Sunday - 7 January 2024 - 3:11 AM

बंगाल चुनाव में क्‍यों अहम है मतुआ समुदाय

जुबिली न्‍यूज डेस्‍क

बिहार चुनाव के शोर के बीच बीजेपी के पूर्व अध्‍यक्ष और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह इन दिनों मिशन बंगाल पर हैं। आज उनके दौरे का दूसरा दिन है। बीजेपी के चाणक्‍य कहे जाने वाले अमित शाह बंगाल में ममता को किले का ध्‍वस्‍त करने के लिए पूरी रणनीति के साथ दौरा कर रहे हैं।

अमित शाह आज न्यूटाउन स्थित मतुआ समुदाय के मंदिर में जाएंगे। इसके बाद वो मतुआ समुदाय के एक परिवार के घर जाएंगे और खाना खाएंगे। अमित शाह के स्वागत की जोरदार तैयारी की जा रही है।

मतुआ समुदाय यानी कि बंगाल में एससी आबादी का दूसरा सबसे बड़ा हिस्सा। वर्ष 2019 के दिसंबर महीने में सीएए बिल पास किया गया जिससे बांग्लादेश, अफगानिस्तान, पाकिस्तान व अन्य पड़ोसी देशों से आये शरणार्थियों को नागरिकता मिलने वाली है।

Amit Shah Bengal Visit second day updates: अमित शाह के बंगाल दौरे का दूसरा दिन, ममता की बढ़ी टेंशन

बंगाल में मतुआ समुदाय का वोट अत्यंत अहम है। इसका कारण है यहां लगभग 72 लाख मतुआ समुदाय के लोग रहते हैं जिन्हें किसी तरह का झुनझुना नहीं, केवल नागरिकता चाहिये। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में मतुआ समेत अन्य शरणार्थियों का समर्थन बीजेपी को मिला था। ऐसे में तृणमूल और बीजेपी दोनों के लिए ही 2021 के विधानसभा चुनाव से पहले मतुआ वोट कितना अहम है, इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है।

वर्ष 2001 की गणना के अनुसार, बंगाल की 1.89 करोड़ एससी आबादी में 33.39 लाख अथवा 17.4 प्रतिशत आबादी नमोशूद्र है। कहा जाता है कि नमोशूद्र की आधी आबादी मतुआ समुदाय की है। धार्मिक प्रताड़ना के कारण वर्ष 1950 से मतुआ बंगाल में आ गये।

ये भी पढ़े: अब भारत में वॉट्सऐप से कर सकेंगे पेमेंट, जानें कैसे होगा

ये भी पढ़े: SC/ST पर टिप्पणी को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

अमित शाह थोड़ी देर में पहुंचेंगे मतुआ समुदाय के मंदिर, स्वागत की जबरदस्त तैयारी - Amit Shah West bengal Visit Matua Community north 24 parganas - AajTak

मतुआ संप्रदाय वर्ष 1947 में देश विभाजन के बाद हिंदू शरणार्थी के तौर पर बांग्लादेश से यहां आया था। 2011 के जनगणना के अनुसार बंगाल में अनुसूचित जाति की आबादी 1.84 करोड़ है जिसमें मतुआ संप्रदाय की आबादी तकरीबन आधा है। यद्यपि कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं है, लेकिन मतुआ संप्रदाय को लगभग 70 लाख की जनसंख्या के साथ बंगाल का दूसरा सबसे प्रभावशाली अनुसूचित जनजाति समुदाय माना जाता है।

पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी को समर्थन देने के बाद अब मतुआ समुदाय के लोग नागरिकता देने की मांग कर रहे हैं। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल लोकसभा चुनाव के दौरान मतुआ समुदाय के 100 साल पुराने मठ बोरो मां बीणापाणि देवी से आशीर्वाद प्राप्त करके अपने बंगाल चुनाव अभियान की शुरुआत की थी।

पश्चिम बंगाल: कौन है मतुआ संप्रदाय? जिसे शाह-ममता-मोदी सभी लुभाने की कर रहे कोशिश - The Matua factor in Battle for West Bengal Amit Shah PM Modi Mamta Banerjee BJP TMC -

ममता बनर्जी के वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए यह बहुत सधी हुई चाल थी। इसके तहत भारतीय जनता पार्टी ने बोरो मां के पोते शांतनु ठाकुर को बोंगन लोकसभा सीट से उतारा। मतुआ वोट पाने की यह रणनीति काम कर गई।

इस सीट पर बीजेपी ने पहली बार जीत दर्ज की।यही वजह है कि अमित शाह अपने दो दिवसीय पश्चिम बंगाल यात्रा के दौरान अपने बिजी शेड्यूल से समय निकालकर भी मतुआ समुदाय के लोगों से मिलने वाले हैं।

बता दें कि मतुआ समुदाय के लोग पूर्वी पाकिस्तान से आते हैं और नागरिकता संशोधन कानून के तहत नागरिकता देने की मांग करते रहे हैं। माना जाता है कि 2019 में इस समुदाय के लोग बीजेपी के साथ थे, लेकिन फिलहाल उनके युवा सांसद शांतनु ठाकुर इस कानून को लेकर नाराज हैं। ऐसे में अमित शाह मतुआ परिवार के साथ खाना खाकर अपनापन जताना चाहते हैं।

मतुआ की महारानी वीणापाणि देवी का निधन, पीएम मोदी मानते थे आदर्श । Matua Matriarch Binapani Devi Dies at 100, PM Modi Calls Her an Icon Personal Loss for Mamata Banerjee

