Sunday - 11 May 2025 - 1:09 PM

अतिरेक और उन्माद का आत्मघाती दैत्य

उत्कर्ष सिन्हा

बीते शाम भारत पाकिस्तान के बीच हुए युद्ध विराम के बाद सोशल मीडिया पर घमासान मचा हुआ है, तमाम बातें हो रही हैं और बिना परिस्थिति की तह में जाए भारत के प्रधानमंत्री के खिलाफ टिप्पणियों का दौर तेज हो गया है ।

बीते कुछ दिनों से चल रहे भारत पाकिस्तान के संघर्ष के बीच एक ऐसा उन्माद पैदा हुआ था जो भारत की पाकिस्तान पर जीत या कम से कम पाक ऑक्यूपाइड कश्मीर के ऊपर कब्जा करने से कम पर मानने से तैयार नहीं था। यह वास्तविकता भले ही ना हो लेकिन भारत के एक समूह की, विशेष कर उत्तर भारत के समूह की यह इच्छा पिछले एक हफ्ते से सोशल मीडिया के पन्नों पर तैर रही थी ऐसे में अचानक युद्ध विराम की घोषणा ने इस उन्माद को एक बड़ा धक्का लगाया।

अंतरराष्ट्रीय कूटनीति, युद्ध नीति सामान्य व्यक्ति के समझ में नहीं आती उसे तो बस उन्माद चाहिए, उसे तो बस जीत चाहिए और जब यह जीत सामने दिख रही हो और उसके बाद युद्ध विराम की घोषणा हो जाए तो जाहिर सी बात है कि उन्माद की खुराक को अचानक ग्रहण लग जाता है और यह ग्रहण बेचैनी पैदा करता है ।

यही बेचैनी फिलहाल सोशल मीडिया पर दिख रही है खास बात यह है कि कल तक नरेंद्र मोदी को अजेय नायक मानने वाले बहुसंख्यक समाज का मत फिलहाल उनके खिलाफ चल गया है।

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दरअसल उन्माद के इस दैत्य को खड़ा भी इसी सत्ता ने किया था। बीते 12 सालों में हर मसले को उन्माद में बदल देना यही रणनीति थी और इस रणनीति का सबसे बड़ा अस्त्र भारत का टेलीविजन मीडिया था।

सामान्य घटनाओं की उत्तेजना पूर्ण प्रस्तुति और उसके जरिए जनता के एक बड़े हिस्से के मानस का निर्माण करना भारतीय टेलीविजन पत्रकारिता की पहचान बन गया है। एक ऐसी पत्रकारिता जिसमें तथ्य और सत्य कहीं बहुत पीछे हो, सामने हो तो सिर्फ उत्तेजना और उन्माद और अब यही टेलीविजन मीडिया पिछले एक हफ्ते से युद्ध को उन्माद में तब्दील कर रहा था।

हद तो तब हो गई जब एक रात भारत के टेलीविजन चैनलों ने पाकिस्तान के आधा दर्जन शहरों पर ही कब्जा कर लिया ख़बरें यहां तक आने लगी कि भारतीय नौसेना ने क्वेटा पर हमला कर दिया है।

उत्तेजना और उन्माद के इस माहौल में किसी ने यह जानने की कोशिश नहीं की कि क्वेटा समुद्र के किनारे नहीं है बल्कि समुद्र से करीब 300 किलोमीटर दूर है और वह नौसेना के जद में नहीं आता है । मगर ऐसे वाक्य में विवेक की कोई जरूरत नहीं होती ।विवेक ही उन्माद का सबसे बड़ा शत्रु है और इसी का नतीजा यह की उन्माद भरे वातावरण में अगर कोई कोई विवेकशील बात करता है तो सोशल मीडिया के ट्रॉल्स उस पर हमलावर हो जाते हैं।

PHOTO : SOCIAL MEDIA

बीते 12 साल के पन्नों को पलट के देखें तो आपको दिखेगा की बहुत सारी ऐसी घटनाएं हुई जिसकी सत्यता सिद्ध नहीं हुई मगर तात्कालिक उन्माद ने एक मानस बना दिया जिसमें जिसे दोषी ठहरा दिया गया वह न्यायालय से बरी होने के बाद भी कुछ लोगों की निगाह में दोषी ही बना रहा।

स्वस्थ लोकतंत्र बीमार होने लगा और यहां पर असहमति की आवाज को देशद्रोह बताने का एक सिलसिला शुरू हो गया था। इस सिलसिले को बढ़ाने में सत्ता प्रतिष्ठानों की बड़ी भूमिका थी। नीतियों से असहमति देशद्रोह का प्रतीक बता दी गई और सत्ताधारी पार्टी के नेताओं के तमाम खराब बयानों को भी देशभक्त बताने में कोई कमी नहीं रखी गई ।नतीजतन देश में सामाजिक विघटन की प्रक्रिया तेज होने लग रही थी। भला हो इस युद्ध का कि इसने देश में चल रहे हिंदू मुसलमान के बंटवारे की राजनीति को एक तात्कालिक विराम तो जरूर दे दिया।

भारतीय मुसलमान को पाकिस्तान परस्त और गद्दार ठहरने वाले लोगों की जुबान पर एक बड़ा ताला तब लग गया जब पहलगाम की आतंकी घटना के बाद देश के मुसलमान ने एक स्वर में पाकिस्तान के खिलाफ मोर्चा खोल दिया ।

आतंकवादियों को सबक सिखाने की मांग पूरे देश में एक स्वर में आई और भारत में जब पाकिस्तान पर एयर स्ट्राइक की तो उसके बाद जाति और धर्म भूलकर पूरा देश एकजुट खड़ा हो गया ।

मगर उन्मादियों ने यहां भी अपना कारोबार जारी रखा सोशल मीडिया पर उंगलिया चलाने वाले लोगों ने पीओके में भारत के कब्जे का आह्वान कर दिया और लाहौर से लेकर इस्लामाबाद तक पाकिस्तान की धरती को सपाट बनाने की बातें लिखनी शुरू कर दी थी जाहिर से बात है यह सिर्फ उन्माद ही था क्योंकि कूटनीति और युद्ध को समझने वाले लोगों को पता है कि ऐसा होने वाला बिल्कुल नहीं था ।

खुद का खड़ा किया हुआ राक्षस खुद को ही असुरक्षित कर देता है। उन्माद के जरिए सत्ता हासिल करने की रणनीति रखने वाला फिलहाल अपने ही पैदा किए हुए राक्षस का शिकार बन रहा है।

Radio_Prabhat
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