Saturday - 6 January 2024 - 10:46 AM

बेमानी होगा कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास के बिना समस्या का हल ढूंढना

डॉ रवीन्‍द्र अरजरिया

विश्व के सबसे बडे लोकतंत्र में चुनावी घमासान शुरू हो गया है। जम्मू-कश्मीर को लेकर आरोपों-प्रत्यारोपों का बाजार गर्म है। कांग्रेस पार्टी में मुख्य सलाहकार की अप्रत्यक्ष भूमिका निभाने वाले सैम पित्रोदा के बयानों ने जहां पाकिस्तानी सरकार को आतंकवाद के मसले पर क्लीन चिट दे दी तो वहीं पार्टी के नेताओं के पूर्व में दिये वक्तव्यों को भी दृढता प्रदान कर दी।

महबूबा मुख्ती तो पहले से ही अलगाववादियों के साथ खडीं हैं। फारुख अब्दुल्ला का पाकिस्तानी राग कोई नई बात नहीं है। ऐसे में पुलवामा हमला, उसके बाद की एयर स्ट्राइक और फिर दुनिया भर में आतंकवाद के विरुद्ध एकजुटता का वातावरण सहित अनेक ऐसे घटनाक्रम रहे, जिसके केन्द्र में कश्मीर, कश्मीर और केवल कश्मीर ही नजर आता रहा।

जेहाद के नाम पर होने वाले खून खराबे ने जहां 12 वर्षीय बच्चे की निर्मम हत्या करके सीमापार से आने वाले कसाइयों की करनी उजागर कर दी वहीं नवयुवती की मांग करने से उनकी खुदा के कदमों में परोसे जाने वाली दिखावटी वफादारी भी बेपर्दा हो गई। इसी कश्मीर में पंडितों को अपनी पैत्रिक जायजाद से बेदखल करके आतिताइयों नें दर-व-दर की ठोकरें खाने के लिए मजबूर कर दिया था।

देश की राजधानी से लेकर अन्य भागों में खानाबदोश की तरह जिन्दगी बसर करने वाले कश्मीरी पंडितों को कोई भी पार्टी महात्व नहीं दे रही है। विचार चल ही रहा था कि तभी ट्रेन एक झटके के साथ रुक गई। वर्तमान में लौट आया। जम्मू जाने वाली यह ट्रेन किसी स्टेशन पर रुकी थी। विचारों से बाहर आया देखकर सहयात्री ने सतपाल शर्मा के रूप में अपना परिचय दिया।

भारतीय जनता पार्टी की जम्मू-कश्मीर प्रदेश इकाई में अनेक पदों पर रहने के साथ-साथ वे समाजसेवा के क्षेत्र में भी सक्रिय रहते हैं। परिचय के आदान-प्रदान के बाद हमने अपने विचारों को गति देने की गरज से कश्मीरी पंडितों के मुद्दे को उठाया। कश्मीर को पुरातन तपोभूमि के रूप में रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि मुस्लिम आक्रान्ताओं से पहले यह पूरा भू भाग साधु, संतों और साधकों से भरा रहता था। यहां की नैसर्गिक सुषमा. ऊर्जावान वातावरण और हिमाच्छादित पर्वत श्रंखलायें, अध्यात्म के नये सोपान तय करने में सहायक रहीं थीं।

कालांतर में अनेक देवालयों की स्थापना भी हुई जिनके अवशेष आज भी अपने श्रृंगार की गुहार लगा रहे है। बाह्य आक्रमणकारियों ने अपनी दमनात्मक नीतियों के तहत यहां के निवासियों का बलपूर्वक धर्म परिवर्तन कराया, उनका शोषण किया और सौगात में दे दिया धार्मिक उन्माद। विषय से हटकर ऐतिहासिक पृष्ठभूमि की विवेचना करते देखकर हमने उन्हें बीच में ही टोकते हुए हुर्रियात नेताओं की मानसिकता, पाकिस्तानी षडयंत्र और जेहाद के नाम परोसा जाने वाले खून-खराबे पर हो रहे मंथन के मध्य कश्मीरी पंडितों की समस्याओं पर निरंतर अपनाये जाने वाले उपेक्षात्मक रवैये पर समीक्षात्मक टिप्पणी करने का बात कही।

वर्तमान हालातों की विस्तार से व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा कि बेमानी होगा कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास के बिना समस्या का हल ढूंढना। घर से बेघर हो चुके अनगिनत हिन्दू परिवार आज अपने ही देश में शरणार्थियों की तरह जिन्दगी गुजार रहे हैं। उनकी आपबीती का साक्षात्कार करने पर पत्थर का कलेजा भी कांप जायेगा। ईमानदाराना बात तो यह है कि पिछली सरकारों ने इस ओर कोई ध्यान ही नहीं दिया। उनके लिए पाकिस्तानी राग, हुर्रियात और जेहादियों की जमात ही महात्वपूर्ण रही। देश को भटकाने का निरंतर प्रयास किया जाता रहा।

सीमापार से घुसपैठियों की निरंतर आमद होती रही। कहीं हथियारों की दम पर, तो कहीं जेहाद के नाम पर उन्हें पनाह दी जाती। आतंकियों की सुरक्षा में पत्थरबाजों की जमात उतारी जाती। कट्टरपंथियों की भडकाऊ तकरीरें बंद कमरों में आज भी ज्वालामुखी पैदा करने का काम कर रहीं हैं। एक बार फिर हमने टोकते हुए प्रदेश में भाजपा समर्थित महबूबा सरकार के कार्यकाल की ओर उनका ध्यानाकर्षित किया जहां मुकदमे वापिसी, शान्त अवधि और आक्रमण शून्य सीमा जैसे निर्णय लिए गये थे।

गुमराह लोगों को मुख्यधारा में लाने के प्रयासों का प्रयोगवादी दृष्टिकोण स्थापित करते हुए उन्होंने कहा कि केन्द्र को केवल पांच वर्ष मिले और हमें तो नगण्य समयावधि ही प्राप्त हुई। लम्बे समय से बिखरे समीकरणों, स्थितियों और मानसिकताओं को बदलने में समय लगता है और फिर प्रदेश में हमें स्पष्ट बहुमत भी तो नहीं मिला था। सो लचीलेपन से ही सुधारात्मक प्रयासों की हर सम्भव कोशिश की गई। चर्चा चल ही रही थी कि तभी वेटर ने कूपे में प्रवेश किया। काफी के प्याले दौनों बर्थों के मध्य लगी टेबिल पर सजाने लगा।

बातचीत में व्यवधान उत्पन्न हआ परन्तु तब तक हमें अपने विचारों को गति देने हेतु पर्याप्त सामग्री प्राप्त हो चुकी थी। सो काफी की चुस्कियां लेते हुए वातावरण को हल्का फुल्का करना शुरू कर दिया। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नये मुद्दे के साथ फिर मुलाकात होगी। तब तक के लिए खुदा हाफिज।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं, लेख उनके निजी विचार हैं)

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