Wednesday - 10 January 2024 - 6:07 AM

लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की आजादी कितनी ?

प्रीति सिंह

लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की आजादी का सम्मान किया जाना चाहिए। लेकिन क्या इसकी कोई सीमा होनी चाहिए। आज जब सोशल मीडिया का दायरा बढ़ता जा रहा है और हर कोई अपने विचार व्यक्त करने के लिए कहीं अधिक स्वतंत्र है, तो ऐसे में आलोचना और अपमान के बीच कोई लकीर होनी चाहिए।

पिछले कुछ दिनों से देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर बहस छिड़ी हुई है। देश के कई राज्यों में मुख्यमंत्रियों के खिलाफ सोशल मीडिया पर कथित टिप्पणी करने पर कई लोगों के खिलाफ केस दर्ज हुआ तो कई लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया।

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सबसे ज्यादा हल्ला उत्तर प्रदेश में हुई घटना की वजह से मचा। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ सोशल मीडिया पर कथित टिप्पणी करने पर यूपी पुलिस ने स्वतंत्र पत्रकार प्रशांत कन्नौजिया को गिरफ्तार कर लिया। पत्रकार की जिस तरह से गिरफ्तारी हुई उस पर सवाल उठना लाजिमी था।

सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद ही प्रशांत को रिहाई हुई। यूपी पुलिस की दलील थी कि मुख्यमंत्री के लिए जो टिप्पणी की गई वह अशोभनीय थी। हालांकि सुप्रीम कोर्ट यूपी के सरकार से सहमत नहीं हुई और पत्रकार को तुरंत रिहा करने का आदेश दिया।

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पिछले एक सप्ताह में उत्तर प्रदेश में यूपी पुलिस सोशल मीडिया पर सीएम योगी के खिलाफ अभद्र टिप्पणी करने के मामले में पांच लोगों को गिरफ्तार कर चुकी है।

कर्नाटक से शुरु हुआ विवाद

27 मई को कर्नाटक की पुलिस ने कन्नड़ अखबार विश्ववाणी के संपादक विश्वेश्वर भट्ट के खिलाफ मुकदममा दर्ज किया गया था।
अखबार ने 25 मई को पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवे गौड़ा के परिवार के विषय में एक लेख प्रकाशित किया था जिसमें बताया गया था कि निखिल कुमारास्वामी ने शराब के नशे में अपने दादा एचडी देवेगौड़ा के साथ बुरा बर्ताव किया और उन्हें चुनावों में हार के लिए जिम्मेदार बताया।

ये मुकदमा जेडीएस नेता प्रदीप गौड़ा की शिकायत पर दर्ज किया गया था। अखबार पर कर्नाटक के मुख्यमंत्री एचडी कुमारास्वामी के बेटे निखिल के बारे में आपत्तिजनक खबर प्रकाशित करने के आरोप लगाए गए हैं। इस मामले में एक तबके से विरोध दर्ज किया गया था।इसका भारी विरोध किया गया था।

केरल सीएम पर अभद्र टप्पणी करने पर 119 लोगों के खिलाफ केस दर्ज

सिर्फ उत्तर प्रदेश में ही सीएम के खिलाफ टिप्पणी करने पर गिरफ्तारी या केस दर्ज नहीं हो रहा बल्कि केरल भी इस मामले में पीछे नहीं है। डैक्कन क्रॅनिकल की एक खबर के मुताबिक पिछले तीन सालों में मुख्यमंत्री पी विजयन के खिलाफ सोशल मीडिया पर कथित आपत्तिजनक टिप्पणियों को लेकर 119 लोगों के खिलाफ केस दर्ज किए गए हैं।

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जिन लोगों के खिलाफ मामले दर्ज किए गए, उनमें केंद्र और राज्य सरकार के कर्मचारी भी शामिल हैं। 12 जून को केरल के मुख्यमंत्री विजयन ने विधानसभा में खुद यह जानकारी दी। वहीं, विपक्ष के नेता रमेश चेन्नीतला को अपशब्द कहने वाले तीन लोगों के खिलाफ भी मामले दर्ज किए गए हैं।

छत्तीसगढ़ में भी एक युवक गिरफ्तार

छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले में पुलिस ने सोशल मीडिया फेसबुक पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के खिलाफ अभद्र टिप्पणी करने के आरोप में एक युवक को गिरफ्तार किया है। पुलिस ने यह कार्रवाई युवा कांग्रेस के कार्यकर्ता की शिकायत के बाद की है।

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बंगाल में ममता का मीम शेयर करने पर हुई थी गिरफ्तारी

पश्चिम बंगाल में चुनाव के दौरान भाजपा कार्यकर्ता प्रियंका शर्मा द्वारा बंगाल सीएम ममता बनर्जी का मीम शेयर करने पर राज्य पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था। प्रियंका को भी सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद रिहाई मिली थी। प्रियंका शर्माकी गिरफ्तारी का बीजेपी ने विरोध किया था। बीजेपी नेताओं ने दिल्ली में भी इसका विरोध किया था।

दोहरा चरित्र क्यों ?

अभिव्यक्ति की आजादी कितनी होनी चाहिए इस पर सबकी राय अलग-अलग है। किसी को लगता है कि सीएम, पीएम और महत्वपूर्ण पदों पर आसीन लोगों के खिलाफ अभद्र टिप्पणी नहीं होनी चाहिए, लेकिन वहीं कुछ लोगों का कहना है कि जब नेताओं पर कोई रोक नहीं है तो जनता पर क्यों? नेताओं के लिए खुली छूट है। वो कुछ भी बोलें, कैसी भी भाषा का इस्तेमाल करें, उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होती। नेता खुलेआम किसी के कपड़े पर कमेंट करते हैं, मार-काट डालने की धमकी देते हैं, अली-बजरंग अली के नाम पर देश को बांटने का काम करते हैं लेकिन इन्हें कोई कुछ नहीं कहता।

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सामाजिक कार्यकर्ता मनीष कहते हैं कि अभिव्यक्ति की आजादी हमें संविधान ने दिया है। मेरा सवाल राजनीतिक दलों से है कि वह अभिव्यक्ति की आजादी पर दोहरा चरित्र क्यों अपनाते हैं।

पश्चिम बंगाल में बीजेपी कार्यकर्ता ने ममता बनर्जी का मीम शेयर किया तो बीजेपी ने इसे अभिव्यक्ति की आजादी पर प्रहार बताया, लेकिन वहीं जब यूपी में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ टिप्पणी की जाती है तो अपमान हो जाता है। गिरफ्तारियां होने लगती है। यह कहीं से जायज है?

वरिष्ठ पत्रकार सुशील वर्मा कहते हैं, आज जब सोशल मीडिया का दायरा बढ़ता जा रहा है और हर कोई अपने विचार व्यक्त करने के लिए कहीं अधिक स्वतंत्र है तब ऐसी कोई व्यवस्था बननी ही चाहिए जिससे न तो अभिव्यक्ति की आजादी का दुरुपयोग हो सके और न ही जरूरत से ज्यादा कठोर कार्रवाई।

क्या है मौलिक अधिकार

भारत का संविधान एक धर्मनिरपेक्ष, सहिष्णु और उदार समाज की गारंटी देता है। संविधान में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा माना गया है।

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मनुष्य का एक सार्वभौमिक और प्राकृतिक अधिकार है और लोकतंत्र, सहिष्णुता में विश्वास रखने वालों का कहना है कि कोई भी राज्य और धर्म इस अधिकार को छीन नहीं सकता।

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