Sunday - 7 January 2024 - 2:40 AM

अरबों के घोटाले करते हुए बेचारा ही बना रहा यह बैंक, अब खुल रही है पोल

जुबिली न्यूज़ ब्यूरो

लखनऊ. उत्तर प्रदेश के सहकारी ग्राम विकास बैंकों की दुर्दशा का असली कारण इनमें फैला भ्रष्टाचार है. किसानों और पंचायतों को मज़बूत करने के लिए गठित किये गए यह बैंक भ्रष्ट व्यवस्था की भेंट चढ़ गए. बैंक प्रबंधकों और बैंक के अन्य अधिकारियों की मिलीभगत से करोड़ों रुपये के वारे न्यारे हो गए. प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और जसवंत नगर से विधायक शिवपाल सिंह यादव के अध्यक्ष रहते हुए बैंकों के प्रबन्धक भ्रष्टाचार की गंगोत्री में डुबकियाँ लगाते रहे और किसी को कानोकान खबर तक नहीं हुई.

जांच-पड़ताल शुरू हुई तो जांच करने वालों की आँखें फटी की फटी रह गईं. लाखों-करोड़ों का नहीं अरबों का घोटाला सामने है. पहली अप्रैल 2018 से 31 मार्च 2019 के बीच बैंकों ने भुगतान में तो भ्रष्टाचार किया ही साथ ही ब्याज की पूरी की पूरी रकम हड़प गए. जांच अधिकारियों ने बैंक के लेज़र में देखा कि दो लाख रुपये का ब्याज मिला है लेकिन लेज़र से खातों तक वह दो लाख रुपया पहुंचा ही नहीं. खाते में वही पुरानी वाली रकम ही दर्ज है. बारीकी से की गई जांच में 51 अरब 59 करोड़, 41 लाख, 67 हज़ार 993 रुपये की अनियमितता का पता चला है. जांच करने वालों ने ज़िम्मेदार बैंक प्रबंधकों के नाम भी बताये हैं और शासन को भेजी रिपोर्ट में यह भी बताया है कि किस बैंक प्रबन्धक से कितनी राशि वसूली जानी है.

वित्तीय वर्ष 2018-2019 में हुए भ्रष्टाचार में जिन बैंक अधिकारियों को ज़िम्मेदार ठहराया गया है, उनकी बात की जाए तो परीक्षितगढ़ के शाखा प्रबंधक पर आरोप है कि उन्होंने 19 हज़ार 691 का भुगतान बगैर व्यय प्रमाणपत्र के ही कर दिया. जांच अधिकारियों ने यह राशि शाखा प्रबंधक से वसूले जाने की बात कही है. जांच अधिकारियों ने माना है कि विभिन्न तारीखों में किया गया यह भुगतान वास्तव में किया ही नहीं गया है. जांच करने वालों ने सिफारिश की है कि तत्कालीन शाखा प्रबंधक से मय ब्याज के यह रकम वसूली जाए.

बैंक की खैर शाखा में खाता संख्या ए.एच.-06/77 में 50 हज़ार रुपये के स्थान पर 40 हज़ार का ही ऋण दिया गया जबकि बाकी का दस हज़ार रुपया बैंक कर्मियों ने हड़प लिया. इस मामले में भी दस हज़ार रुपये पर नौ जनवरी 2017 से ब्याज समेत वसूली की सिफारिश की गई है.

परीक्षितगढ़ शाखा की तरह से ही बिजनौर की कांठ शाखा के प्रबंधक ने भी बगैर व्यय प्रमाणपत्र के ही 12 हज़ार 770 रुपये का भुगतान कर दिया. इस मामले में भी शाखा प्रबंधक से पूरी राशि वसूलने की सिफारिश की गई है.

बैंक प्रबंधकों ने भ्रष्टाचार के लिए तरह-तरह के रास्ते अपनाए और सरकारी पैसों को चूना लगाकर अपनी तिजोरियां भर लीं. अकबराबाद शाखा के खाता संख्या डी-1/10 जो कि बंद हो चुका है में कम ब्याज दर्शाकर शाखा प्रबंधक ने बैंक को 46 हज़ार 231 रुपये की चोट पहुंचाई.

