Saturday - 6 January 2024 - 4:05 PM

अधेड़ ‘अयोध्या रामायण मेला’ को जवानी की तरफ लौटाने की मुहिम शुरू..

 

ओम प्रकाश सिंह

 

  • आनंद, दृष्टि बोध, रस संचार व हिंदुस्तानी को बढ़ावा देने का नाम है रामायण मेला..
  • भारतीय परंपरा से सजी प्रादेशिक झांकियों का प्रदर्शन भी होगा अयोध्या रामायण मेला में

डॉक्टर लोहिया के रामायण मेला की परिकल्पना में आनंद, दृष्टि बोध, रस संचार व हिंदुस्तानी को बढ़ावा देना शामिल था। डॉक्टर लोहिया जानते थे कि सांस्कृतिक कार्यक्रमों के जरिए भारत की अनेकता को एकता में बदला जा सकता है। रामायण मेला घोषणा पत्र में डा लोहिया ने कहा था कि चित्रकूट के साथ अयोध्या में यह मेला आयोजित होना चाहिए। रामायण मेले में अनेक धर्माचार्य, संत महात्मा, देश-विदेश के रामकथा मर्मज्ञ तथा विद्धान भाग लेते हैं। इस अवसर पर रामलीला, प्रवचन तथा विभिन्न संस्थाओं द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम भी होते हैं।

तेइस अक्टूबर को राम नगरी में दीपोत्सव है और 27 नवंबर से लेकर 30 नवंबर तक चार दिवसीय रामायण मेला। अयोध्या को जानने समझने के लिए इन तारीखों को अपनी डायरी में नोट कर लीजिए, समय मिले तो अयोध्या आइए। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की आधुनिक रामनगरी आपका स्वागत करने को तैयार है।दिव्य दीपोत्सव जहां एक दिन का ‘सरकारी मेला’ है वही रामायण मेला जन सहभागिता का खेला। अयोध्या न केवल राम के जन्म से जुड़ा स्थान है बल्कि यह और भी प्राचीनता स्वंय में समेटे हुए है राजसी सरयू नदी का दर्शन मात्र अपने आप में एक जीवन भर के पुण्य का अनुभव है। यहां हनुमान जयंती, भरत मिलाप, राज्याभिषेक जैसे प्रमुख सांस्कृतिक कार्यक्रम होते रहते हैं। अब इसमें हेरिटेज वाक और दीपोत्सव भी शामिल हो गया। राम की ही महिमा है कि यहां के आयोजन भारत के अन्य मेलों और त्यौहारों की तुलना में कहीं अधिक आकर्षक होते हैं।

आदि पुराण जैन-धर्म का बड़ा प्रामाणिक ग्रन्थ है। इसमें लिखा है कि विश्व की कर्मभूमि में अयोध्या पहिला नगर है। इसके सूत्रधार इन्द्रदेव थे और इसे देवताओं ने बनाया था। पहिले मनुष्य की जितनी आवश्यकतायें थीं उन्हें कल्पवृक्ष पूरी किया करता था। परन्तु जब कल्प-वृक्ष लुप्त हो गया तो देवपुरी के टक्कर की अयोध्या पुरी पृथ्वी पर बनाई गई। अयोध्या के विभिन्न पहलुओं से परिचित कराना भी रामायण मेले का उद्देश्य है।

रामायण मेला के आयोजन की परिकल्पना डॉ॰ राममनोहर लोहिया ने सन् 1961 में की थी। 1973 में पहली बार उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलापति त्रिपाठी ने चित्रकूट में रामायण मेला आयोजित किया था, जबकि अयोध्या में इसकी शुरूआत 1982 में तत्कालीन मुख्यमंत्री श्रीपति मिश्र ने की थी जिसका उद्देश्य रामायण मेले को केन्द्र में रखकर अयोध्या का विकास करना था। इकतालीसवें रामायण मेले का भी उद्देश्य अयोध्या के विकास से जुड़ा है।

