Sunday - 7 January 2024 - 9:13 AM

तो इस वजह से दब जाती है किसानों की आवाज !

अविनाश भदौरिया

बिहार में चुनाव का शंखनाद हो गया है। निर्वाचन आयोग ने चुनाव की तारीखों का ऐलान कर दिया है। तीन चरणों में 28 अक्टूबर, 3 नवम्बर और 7 नवम्बर को वोट डाले जाएंगे। चुनावी एलान और किसान आंदोलन के बीच बिहार के किसानों के लिए एक निराश होने वाली खबर है। इस साल भी यहां मक्के की खरीद न्यूनतम समर्थन मूल्य पर नहीं होगी। केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने बताया है कि बिहार सरकार ने चालू वर्ष के लिए मक्के की खरीद के लिए कोई प्रस्ताव नहीं भेजा है। इसलिए भारत सरकार ने बिहार में मक्के की खरीद के लिए किसी प्रस्ताव को मंजूरी नहीं दी है।

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इस समय देश के कई हिस्सों में एमएसपी की ही मांग को लेकर किसान आंदोलन हो रहा है। केंद्र सरकार द्वारा हाल में लाए गए कृषि बिल को लेकर किसान विरोध में हैं। हालांकि बिहार में अभी इसे लेकर बड़ा आंदोलन देखने को नहीं मिला है। इस चुनावी मौसम में कृषि बिल बिहार में अहम मुद्दा हो सकता है लेकिन ऐसा कोई माहौल बनता नहीं दिख रहा।

आखिर ऐसा क्यों है कि जब किसान सड़कों पर है फिर भी सरकारों को कोई फर्क नहीं पड़ रहा। भारत में सबसे बड़ी संख्या किसानों की ही है और देश की अर्थव्यवस्था से लेकर राजनीतिक व्यवस्था तक में सबसे अहम भूमिका यही किसान निभाते हैं फिर भी उनकी आवाज दबी क्यों रह जाती है।

इस सवाल का जवाब देते हुए भारतीय किसान यूनियन लोकतांत्रिक संगठन के प्रदेश प्रवक्ता मनीष यादव ने बताया कि, किसानों की इस दुर्दशा के पीछे विभिन्न राजनीतिक दल और उनके छोटे-छोटेकिसान संगठन हैं। उन्होंने बताया कि, आज किसान इतना बंटा हुआ है कि वो संगठित होकर अपने हक़ की लड़ाई भी नहीं लड़ पा रहा।

उन्होंने बताया कि मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार की तुलना में पंजाब और हरियाणा के किसान अभी भी संगठित हैं और वहां के बड़े किसान हैं जिसकी वजह से उस क्षेत्र में तो किसानों के आन्दोलन सफल रहते हैं लेकिन यहां वही आन्दोलन असफल हो जाते हैं।

मनीष यादव ने कहा कि, वह इसके लिए प्रयास भी कर रहे हैं कि देशभर के किसान संगठन एकजुट होकर साथ आयें ताकि किसानों के खिलाफ हो रहे अन्याय को रोका जा सके। मनीष कहते हैं कि जब राजनीतिक दल आपस में गठबंधन कर सकते हैं तो फिर किसानों के संगठन साथ क्यों नहीं आ सकते।

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बता दें कि बिहार ने 2006 में एपीएमसी को निरस्त करने के बाद सभी कृषि विपणन बोर्डों को भंग कर दिया गया था। नीतीश कुमार ने दावा किया था कि इससे खरीद में सुधार हुआ था लेकिन किसानों की हालत सुधरने की बजाय बिगड़ती ही गई। हाल ही में इसी मुद्दे को लेकर राजद ने नीतीश कुमार पर हमला भी किया था। आपको याद हो तो कुछ दिनों पहले ही पीएम मोदी ने भी कहा था कि केंद्र ने कृषि सुधार बिल के लिए बिहार मॉडल का पालन किया है।

फ़िलहाल एनडीए एक बार फिर से बिहार में सरकार बनाने के लिए आश्वस्त नजर आ रहा है। वहीं कांग्रेस ने कहा है कि वह चुनाव में कृषि बिल के मुद्दे पर किसानों से वोट मांगेगी। अब देखना यह है कि चुनाव में किसान किसका साथ देता है और किसका नहीं ?

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