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उलटबांसी : चंद्रयान मने कवियों का आपातकाल

अभिषेक श्रीवास्तव 

चंद्रयान गया। पिंड छूटा। कुछ इस तर्ज पर इसरो के वैज्ञानिकों के चेहरे से खुशी छलक रही थी। दुखी तो मीडिया वाले थे। वे कैमरा ताने हुए थे। बीच में बादल आ गया। छुप गया यान। सारी तैयारी बेकार। हो सकता है चौधरी जी मोटरसाइकिल लेकर पीछे निकल लिए हों।

कोई भरोसा नहीं। जब तिहाड़ जेल तोड़कर राणाजी पृथ्वी राज की अस्थियां लाने कांधार जा सकते हैं तो चांद क्या चीज़ है । वैसे भी चौधरी तिहाड़ के बाहर हैं। इस देश में कुछ भी हो सकता है। वीरभोग्या वसुंधरा । मने इस वसुंधरा को वीर भोगते हैं । अब वीर चांद को भोगने निकले हैं।

मेरी दिलचस्पी वीरों में कम,कवियों में ज्यादा है। कवि कमज़ोर होता है। मैं भी सांस्कृतिक जीव हूं। वीर नहीं। जब पूरा देश विज्ञान-वीर बना हुआ हो तो सांस्कृतिक होना सेफ़ है। जैसे अपने एक मित्र हैं। पेशे में वज़नी हैं। देह से भी। उन्हें पता है कहां क्या बनना है। फिलहाल देश चांद पर है, तो वे विदेश निकल लिए हैं।

जब देश में रहते हैं तो अकसर दो तरह के लोगों से घिरे होते हैं। जब राजनीतिक बात करने वालों के बीच वे होते हैं, तो सांस्कृतिक बन जाते हैं। जब वे सांस्कृतिक लोगों के बीच होते हैं, तो पॉलिटिक्स बतियाते हैं। दोनों मोर्चों पर इस तरह वे स्कोर कर ले जाते हैं। यही जीने का ढंग है। कुछ हटकर दिखना ।

तो जब धरती अंतिम सांस गिन रही है, हमने हटकर एक फैसला लिया है। हम चांद पर जा रहे हैं। पूरा देश विज्ञान पर बात कर रहा है । इसी देश में दो सौ के नोट में चिप खोजकर कुछ लोग ले आए थे । ऐसे ही हम विश्व गुरु नहीं हैं । वरना क्या बात थी कि पचास साल में किसी को चांद में दिलचस्पी पैदा नहीं हुई।

ट्रम्प  ने कुछ दिन पहले नासा को चांद के चक्कर में फटकार दिया था कि बेमतलब एजेंसी इतना पैसा खर्च कर रही है। उसे चांद के बारे में सोचना तक नहीं चाहिए। हमने बीच में भांजी मार दी। पचासवें साल में चंद्रयान दाग दिया। दस महीने बाद ट्रम्प बोलेगा मोदी जिंदाबाद।

पहली बार जब चंद्रयान उड़ा था 2008 में, तो उसकी उम्र दस महीना थी। अक्तूबर में उड़ा, अगस्त में फेल हो गया। टार्गेट दो साल का था। फिर भी अपने वैज्ञानिकों ने कहा कि 95 परसेंट सफल अभियान रहा है। जब 95 परसेंट दस महीने में ही पूरा हो गया तो दो साल का प्रोजेक्ट  क्यों बनाया? यह सवाल किसी ने नहीं उठाया। अबकी उठेगा। मज़बूत सरकार है। कवि इसी से हलकान है। वरना पहली बार कवि बड़े खुश थे कि धरती न सही, चांद तो बच गया। कवि जिंदा रहे या मरे, कविता जिंदा रहनी चाहिए। कविता में चांद जिंदा रहना चाहिए।

अबकी खतरा वास्तविक है। कवि सनाके में है। सोच रहा है अगर कहीं चंद्रयान कामयाब रहा, तो लोग कवियों को बहुत गरियाएंगे। चांद की असली सूरत सामने आ जाएगी। फिर मुक्तिबोध को मरणोपरान्त  फांसी दे देगी मजबूत सरकार। चार्जशीट में लिखा जाएगा कि मुलजिम ने चांद का मुंह टेढ़ा लिखा था और अवैज्ञानिकता का प्रसार किया था। सारे कवि कांप जाएंगे।