आनन्द, प्रेम और शान्ति के आह्वान के मुख्य प्रयोजन के साथ राममनोहर लोहिया ने रामायण मेला आयोजित करने की संकल्पना की थी। उन्हें लगता था कि आयोजन से भारत की एकता जैसे लक्ष्य भी प्राप्त किए जाएँगे। लोहिया मानते थे कि कम्बन की तमिल रामायण, एकनाथ की मराठी रामायण, कृत्तिबास की बंगला रामायण और ऐसी ही दूसरी रामायणों ने अपनी-अपनी भाषा को जन्म और संस्कार दिया। उनका विचार था कि रामायण मेला में तुलसी की रामायण को केन्द्रित करके इन सभी रामायणों पर विचार किया जाएगा और बानगी के तौर पर उसका पाठ भी होगा। लोहिया का निजी मत था कि तुलसी एक रक्षक कवि थे। जब चारों तरफ़ से अझेल हमले हों, तो बचाना, थामना, टेका देना, शायद ही तुलसी से बढ़कर कोई कर सकता है। जब साधारण शक्ति आ चुकी हो, फैलाव, खोज, प्रयोग, नूतनता और महाबल अथवा महा-आनन्द के लिए दूसरी या पूरक कविता ढूँढ़नी होगी।

अयोध्या में आयोजित रामायण मेला 41 वें वर्ष में प्रवेश कर चुका है। जन्म काल से लेकर जवानी के दिनों तक रामायण मेला अपने उद्देश्यों की खुशबू देश दुनिया में बिखेरता रहा। पिछले दो दशक से यह मेला औपचारिक बन गया था। अब रामायण मेला की कमान उस आशीष मिश्र को समिति ने सौंपा है जिसने अवध विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति आचार्य मनोज दीक्षित के साथ मिलकर दीपोत्सव को जन्म दिया था। दीपोत्सव ने अयोध्या की छवि को वैश्विक पटल पर निखारा है। योगी सरकार का थोड़ा सा भी रुख सकारात्मक रहा तो 41वां रामायण मेला वैश्विक पटल पर अपनी छाप छोड़ेगा और एक नई शुरुआत होगी।

ये भी पढ़ें-शादी के बाद सबकुछ कर लिया लेकिन चार दिन बाद…

इकतालीसवें रामायण मेले का उद्देश्य ही अयोध्या को भारत व वैश्विक पर्यटन मानचित्र पर स्थापित करना है। संयोजक आशीष मिश्र की रणनीति में पर्यटन की दुनिया से जुड़े ट्रेवल राइटर, टूर ऑपरेटर , ब्लॉगर , यूट्यूबर, न्यूज़ चैनल , प्रिंट मीडिया, पत्रिका के प्रमुखों को अयोध्या बुलाना शामिल है। समस्त शंकराचार्य, जगत गुरु, अखाड़ा प्रमुखों के साथ सभी धर्मों के विद्वानों ,भारतीय मूल के समस्त देशों में राजदूत, राज्यपाल, मुख्यमंत्री समेत समस्त राजनीतिक दलों के प्रमुख हिंदू संप्रदाय के संत गुरु, देश में सभी प्रमुख सांस्कृतिक कलाकार, जीवित भारत रत्न , औद्योगिक घरानों को आमंत्रण दिया जाएगा। हर प्रदेश के सांस्कृतिक व पर्यटन विभाग को भी आमंत्रण किया जाएगा। गणतंत्र दिवस पर देश की राजधानी दिल्ली में निकलने वाली झांकियों की तरह भारतीय परंपरा से सजी झांकियों का प्रदर्शन भी रामायण मेला में करने की कवायद है।

ये भी पढ़ें-शर्मनाक कांड में गिरफ्तार नेताजी: महिला के साथ आपत्तिजनक हालत में….

Radio_Prabhat
English

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com