Friday - 16 May 2025 - 1:26 PM

UP : कम पानी, ज़्यादा उपज! किसानों के लिए आई सुनहरी योजना

  •  बेहतर होगा जमता एक साथ ही पकेगी फसल, उपज भी बढ़ जाएगी
  •  शर्त ये है कि आप लेजर लैंड लेवलर से खेत को लेवल कराएं
  •  योगी सरकार लेजर लेवलर पर दे रही 50 फीसद या अधिकतम दो लाख रुपए तक अनुदान
  •  खेत को लेवल करने की आधुनिक मशीन जीपीएस से है लैश

लखनऊ। “खेत का पानी खेत में”, इसकी महत्ता से हर किसान वाकिफ है। दरअसल खेत में लंबे समय तक नमी बनी रहे। तेज बारिश के दौरान खेत के उपजाऊं मिट्टी की परत का अपरदन (इरोजन) न हो। खेती की जरूरत के बाद अवशेष पानी भूगर्भ में जाकर आसपास के ताल, पोखरों और कुओं के जलस्तर को बनाए रखे। मोटी मोटा खेत का पानी खेत में रखने की यही महत्ता है।

खेत का पानी खेत में ही रहे इसके लिए इसी सीजन में नियमित अंतराल पर कुछ जरूरी कृषि कार्य करने होते हैं। मसलन खेत की मजबूत और ऊंची मेडबंदी, गर्मी में गहरी जोताई।

गहरी जोताई पर खेतीबाड़ी के संबंध सटीक पूर्वानुमान और सलाह देने वाले महाकवि घाघ ने कहा है, “जेतना गहिरा जोते खेत, बीज परे फल अच्छा देत”।

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मेडबंदी एवं गहरी जोताई के बाद तीसरी महत्वपूर्ण चीज है, खेत की लेवलिंग (समतलीकरण)। अमूमन किसान इस काम की अनदेखी करते हैं। जबकि कई वजहों से यह सबसे महत्वपूर्ण कृषि कार्यों में से एक है। ‘लेजर लैंड लेवलर’ (खेत को समतल कराने वाली आधुनिक मशीन) ने इसे आसान और प्रभावी कर दिया है।

योगी सरकार इस मशीन पर 50% या अधिकतम दो लाख रुपए तक का अनुदान भी दे रही है। साथ ही रबी और खरीफ के सीजन में होने वाली मंडलीय गोष्ठियों और खेतीबाड़ी से जुड़े अन्य कार्यक्रमों में विभाग के एक्सपर्ट्स इस बारे में किसानों को जागरूक भी कर रहे हैं।

इस आधुनिक मशीन से लेवल्ड खेत फुटबाल के एक अच्छे मैदान जैसा बराबर होगा। बराबर हुए आपके खेत की सिंचाई में सिर्फ आधा पानी लगेगा। मेड़ों एवं नालियों की संख्या कम होने से खेत का रकबा करीब 3-6 फीसद तक बढ़ जाएगा। आधुनिक कृषि यंत्रों (सीड ड्रिल, रेज्ड बेड आदि)का प्रयोग आसान एवं प्रभावी होने से घटी लागत में भी विभिन्न फसलों की उपज अच्छी खासी बढ़ जाएगी। मसलन धान की फसल की उपज करीब 61 फीसद और गन्ने एवं गेहूं की उपज क्रमश: 40 फीसद तक बढ़ सकती है।

जीपीएस सिस्टम से लैश होती है यह मशीन

दरअसल खेत को लेवल करने की ये आधुनिक मशीन जीपीएस (ग्लोबल पोजिसनिंग सिस्टम) से लैश है। इससे निकलने वाली लेजर बीम को ट्रैक्टर में लगा संयंत्र प्राप्त करता है। इसी से चालक को खेत का लेवल पता चलता है। ट्रैक्टर के पीछे लगे बकेट सबसे ऊंची जगह से मिट्टी उठाता है और निचली जगहों को भरता जाता है।

प्रगतिशील किसान राममणि पांडेय के अनुसार, सारी दक्षता मशीन को सेट करने की है। एक बार मशीन सेट हो गई और चालक ने ट्रैक्टर के साथ पूरा खेत घूम लिया तो उसे पता चल जाएगा कि जमीन कहां कितनी ऊंची-नीची है। इसके बाद उसे सिर्फ इतना करना होगा कि सबसे ऊंची जगह से मिट्टी काटकर नीची जगह पर भरना होगा। समतल होने के बाद खेत खेल के किसी मैदान की तरह दिखेगा।