मरे हुए कवि कब्र में पलटने लगेंगे। चांद का झिंगोला? पांच पीढि़यों को अनपढ़ बना दिया दिनकर ने, एफआइआर दर्ज करो- मजबूत वाला नेता फरमान जारी करेगा।

गुलज़ार तो वैसे ही लपटा जाएंगे। एक तो मुसलमान नाम, ऊपर से चांद से खिलवाड़? सारे कवि ज्ञापन देंगे कि साहब वो हिंदू हैं, गुलज़ार तो उनका तखल्लुस है। साहब कहेंगे तखल्लुस भी तो मुसलमानी ही है, मुकदमा बनाओ। हिंदू कवि बेमतलब मार दिया जाएगा। जैसे उस दिन छपरा में दो हिंदू मुसलमान समझ के मार दिए गए । या लखनऊ में विवेक तिवारी को सीधे गोली मारी गई थी। सवाल अपराधी की पहचान का नहीं, राष्ट्रद्रोह का है।

चांद राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक है, उससे खिलवाड़ बरदाश्त नहीं किया जाएगा । सारे आइपीसी सीआरपीसी चांद पर भी लागू होंगे । भरोसा नहीं तो नासा का मून मिशन स्टेटमेंट पढि़ए । पहला ही बिंदु कहता है कि चांद दरअसल धरती का विस्तार है, इसलिए चांद पर लौटने का पहला उद्देश्य वहां इंसानी बस्ती बसाना है ताकि मनुष्य को गरमाती धरती से बचाया जा सके।

ये पानी-वानी की खोज तो बहाना है। एक बार वहां का हिसाब-किताब पता चल जाए तो अगली बार कोई पटवारी जमीन मापी करने के लिए वहां भेजा जाएगा। यहां नीचे एनआरसी को पूरे देश में लागू कर के बदचलन लोगों की लिस्ट बनाई जाएगी।

बदचलन मतलब वे लोग जो चलन से अभी बाहर हैं या बहुत पीछे हैं। जब मजबूत सरकार चांद पर पहुंच गई तो चांद को कविता-शायरी या गीत में क्यों पढ़ा जाए? ऐसा लिखने और पढ़ने वाले लोग बदचलन होंगे। अवैज्ञानिक होंगे। पिछड़े माने जाएंगे। देशद्रोही होंगे।

चूंकि सबको मारना आसान नहीं, तो दो-चार सजाओं के बाद ऐसे लोगों की पहचान कर उनका नाम एनआरसी से काट दिया जाएगा। चौथे राउंड में इन्हे चांद पर भेज दिया जाएगा। बड़ा चांद चांद करते थे, अब जाओ, सड़ो।

विकास की मौजूदा रफ्तार देखकर यह सब असंभव नहीं लगता। कवि इसी से घबराया हुआ है। मिशन चंद्रयान कवियों और शायरों के लिए आपातकाल है। कवि बहुत वेदना में है। वैज्ञानिक खुश है। उसे लगता है कि उसका बनाया यान चांद पर अबकी टिक ही जाएगा। झंझट खतम होगा। वह नहीं जानता कवि की वेदना को। जहां न पहुंचे रवि वहां पहुंचे कवि।

पता चला चौधरी रास्ते में मोटरसाइकिल का प्लग साफ कर रहा है कि कवि पहले ही पहुंच गया चांद को बचाने! वैसे एक शक तो बनता है कि कहीं पिछली बार भी कवियों ने ही तो चंद्रयान-1 को नाकाम नहीं किया था?

एनआइए कानून में संशोधन हो चुका है। संदेह के आधार पर गिरफ्तारी अब संभव है। खुद को सही साबित करने का जिम्मा मुलजिम पर ही होगा। क्यों न कवियों से ही यज्ञ प्रारंभ करें?

साहेब बंदगी का इससे बेहतर नुस्खा और क्या होगा? मुझे भी तो अपनी जान बचानी है। आखिर मैं भी तो कवि ठहरा।

( लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं )

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