Wednesday - 1 May 2024 - 3:14 PM

कुलाधिपति से मिलने की बजाय काम पर ध्यान ज्यादा जरुरी है : एक कुलपति की अनकही कहानी

प्रो. अशोक कुमार 

छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय कानपुर में कुलपति के पद पर मेरी  नियुक्ति के पहले मेरा एक इंटरव्यू इंटरेक्शन माननीय तत्कालीन राज्यपाल कुलाधिपति महोदय से हुआ था कुलाधिपति महोदय ने मुझसे कहा था यदि आपकी  नियुक्ति कानपुर विश्वविद्यालय में कुलपति के पद पर हो जाए तब आप मुझसे तभी धन्यवाद के लिए आइएगा जब आप अपने विश्वविद्यालय  की समस्यों को समझेंगे और उसके समाधान के लिए अपनी योजना बनाएँगे इसी  के साथ आप अपने 3 वर्ष के कार्यकाल में क्या-क्या कार्य विश्वविद्यालय में करेंगे उसका एक श्वेत पत्र लाइएगा. इसके पहले मुझे धन्यवाद देने नहीं आयेगे .

वर्तमान समय में मैंने पिछले 10 वर्षों से यह अनुभव किया है कि जब भी कभी विभिन्न विश्वविद्यालय में कुलपति की नियुक्ति होती है तो ऐसा देखा गया है कि माननीय कुलपति को पत्र मिलते ही सबसे पहले वह कुलाधिपति महोदय को धन्यवाद देने के लिए जाते हैं . यह परंपरा अपने आप में अच्छी है लेकिन इसमें मेरा दृष्टिकोण अपने अनुभव के अनुसार से भिन्न है .

जब मैंने छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय कानपुर में कुलपति पद के कार्यभार संभाला तब कई व्यक्तियों ने यह सुझाव दिया कि मैं धन्यवाद के रुप में माननीय कुलाधिपति के पास अवश्य जाएं . लेकिन मैंने उनसे यह नहीं  बताया कि मैं  उनके पास तभी मिलने जाऊंगा जब मैं छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय कानपुर के बारे में जानकारी प्राप्त कर लूँगा .

मैंने विश्वविद्यालय के सभी शैक्षणिक , प्रशासनिक तथा अन्य समस्याओं के ऊपर ध्यान आकर्षित किया ! कुलपति का पदभार संभालने के बाद  विश्वविद्यालय के प्रांगण का अवलोकन किया , विश्वविद्यालय के विभिन्न विभागों का निरीक्षण किया , विश्वविद्यालय के सभी शैक्षणिक और अशैक्षणिक विभागों का भी निरीक्षण किया .

कुछ समय के बाद मैंने विश्वविद्यालय के सभी विभागों के विभागाअध्यक्ष की एक मीटिंग बुलाई और  विश्वविद्यालय के बारे में चर्चा की . एक दिन विश्वविद्यालय के अधिकारियों के साथ मीटिंग की, एक अन्य दिन विश्वविद्यालय के कर्मचारियों के साथ मीटिंग करी . अगले कुछ दिनों के अंदर मैंने अकादेमिक , परीक्षा से संबंधित विषयों के बारे में भी जानकारी प्राप्त की. सब गतिविधियां चल रही थी लेकिन विश्वविद्यालय के सभी वर्ग के लोग इस बात के लिए बहुत विचार कर रहे थे या उनके समझ में नहीं आ रहा था कि माननीय कुलपति जी को पदभार ग्रहण करते हुए 10 दिन हो गए लेकिन वह माननीय कुलाधिपति से मिलने लखनऊ नहीं गए. जबकि आप जानते हैं कि लखनऊ से कानपुर की दूरी केवल 80 किलोमीटर है .

कई लोग मेरे पास कहने भी आए कि मुझे कुलाधिपति से मिलना चाहिए और उनको धन्यवाद ज्ञापित करना चाहिए. मैंने उनको बताया की  जैसे ही मुझे समय मिलेगा मैं उनसे जरूर मिलना चाहूंगा. विश्वविद्यालय के शिक्षक , कर्मचारी , अधिकारी ने तो यहां तक कहना शुरू कर दिया कि कुलपति लगता है बहुत ही घमंडी आदमी है और इनकी  नियुक्ति विश्वविद्यालय में बहुत हाई कमान  के माध्यम से हुई है इसलिए वह कुलाधिपति को कुछ भी नहीं समझते. कई लोगों ने तो यहां तक कहना शुरू कर दिया कि ऐसा ही इनका व्यवहार  रहा तो कुलपति विश्वविद्यालय में ज्यादा दिन तक टिक नहीं पाएंगे. मैं अपना  कार्य करता रहा .