लाभ

सिंचाई करने पर समतल खेत कम समय और पानी में समान रूप से संतृप्त होता है। खेत में बराबर नमी के नाते बीज का जमता एक साथ और अच्छा होता है। लिहाजा फसल भी एक साथ पकती (मैच्योर)है।

-जीरो सीड ड्रिल, रेज्ड बेड विधा से लाइन में बोआई आसान हो जाती है। फसल लाइन में होने से कीटों, रोगों और खरपतवारों का नियंत्रण आसान होता है।

-धान एवं गेहूं वाले फसलचक्र में 20 लाख हेक्टेयर खेत को अगर उक्त विधा से बराबर करें तो तीन वर्ष में 15 मिलियन हेक्टेयर पानी, 20000 लाख लीटर डीजल, और 500 किग्रा ग्रीन हाउस गैस की बचत।

बढ़ जाती यूरिया की क्षमता

सस्ता होने के नाते अपने यहां किसानों की सबसे पसंदीदा खाद यूरिया है। सिंचाई के पहले या सिंचाई के बाद नमी की स्थिति में किसान इसका छिड़काव करते हैं। प्रवृत्ति के अनुसार जिधर की जमीन नीची रहती है, यूरिया उधर की ओर रिसती है। ऐसे में पूरे खेत के पौधों को समान रूप से यूरिया नहीं मिलती। लिहाजा पौधों का विकास भी बराबर नहीं होता। पूरी तरह बराबर खेत में यूरिया ही नहीं हर खाद एवं पोषक तत्व पौधों को समान रूप से मिलता है।

गंगा के मैदानी क्षेत्रों के लिए बेहद उपयोगी है यह तकनीक

गंगा का सर्वाधिक बहाव क्षेत्र (बिजनौर से बलिया) उत्तर प्रदेश में ही आता है। गंगा के मैदानी क्षेत्रों के लिए नियमित अंतराल पर खेत की लेवलिंग और जरूरी है।

उल्लेखनीय है कि धान-गेहूं इस क्षेत्र की मुख्य फसल है। उर्वर जमीन, भरपूर पानी और श्रम के नाते इस क्षेत्र में अब भी उपज बढ़ाने की भरपूर संभावना है।

केंद्र सरकार भी मानती है कि दूसरी हरित क्रांति की शुरुआत इसी क्षेत्र से होगी। इसके मद्देनजर कई योजनाएं भी शुरू की गई हैं। संयोग से जलवायु के बदलाव का सर्वाधिक असर भी इसी क्षेत्र पर पड़ना है।

गोरखपुर विश्वविद्यालय के पर्यावरण विभाग के समन्वयक प्रोफेसर रहे डॉक्टर डीके सिंह के मुताबिक पानी की कमी से वर्ष 2050 तक भारत में खाद्यान्न की उपज करीब 28 फीसद तक घट सकती है।

स्वाभाविक है कि इसका सर्वाधिक असर गंगा के मैदानी इलाकों पर ही पड़ेगा। जिस गति से ग्लैशियर पिघल रहे हैं उसके नाते हिमालय से निकलकर इस क्षेत्र को उर्वर बनाने वाली तमाम प्रमुख नदियों में साल भर भरपूर पानी नहीं रहेगा।

कुछ तो सूख भी सकती हैं ऐसे में कम पानी एवं जमीन में उपज बढ़ाना जरूरी होगी और चुनौती भी। इस चुनौती का समाधान आधुनिक कृषि यंत्रों के प्रयोग, संसाधनों के बेहतर प्रयोग और किसानों को आधुनिक तकनीक के बारे में प्रशिक्षित करने से ही होगा।

योगी सरकार ये सारे काम कर भी रही है। विश्व बैंक की मदद से संचालित यूपी एग्रीज योजना, सिंचन क्षमता में लगातार विस्तार, खेती बाड़ी में ड्रोन का प्रयोग, सिंचाई के अपेक्षाकृत दक्ष विधाओं (ड्रिप एवं स्प्रिंकलर) को प्रोत्साहन एवं अनुदान इसका प्रमाण है।

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