Wednesday - 10 January 2024 - 4:27 AM

ये बच्चे हैं ‘स्पेशल’

डा. रोसलिन नाथ

हर मां-बाप का सपना होता है कि उसका बच्चा मानसिक-शारीरिक स्वस्थ हो। वह अपने स्तर पर बच्चे को स्वस्थ्य रखने का पूरा उपाय करते हैं, लेकिन कुछ चीजे कुदरती होती है। इसमें इंसान का वश नहीं चलता है। हमारे आस-पास ऐसे बहुत से बच्चे दिख जाते हैं तो शारीरिक या मानसिक रूप से फिट नहीं होते। उन्हें हिकारत भरी नजर से देखने या तरस खाने से बेहतर है कि उन्हें सक्षम  बनाने की कोशिश की जाए।

मानसिक बीमारियां बचपन में ही साफ नजर आने लगती हैं। इन लक्षणों पर गौर कर स्पेशल बच्चों की परेशानियों को कम कर उन्हें काबिल बनाया जा सकता है। वर्तमान में शहरों में तमाम ऐसे क्लीनिक खुल गए हैं जहां एक्सपर्ट की देखरेख में स्पेशल बच्चों को बेहतर ट्रेनिंग देकर सक्षम बनाया जाता है।

पहले तो हम यह जान लें कि इन बच्चों को स्पेशल क्यों कहा जाता है। दरअसल ये बच्चे सेरेब्रल पाल्सी जिसे दिमागी लकवा भी कहते हैं, से पीडि़त होते हैं। सेरेब्रल का मतलब है दिमाग और पाल्सी माने उस हिस्से में कमी आना जिससे बच्चा अपनी बॉडी को हिलाता-डुलाता है।

इसे हम इस तरह से समझ सकते हैं कि दिमाग का जो हिस्सा बच्चे के पैर और हाथ को कंट्रोल करता है और उन्हें हिलाने-डुलाने में मदद करता है, उस पर लकवे का असर बढ़ जाता है। इसमें बच्चे को हाथ और पैरों में दिक्कत ज्यादा होती है।

इसके अलावा इस बीमारी से पीडि़त बच्चे को बोलने, सुनने, देखने और समझने में भी दिक्कत आ सकती है। ये तमाम परेशानियां इस बात पर निर्भर करती हैं कि बच्चे के दिमाग का कितना हिस्सा प्रभावित हुआ है। यह स्थिति बच्चे के जन्म से पहले, जन्म के दौरान या बाद भी पैदा हो सकती है। कुछ मामलों में तो सुनने की क्षमता पर भी असर पड़ता है।

बच्चे की उम्र बढऩे के साथ परेशानियां बढ़ती जाती हैं। चूंकि इन्हें बैठने में दिक्कत होती है इसलिए ये बच्चे ज्यादातर लेटे रहते हैं, जिसकी वजह से इनकी आंखों में भेंगापन और रोशनी कम हो सकती है। ऐसे बच्चों के लिए रोजाना के छोटे-छोटे काम निपटाना भी मुश्किल हो जाता है।

जानें, क्या हैं लक्षण

– सामान्य बच्चों के मुकाबले विकास कम और देर से होना।
– शरीर में अकडऩ, बच्चे को गोद में लेने पर अकडऩ बढ़ जाती है।
– जन्म के तीन महीने के बाद भी गर्दन न टिका पाना।
– जन्म के आठ महीने बाद भी बिना सहारे बैठ नहीं पाना।
– बच्चे का अपने शरीर पर कंट्रोल न होना।
– रोजाना के काम जैसे कि ब्रश करना, खाना-पीना आदि खुद न कर पाना।

कितने प्रकार का होता है दिमागी लकवा

दिमागी लकवा कई प्रकार का होता है। कई बार बच्चे के शरीर का एक ही हिस्सा मतलब एक ही साइड के पैर और हाथ काम नहीं कर पाते। वहीं कुछ मामलों में बच्चे के पैर ठीक होते हैं, लेकिन हाथ काम नहीं कर पाते या हाथ ठीक होते हैं तो पैरों में परेशानी होती है। इसके अलावा बच्चे को दौरे भी पड़ते हैं। सेरेब्रल पाल्सी को तीन हिस्सों में बांटा गया है।

प्रभावित अंगों के आधार पर

ट्राइप्लीजिया – बच्चे के दो हाथ, एक पांव या दो पांव, एक हाथ पर असर होता है और बस एक हाथ या एक पैर काम कर पाता है।
डाइप्लीजिया- बच्चे के दो हिस्सों पर असर होता है, यानी दोनों पैर या दोनों हाथ या फिर एक पैर और एक हाथ पर असर हो सकता है।
हेमीप्लीजिया – बच्चे के शरीर का एक तरफ का हिस्सा काम नहीं कर पाता।
क्वॉड्रिप्लीजिया – बच्चे के दोनों हाथ-पांव चल नहीं पाते।
पेराप्लीजिया – बच्चे के पैरों पर असर होता है और वह ठीक से चल नहीं पाता।

मेडिकल आधार पर

स्पास्टिक – शरीर में बहुत ज्यादा अकड़न  देखी जाती है।
ऐथिटॉइड -बच्चे का शरीर पर कंट्रोल नहीं होता।
एटेसिक- बच्चा हाथ और पैर, दोनों के फंक्शन में संतुलन नहीं बना पाता।
मिक्स्ड – बच्चे में एक साथ कई समस्याएं देखी जाती हैं। मसलन, दिमागी लकवा के साथ-साथ देखने और सुनने में भी दिक्कत होना आदि।

मानसिक आधार पर

माइल्ड-बच्चे का आईक्यू 55-69 होता है। बच्चा पढ़ाई के लिए स्कूल भेजे जा सकता है।
मॉडरेट – बच्चे का आईक्यू 40-54 होता है।
सिवियर – बच्चे का आईक्यू 25-39 होता है।
प्रोफाउंड – बच्चे का आईक्यू 0-24 तक होता है। बच्चा ज्यादातर लेटा रहता है।

डॉक्टर के पास कब जाएं

जब मां-पिता को ये महसूस होने लगे कि उनका बच्चा अपनी उम्र के बच्चों की तरह विकसित नहीं हो रहा है तो उन्हें बच्चों के संपूर्ण विकास के लिए जो परंपरागत मापदंड तय किए गए हैं, उसके आधार पर तय करना चाहिए कि वे डॉक्टर के पास कब जाएं। यदि बच्चा तीन महीने के बाद स्माइल नहीं करता, मां की बातों पर रिएक्शन नहीं देता है, पांच महीने के बाद करवट नहीं लेता है, छह महीने के बाद मां के दूध के अलावा कुछ तरल पदार्थ नहीं खाता है और एक साल की उम्र के बाद चलता नहीं है तो निश्चित तौर पर कहीं कोई समस्या है।

जो मापदंड दिए गए है, उनमें अगर कोई एक से डेढ़ की महीना ऊपर होता है तो इंतजार किया जा सकता है, लेकिन इससे ऊपर होने पर ज्यादा देर नहीं करनी चाहिए। जितनी जल्दी डिसेबिलिटी पता चलेगी उतनी जल्दी उस पर काम किया जा सकता है। माता-पिता को अपने बच्चे को किसी अच्छे बाल रोग विशेषज्ञ / ओकुपेशनल थेरिपिस्ट से दिखाएं और उसकी जांच कराए। जांच करवाने के बाद बच्चे में किस किस्म की दिक्कत है, इसका पता लगाने की कोशिश की जाती है।

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