हरदोई जिले की बिलग्राम शाखा में तो भ्रष्ट बैंककर्मियों ने सारी हदें ही पार कर दीं. एक ही किसान को उसकी एक ही सम्पत्ति पर एक ही योजना के तहत कई बार ऋण दे दिया. 12 किसानों को दस-दस हज़ार प्रति ऋण की दर से अनुदान दे दिया गया. इस मामले में चार लाख 40 हज़ार रुपये का गोलमाल सामने आया है.

बैंक की दस गाड़ियों में ज़रूरत से ज्यादा डीज़ल भरवाया गया. इस मामले में एक लाख 93 हज़ार 83 रुपये का गोलमाल किया गया. हरदोई की बिलग्राम शाखा में विभिन्न योजनाओं के तहत मिलने वाले अनुदान के लिए रखी गई 57 लाख, 93 हज़ार पांच रुपये की राशि न तो वितरित की गई और न ही सरकार को वापस की गई. इस मामले में तत्कालीन शाखा प्रबंधक को दोषी पाया गया है. राज्य सरकार ने विभिन्न राहत कार्यों के लिए ऋण उपलब्ध कराने के लिए पांच करोड़ रुपये की राशि आवंटित की थी. न वह बांटी गई न राज्य सरकार को वापस की गई.

बैंक ने कर्मचारियों से ईपीएफ कटौती के रूप में प्राप्त 11 करोड़ 10 लाख 63 हज़ार 67 रुपये का ईपीएफ ट्रस्ट को भुगतान नहीं किया. इस धन के दुरूपयोग किये जाने से बैंक कर्मियों का ही नुक्सान हुआ. इतना ही नहीं सदस्यों को पिछले सालों के लाभांश का भुगतान नहीं किया गया. यह राशि थोड़ी राशि नहीं है. 21 करोड़ 61 लाख 63 हज़ार 82 रुपये की राशि का भुगतान किया जाना था.

राष्ट्रीय आजीविका अनुदान के तहत बैंक की महाराजगंज, बांसगांव, गोरखपुर, हाटा, सलेमपुर और बासी को प्राप्त 22 लाख 76 हज़ार छह सौ रुपये को तय शर्तों का पालन न करते हुए वितरित करते हुए वित्तीय अनियमितताएं कीं. इसके साथ ही बिना सक्षम स्तर से स्वीकृति लिए संस्था को आरक्षित 17 लाख रुपये का ओवर ड्राफ्ट प्राप्त कर इसे विभिन्न मदों में इस्तेमाल किया और धन की अनियमितता की.

हद तो यह है कि बरेली की फरीदपुर शाखा को एनबीसीएफडीसी द्वारा दोहरी गरीबी की रेखा के नीचे जीवन यापन करने वालों को ऋण देने के लिए दिए गए नौ लाख 26 हज़ार 220 रुपये निर्धारित मानकों का पालन न करते हुए वितरित कर दिये गए. इस मामले को गंभीर वित्तीय अनियमितता मानते हुए तत्कालीन शाखा प्रबंधक को दोषी ठहराया गया है.

सहकारी बैंकों की लगातार बढ़ती दुर्दशा के लिए बैंक का प्रबंधन और टॉप मैनेजमेंट खासतौर पर ज़िम्मेदार है. सहकारी बैंकों की कमान पिछले 33 साल से शिवपाल सिंह यादव के पास है. शिवपाल उत्तर प्रदेश सरकार में ताकतवर मंत्री रहे हैं. वह सत्ता में रहें या नहीं रहें लेकिन राजनीति में हमेशा चर्चा का विषय बने रहते हैं. उनकी नाक के नीचे बैंक प्रबंधक भ्रष्टाचार की गंगोत्री में नहाते रहे और अरबों रुपये के वारे न्यारे कर दिए. जुबिली पोस्ट आपको सहकारी बैंकों की पूरी दास्तान सुनाएगा. यह सिर्फ एक बानगी है. किस्सा जारी है…

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