यह एक ऐसी बात थी जो मैं किसी से व्यक्तिगत रूप से कह नहीं सकता था. मैंने  पूरी मेहनत से विश्वविद्यालय के सभी समस्याओं को समझा , श्वेत पत्र बनाए.  श्वेत पत्र  बनाकर समस्याओं के बारे में लिखा . विश्वविद्यालय में क्या-क्या समस्या है जैसा कि आप सब जानते हैं कि विश्वविद्यालय में प्रशासनिक और छात्रों की प्रवेश और परीक्षा परिणाम फल आदि  समस्याएं होती हैं,  शिक्षकों की विभिन्न समस्याएं होती हैं, उनके शैक्षणिक वातावरण की , उनके प्रमोशन की , या नियुक्तियां की . कर्मचारियों की अपनी समस्याएं होती हैं .  इन सब समस्याओं को मैंने समझा और फिर उसको लिखा और फिर यह कोशिश की  इन समस्याओं को किस प्रकार से समाधान किया जा सकता है ! विश्वविद्यालय में कुछ नए विषय भी खोलने के लिए मैंने लिखा ! इन सबको तैयार करने में  लगभग 1 माह से ज्यादा लग गया और उसके बाद में कुलाधिपति  से मिलने गया .

माननीय कुलाधिपति को मैंने पत्र दिया कुलाधिपति ने बहुत ध्यान से उस पत्र को पढ़ा. पत्र पढ़कर  वो बहुत प्रसन्न हुए और मुझसे कहा की उन्होने   कुलपति रूप मे सही व्यक्ति को नियुक्त किया है । माननीय कुलाधिपति ने  बहुत से सुझाव भी दिये और मुझमे यह विश्वास प्रकट किया की मैं पूरी मेहनत और ईमानदारी से   नियमानुसार विश्वविद्यालय की प्रगति के लिए कार्य करूंगा ।

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एक बहुत महत्वपूर्ण विषय के बारे मे कहना चाहता हूं कि जो भी विश्वविद्यालय का कुलपति बने उसको विश्वविद्यालय की समस्याओं के बारे में अवगत होना चाहिए और इसी के साथ-साथ उसकी यह दूरदर्शिता  होनी चाहिए कि उन समस्याओं को किस प्रकार से समाधान किया जा सकता है ! मैं समझता हूं कि विश्वविद्यालय में कार्यभार ग्रहण करते समय किसी भी कुलपति के लिए यह प्रथम प्राथमिकता होनी चाहिए ! अगर वह समय पर इन विभिन्न समस्याओं को समझ ले तब मेरे अनुभव के अनुसार उसको आने वाले भविष्य के 3 सालों में कष्ट नहीं होगा और सभी की समस्याओं को समाधान करने में आसानी होगी ! इन सभी समस्याओं का समाधान करने के लिए विश्वविद्यालय के सभी अधिकारी, कर्मचारी , शिक्षक और विद्यार्थी के  सहयोग की आवश्यकता होती है ! यहां यह कहने की  भी आवश्यकता है कि विश्वविद्यालय में विभिन्न प्रकार की गतिविधियां होती हैं और इन गतिविधियों के कारण आपको जिला प्रशासन से भी एक अच्छा संपर्क संबंध बनाए रखना चाहिए ताकि अनुकूल परिस्थितियों में जिला प्रशासन आपकी मदद कर सके ।

आमतौर पर यह देखा गया है कि विश्वविद्यालय के कुलपति अपने दफ्तर से बाहर नहीं निकलते या निकल पाते या  निकलना नहीं चाहते लेकिन जहां तक मैं समझता हूं मेरे अनुभव के अनुसार से विश्वविद्यालय के कुलपति को दफ्तर मे  अपने काम जरुर करना चाहिए लेकिन साथ ही साथ समय-समय पर विभिन्न विभागों में, प्रशासनिक कार्यालयों में, विद्यार्थियों से, अधिकारियों से और कर्मचारियों से मिलते रहना चाहिए ! यदि आप निरंतर इस प्रकार के प्रयास करेंगे तो कभी भी कोई भी  गंभीर समस्या आपके सामने नहीं आएगी । जब आप निरंतर सबसे मिलते हैं तो समय-समय पर आपको विश्वविद्यालय की समस्याओं के बारे में जानकारी होती है और समय अनुसार उनका समाधान भी होता है । जब कभी हम इस प्रक्रिया को नहीं अपनाते तो ऐसा देखा गया है की समस्याएं इकट्ठा होती रहती हैं , समाधान उनका नहीं होता।

एक समय ऐसा आता है जबकि सारी समस्याएं एक साथ इकट्ठा हो जाती हैं और वह एक बहुत ही भयंकर रूप ले लेती हैं और एक बहुत ही कठिन स्थिति हो जाती है । मैं अपने अनुभव के आधार से यह एक संदेश देना चाहता हूं कि विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में  विश्वविद्यालय के सभी वर्गों से मधुर संबंध  रखना चाहिए , वार्तालाप करना चाहिए , उनसे संपर्क बनाए रखना चाहिए ।  सबसे महत्वपूर्ण – विश्वविद्यालय विद्यार्थियों के लिए होता है , विश्वविद्यालय का प्रमुख अंग है ! हमको यह चाहिए कि हम विद्यार्थियों की समस्याओं के बारे में जाने और  हमे  उनके समाधान का यथासंभव प्रयास करना चाहिए। मुझे आशा और विश्वास है कि आने वाले समय में विश्वविद्यालय विद्यार्थियों को अच्छे और उज्जवल भविष्य के लिए दिशा प्रदान करेगा।

(लेखक पूर्व कुलपति कानपुर, गोरखपुर विश्वविद्यालय हैं)

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