Wednesday - 10 January 2024 - 1:20 PM

रूढ़ियां तोड़ती गांव की बेटियां

 

रूबी सरकार

रोहिणी शर्मा, मनवार वर्मा, पिंकी वर्मा और कृष्णा यादव यह चार सहेलियां श्योपुर जिले के कराहल विकास खण्ड के अलग-अलग गांव की हैं। इनमें खास बात यह है, कि चारों ने बीए पास करने के बाद गांव में ही रहकर काम करने का मन बनाया।

इनकी यह इच्छा तब पूरी हुई, जब बुंदेलखण्ड और ग्वालियर-चम्बल इलाके में काम करने वाली एक सामाजिक संस्था परमार्थ समाज सेवी संस्थान ने इन्हें अवसर दिया। इन महिलाओं में दो पिछड़ी और दो सामान्य जाति की है। परंतु घर पर रूढ़िवादी सोच सबकी एक जैसी ही है।

दरअसल पानी, आजीविका, पर्यावरण तथा महिला सषक्तिकरण को लेकर लगभग ढाई दशक से इन क्षेत्रों में काम रही इस संस्था ने जब कराहल विकास खण्ड में अपना काम शुरू किया, तो उनके मन में यही था, कि महिला सशक्तिकरण की दिशा में काम करना है, तो गांव की महिला ही होनी चाहिए, जो थोड़ी पढ़ी-लिखी  और महिला सशक्तिकरण की समझ रखती हो।

जीआईजेड के सहयोग से काम कर रही संस्था के सचिव संजय सिंह ने बताया, कि गांव की महिलाएं गांव की समस्याओं से अच्छी तरह परिचित होती है। इससे हमारा काम थोड़ा आसान हो जाता है। जब हमने नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू की, तो सैकड़ों के बीच हमें बिल्कुल वैसी चार पढ़ी-लिखी लड़कियां मिल गई। जिनकी रूचि और जज्बा देखकर मैंने इन चारों को दो-दो गांव की जिम्मेदारी सौंप दिया। मुझे खुशी है, कि यह लड़कियां बिल्कुल मेरे सपनों के मुताबिक खरी उतरीं। मामूली मानदेय में इनलोगों ने बहुत कम दिनों में ही अपने-अपने गांव की दशा और दिशा बदल दी।

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जब  मैंने इन चारों से बात की, तो उनके जवाब सुनकर स्वयं को इतना छोटा महसूस करने लगी, कि सवाल पूछने की हिम्मत ही नहीं हो रही थी। हमने सोचा, हम जिस कमेंटमेंट के साथ पत्रकारिता में आते हैं, क्या वह पूरा कर पाते है! लड़कियों ने कहा, पढ़-लिख कर अगर आप अपने घर और गांव का वातावरण न बदल पाये, तो आपका पढ़ना-लिखना बेकार है। पैसे तो सभी कमा लेते है, लेकिन समाज में बदलाव लाने के लिए कितने लोग प्रयास करते हैं। उन्होंने कहा, हमारी समझ से बड़े होने से बेहतर है एक अच्छा इंसान होना।

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खुशियां छोटी-छोटी चीजों में छिपी होती है। जितना हो सके समाज का भला करना चाहिए और इसकी शुरूआत अपने गांव से ही की जानी चाहिए ।गांव के पुरूषों द्वारा लगातार दुत्कारे जाने के बावजूद  इनलोगों ने हिम्मत नहीं हारी । आखिर वह दिन भी आया, जब इनलोगों ने अपने-अपने गांवों में दस-दस महिलाओं का समूह खड़ा कर लिया।

मनवार बताती है, कि महिलाओं के साथ काम करने के लिए सबसे पहले उन्हें घर के चौखट से बाहर निकालना पड़ता है, जो पुरूषों को कभी मान्य नहीं होता। महानगरों की बात और है, वहां महिलाओं को कानून के बारे में पता होता है, लेकिन गांव में अभी भी पुरूष जो कहे, वही कानून है। इस सोच को तोड़ना बहुत मुश्किल था।

वहीं रोहिणी महात्मा गांधी के विचारों से इतनी प्रभावित है, कि  बड़ी आत्मीयता के साथ कहती है, कि जीवन की जरूरतें जितनी कम हो सके रखनी चाहिए। महिलाओं को जागरूक करने के अलावा बाकी बचे समय में रोहिणी पर्यावरण के लिए छोटे स्तर पर काम करती है।

पिंकी बताती है, कि जब हमने काम शुरू किया था, तब हालात ऐसे नहीं थे लोगों के असहयोग की प्रवृत्ति से हमें बहुत सारी कठिनाइयों का सामना करना पड़़ा था। यहां तक कि जब हमलोग मुख्यमंत्री से मिलने भोपाल गये, तो गांव वालों ने फैलाया, कि यह सब बदचलन है। लेकिन हमलोग आशावादी थे, इसलिए तमाम कठिनाइयों के बावजूद अपने लक्ष्य को जिंदा रखा। पिंकी अपने अनुभव साझा करते हुए बताती है, कि पुरूष हमेशा महिला के सामाजिक योगदान  पर निष्क्रियता की मोहर लगा देते हैं, जबकि सच्चाई यह है, कि उन्हें मौका ही नहीं दिया जाता।

गांव में कभी भी महिलाओं को सामाजिक रूढि़यों से अलग करने र्की कोशिश नहीं होती। जब तक महिलाएं सामाजिक रूढि़यों से अलग नहीं होंगी, तब तक पूरी तरह से उनका सशक्तिकरण नहीं होगा। परिवार और समाज की ओर से उन्हें आगे लाने का जो समर्थन मिलना चाहिए , वह उन्हें आज भी नहीं मिलता है।

यह काम सरकारी स्तर पर तो नहीं हो सकता, क्योंकि सरकार का प्रयास राजनीतिक स्तर पर हो सकता है, परंतु सामाजिक जागरुकता बढ़ाने का काम गैर सरकारी स्तर पर करना होगा।

कृष्णा बताती है, कि कराहल में हमलोगों ने अपने-अपने घर के पास वाले गांव को चुना।  हमने पर्तवाड़ा और निमानियां, पिंकी वर्मा ने बनार , बरगुंआ, रोहिणी ने रासौन , किरकिरी और मनवार वर्मा ने सिलपुर और पनवाड़ा । इस तरह कुल आठ गांवों में हमलोगों ने आठ समूह बनाया। प्रत्येक समूह में दस-दस महिलाएं हैं। यानी कुल 80 महिलाओं को हमलोगों ने अपने साथ जोड़कर उनके आजीविका और बच्चों की देखभाल का प्रशिक्षण दिया।

आज यह महिलाएं आपस में लेन-देन करती हैं,बाजार जाकर खाद -बीज खरीदती है। एक-एक पैसे का हिसाब रखती हैं और बैंक में रूपये जमा और निकालने के लिए स्वयं जाती है। इन्हें कुपोषित बच्चों का देखभाल , बच्चे को कब-कब टीका लगना है यह सब उन्हें मालूम है। गर्भवती महिलाओं की सूचना आंगनबाड़ी में देना और उनके स्वास्थ्य की देखभाल के प्रति भी गांव की महिलाएं जागरूक हुई हैं।अब इनके जीवन में घरेलू हिंसा जैसी कोई बात नहीं है। वर्तमान में ये 80 महिलाएं गांव की अन्य महिलाओं को प्रेरित कर रही

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