है कि भारत यूएन में वोटिंग को लेकर अपना रूख बदलेगा।
वहीं रूस का कहना है कि पिछले दो दशकों में नेटो के पूर्वी यूरोप में विस्तार के कारण समस्याएं पैदा हुई हैं। 1997 से नेटो पूरब की तरफ 14 देशों तक पहुंचा और इन देशों से रूस बिल्कुल करीब है।
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दरअसल रूस नेटों को अपनी सुरक्षा को लेकर खतरे के तौर पर देखता है। एक सवाल के जवाब में जर्मनी के राजदूत ने कहा है, ”इसमें कुछ भी सच्चाई नहीं है। केवल झूठी बातें और झूठे नैरेटिव गढ़े जा रहे हैं। जाहिर है कि जब आप शांतिपूर्ण पड़ोसी पर हमला करते हैं तो इस तरह के बहाने बनाने पड़ते हैं। इन तर्कों में कोई सच्चाई नहीं है। यह किसी देश का फैसला होता है कि वह नेटो में शामिल होना चाहता है या नहीं। यूक्रेन के मामले में तो इस तरह का कोई प्रस्ताव भी नहीं था। यह यूरोप की शांति पर हमला है।”
Here’s today’s interview in the Hindu (with Suhasini Haidar, National & Dipl Editor), full text online pic.twitter.com/s1J22OjgJZ
— Walter J. Lindner (@AmbLindnerIndia) March 1, 2022
जर्मनी के विदेश मंत्री ने भारत के विदेश मंत्री से बात की है। क्या यूक्रेन के मामले में भारत जर्मनी के रूख के साथ आने को तैयार है? इस सवाल के जवाब में जर्मन राजदूत ने कहा, ”मुझे लगता है कि इस सवाल का जवाब भारतीय डिप्लोमौट ज्यादा ठीक से देंगे। उन्हें ही फैसला करना है कि वे क्या चाहते हैं, लेकिन इतना तय है कि हम सभी अंतरराष्ट्रीय नियमों की वकालत करते हैं और क्षेत्रीय अखंडता के साथ संप्रभुता के उल्लंघन का विरोध करते हैं। भारत भी इससे लेकर असहमत नहीं है। यूक्रेन भले भारत से दूर है लेकिन अन्याय की दस्तक एक जगह तक सीमित नहीं होती है।”
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एक अन्य सवाल, कहा जा रहा है कि पश्चिम के देशों के दोहरे मानदंड होते हैं क्योंकि अमेरिका ने 2003 में इराक पर हमला किया तो इस तरह की निंदा नहीं की गई। इस पर जर्मन राजदूत ने कहा, ”जर्मनी और फ्रांस इराक पर हमले के पक्ष में नहीं थे। हम अमेरिका से सहमत नहीं थे।”
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