Friday - 12 January 2024 - 12:44 AM

इस बही खाते में होगा दुनिया के कुल जीवाश्‍म ईंधन का लेखा जोखा

  • जीवाश्‍म ईंधन आपूर्ति पर पारदर्शिता की दिशा में बड़ा कदम, उत्‍पादन और संचय से होने वाले उत्‍सर्जन का पहला डेटाबेस हुआ प्रकाशित

कल तक हमें सटीक तौर पर नहीं पता था कि दुनिया में कहाँ कितना जीवाश्म ईंधन उपलब्ध है। मगर आज प्रकाशित ताजा डेटा से जाहिर होता है कि दुनिया में जीवाश्‍म ईंधन के संचय के उत्‍पादन और उसके दहन से 3.5 ट्रिलियन टन से ज्‍यादा ग्रीनहाउस गैस उत्‍पन्‍न होगी। यह वैश्विक तापमान में वृद्धि को डेढ़ डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लिये निर्धारित कार्बन बजट के बचे हुए हिस्‍से के सात गुना से भी ज्‍यादा होने के साथ-साथ औद्योगिक क्रांति से लेकर अब तक उत्‍पन्‍न हर तरह के प्रदूषण से भी अधिक है।

इस महत्वपूर्ण जानकारी का खुलासा होता है कार्बन ट्रैकर और ग्‍लोबल एनर्जी मॉनिटर द्वारा आज जारी ग्‍लोबल रजिस्‍ट्री ऑफ फॉसिल फ्यूल्‍स में।यहाँ कार्बन बजट से तात्पर्य वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की वह मात्रा है, जिसके बाद बढ़ने से पृथ्वी का तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक होने लगेगा।

दरअसल अभी तक जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये किये जाने वाले नीतिगत प्रयास मूलत: तेल, गैस और कोयले की मांग और उपभोग को कम करने पर केन्द्रित रहते थे और उनमें इनकी आपूर्ति के पहले को नजरअंदाज कर दिया जाता था। मिसाल के तौर पर तेल, गैस और कोयले की कुल ग्रीनहाउस गैसों के उत्‍पादन में 75 प्रतिशत हिस्‍सेदारी होने के बावजूद पैरिस समझौते में जीवाश्‍म ईंधन के उत्‍पादन का जिक्र तक नहीं किया गया है।

यूएनईपी प्रोडक्शन गैप रिपोर्ट्स ने शेष कार्बन बजट के संबंध में जीवाश्म ईंधन की बहुत व्‍यापक अधिकता के तथ्य को स्थापित किया है, जबकि आईईए ने दिखाया है कि अगर हमें ग्‍लोबल वार्मिंग में वृद्धि को डेढ़ डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखना है तो कोई नया फील्‍ड विकसित नहीं किया जा सकता है और कुछ मौजूदा फील्‍ड्स को समय से पहले ही उपयोग से बाहर करना होगा।

हालांकि नीति निर्धारकों और सिविल सोसाइटी के पास मौजूदा फील्‍ड्स को चरणबद्ध ढंग से चलन से बाहर करने की प्रक्रिया का प्रबंधन करने के तरीकों से सम्‍बन्धित निर्णय लेने के लिये सम्‍पत्ति स्‍तरीय डेटा की कमी थी। इसके अलावा बाजारों के पास भी ऐसी सूचना की कमी थी जिससे यह अनुमान लगाया जा सके कि कौन सी सम्‍पत्ति निष्‍प्रयोज्‍य होने वाली है।

डेटा के इस अंतर को पाटने के लिये जीवाश्‍म ईंधनों की ग्‍लोबल रजिस्‍ट्री तैयार की गयी है। यह दुनिया भर में जीवाश्म ईंधन उत्पादन और भंडार का पहला सार्वजनिक डेटाबेस है जो कार्बन बजट पर उनके प्रभाव पर नजर रखता है। रजिस्ट्री अपनी धारणाओं और गणनाओं में पूरी तरह से नीति तटस्थ तथा पारदर्शी है, और उम्‍मीद है कि आने वाले समय में यह औपचारिक रूप से अंतरराष्ट्रीय जलवायु नीति निर्माण प्रक्रिया के भीतर स्थित हो जाएगी।

इस रजिस्‍ट्री में अपने जारी होने के वक्‍त 89 देशों में 50 हजार से ज्‍यादा फील्‍ड्स का डेटा शामिल किया गया है, जो कुल वैश्विक उत्‍पादन के 75 प्रतिशत हिस्‍से के बराबर है। अन्‍य बातों के अलावा इससे जाहिर होता है कि अमेरिका और रूस के पास मौजूदा जीवाश्‍म ईंधन संचय इतना ज्‍यादा है कि वे पूरे वैश्विक कार्बन बजट का खात्‍मा कर सकते हैं। अगर अन्‍य सभी देश अपना उत्‍पादन फौरन रोक दें तो भी ऐसा हो सकता है। रजिस्‍ट्री में जिन 50 हजार फील्‍ड्स को शामिल किया गया है उनमें से उत्‍सर्जन का सबसे बड़ा स्रोत सऊदी अरब की ग़ावर ऑयल फील्‍ड है जिससे हर साल तकरीबन 525 मिलियन टन कार्बन निकलता है।

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बेशक, उत्सर्जन डेटा केवल एक प्रकार की जानकारी है जिसकी सरकारों को जीवाश्म ईंधन की अत्यधिक आपूर्ति को कम करने के लिए ‘कैसे’ के सवाल का जवाब देते वक्‍त जरूरत पड़ेगी। समय के साथ, रजिस्ट्री को आर्थिक विशेषताओं को शामिल करने के लिए विस्तारित किया जाएगा, जिसमें विशिष्ट संपत्तियों से जुड़े कर और रॉयल्टी शामिल हैं, जो कि आपूर्ति को चरणबद्ध ढंग से खत्‍म करने के प्रबंधन के तरीके को लेकर निर्णय लेने में मददगार साबित हो सकते हैं।

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