इधर ममता बनर्जी ने भी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर बुधवार को 25,000 शरणार्थी परिवारों को भूमि के अधिकार प्रदान किए हैं। ममता बनर्जी ने मतुआ विकास बोर्ड और नामशूद्र विकास बोर्ड के लिए क्रमश: 10 करोड़ और पांच करोड़ रुपये आवंटित किए हैं।

हरिचंद ठाकुर के वंशजों ने मतुआ संप्रदाय की स्थापना की थी। नॉर्थ 24 परगना जिले के ठाकुर परिवार का राजनीति से लंबा संबंध रहा है। हरिचंद के प्रपौत्र प्रमथ रंजन ठाकुर 1962 में कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में पश्चिम बंगाल विधान सभा के सदस्य बने थे।

ये भी पढ़े:  इस दीवाली ग्रीन पटाखे, न माने तो चलेगा मुकदमा

ये भी पढ़े: किसानों के हित में यूपी सरकार का बड़ा निर्णय

प्रमथ की शादी बीणापाणि देवी से 1933 में हुई। बीनापाणि देवी को ही बाद में ‘मतुआ माता’ या ‘बोरो मां’ (बड़ी मां) कहा गया। बीनापाणि देवी का जन्म 1918 में अविभाजित बंगाल के बारीसाल जिले में हुआ था। आजादी के बाद बीणापाणि देवी ठाकुर परिवार के साथ पश्चिम बंगाल आ गईं।

मतुआ की महारानी वीणापाणि देवी का निधन, पीएम मोदी मानते थे आदर्श । Matua Matriarch Binapani Devi Dies at 100, PM Modi Calls Her an Icon Personal Loss for Mamata Banerjee

प्रमथ रंजन ठाकुर की विधवा शतायु बीणापाणि देवी आखिर तक इस समुदाय के लिए भाग्य की देवी बनी रही। हाल के दिनों में ठाकुर परिवार के कई सदस्यों ने राजनीति में अपना भाग्य आजमाया है और मतुआ महासंघ में अपनी प्रतिष्ठा का इस्तेमाल किया है।

नामशूद्र शरणार्थियों की सुविधा के लिए बीनापाणि देवी ने अपने परिवार के साथ मिलकर वर्तमान बांग्लादेश के बॉर्डर पर ठाकुरगंज नाम की एक शरणार्थी बस्ती बसाई। इसमें सीमापार से आने वालों खासतौर पर नामशूद्र शरणार्थियों को रखने का इंतजाम किया गया।

मतुआ परिवार ने अपने बढ़ते प्रभाव के चलते राजनीति में एंट्री ली। 1962 में परमार्थ रंजन ठाकुर ने पश्चिम बंगाल के नादिया जिले की अनुसूचित जनजाति के लिए रिजर्व सीट हंसखली से विधानसभा का चुनाव जीता. मतुआ संप्रदाय की राजनैतिक हैसियत के चलते नादिया जिले के आसपास और बांग्लादेश के सीमावर्ती इलाके में मतुआ संप्रदाय का प्रभाव लगातार मजबूत होता चला गया।

Mamata Announces New University For Matua Community In Bengal - मतुआ समुदाय के संस्थापक के नाम पर ममता बनाएंगी विश्वविद्यालय | Patrika News

प्रमथ रंजन ठाकुर की सन 1990 में मृत्यु हो गई। इसके बाद बीनापाणि देवी ने मतुआ महासभा के सलाहकार की भूमिका संभाली। संप्रदाय से जुड़े लोग उन्हें देवी की तरह मानने लगे। 5 मार्च 2019 को मतुआ माता बीनापाणि देवी का निधन हो गया। प. बंगाल सरकार ने उनका अंतिम संस्कार पूरे आधिकारिक सम्मान के साथ करवाया।

माता बीनापाणि देवी की नजदीकी साल 2010 में ममता बनर्जी से बढ़ी। बीनापाणि देवी ने 15 मार्च 2010 को ममता बनर्जी को मतुआ संप्रदाय का संरक्षक घोषित किया। इसे औपचारिक तौर पर ममता बनर्जी का राजनीतिक समर्थन माना गया। ममता की तृणमूल कांग्रेस को लेफ्ट के खिलाफ माहौल बनाने में मतुआ संप्रदाय का समर्थन मिला और 2011 में ममता बनर्जी प. बंगाल की चीफ मिनिस्टर बनीं।

साल 2014 में बीनापाणि देवी के बड़े बेटे कपिल कृष्ण ठाकुर ने तृणमूल कांग्रेस के टिकट पर बनगांव लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और संसद पहुंचे। कपिल कृष्ण ठाकुर का 2015 में निधन हो गया. उसके बाद उनकी पत्नी ममता बाला ठाकुर ने यह सीट 2015 उपचुनावों में तृणमूल कांग्रेस के टिकट पर जीती।

Mission Bengal Mamata played bets before Shahs visit land lease handed over to 25 thousand tribals and refugees

मतुआ माता के निधन के बाद परिवार में राजनैतिक बंटवारा खुलकर दिखने लगा। उनके छोटे बेटे मंजुल कृष्ण ठाकुर ने बीजेपी का दामन थाम लिया। 2019 में मंजुल कृष्ण ठाकुर के बेटे शांतनु ठाकुर को बीजेपी ने बनगांव से टिकट दिया। वह सांसद बन गए।

अब देखना ये होगा कि आगामी विधानसभा चुनाव में मतुआ समुदाय का झुकाव किस ओर होता है। क्‍या सीएए लागू कर बीजेपी इस समुदाय के लोगों को अपने पाले में कर लेती है या फिर ममता बनर्जी को उनकी ममता मिलेगी।

Radio_Prabhat
English

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com