Saturday - 6 January 2024 - 4:42 PM

भारतीय संस्कृति और परंपरा की भी प्रतिनिधि थीं सुषमा स्वराज

प्रीति सिंह

सुषमा स्वराज भारतीय राजनीति में पहली ऐसी नेता थी जो भारतीय परिधान, भारतीय विधान और भारतीय पहचान की बहुत बड़ी पोषक थीं। नेता वह हमेशा बहुत बड़ी रहीं परंतु उन्होंने अपने भीतर छिपी भारतीय महिला को उससे भी बड़ा रखा।

करीब एक दशक पहले जब महिलाओं का साड़ी और बिंदी से मोहभंग हो रहा था, तब घर की बड़ी बुजुर्ग महिलाएं उन्हें उलाहना देते हुए कहती थीं-सुषमा स्वराज को देखों, कितनी बड़ी नेता हैं। देखों कितने अच्छे से साड़ी बांधती है। मांग में खूब सिंदूर भरती है और बड़ी सी बिंदी लगाती हैं। तुम लोग उनसे बड़ी हो क्या?

आज भी महिलाओं के बीच सुषमा स्वराज का जिक्र होता है, जब संस्कृति और परंपरा की बात होती है। दरअसल वह राजनेता के साथ-साथ भारतीय संस्कृति और परंपरा की भी प्रतिनिधि रही हैं।

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मांग में भरा मोटा सिंदूर, बड़ी बिंदी और हरदम साड़ी में लिपटी सुषमा स्वराज विदेश मंत्री थी, लेकिन वह सबको बहुत अपनी सी लगती थी। उनका पहनावा और उनकी मुस्कान उनको हरदिल अजीज बनाती थी। वह जितना अपने ओजस्वी भाषण के लिए जानी जाती थी उतना ही वह अपने भारतीय संस्कृति और परंपरा का निर्वहन करने के लिए भी जानी जाती थी।

करवाचौथ हो या तीज। वह हर त्योहार बड़े मन से महिलाओं के साथ मनाती थी। जब वह विदेश मंत्री थी, उस दौरान उन्होंने  करवाचौथ बड़े धूमधाम के साथ मनाया था।

06 अगस्त 2019 को सुषमा स्वराज के देहांत के साथ ही भारतीय राजनीति का एक अध्याय समाप्त हो गया।

सात बार सांसद और तीन बार विधायक रह चुकी सुषमा स्वराज दिल्ली की पांचवीं मुख्यमंत्री, 15वीं लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष, संसदीय कार्य मंत्री, केंद्रीय सूचना प्रसारण मंत्री, केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री और विदेश मंत्री रह चुकी हैं।

सुषमा स्वराज अब इस दुनिया में नहीं हैं परंतु उनकी सीधी-साधी राजनीति को हमेशा इस देश में याद किया जायेगा। उनका मुस्कुराता चेहरा और पूरे मांग में जमकर भरा सिंदूर आज के इस आधुनिक युग में भारतीय राजनीतिक महिला का एक आदर्श उदाहरण हमेशा प्रस्तुत करता रहेगा।

ऐसा कभी लगा ही नहीं कि राजनीति उनके भारतीय महिला होने के ऊपर हावी हो पाया हो। नेता थीं पर उन्होंने हमेशा ये दर्शाया कि राजनीति में आने के लिए अपनी परंपरा से छिटकने की कोई जरूरत नहीं है और यही एक गुण ऐसा था जिससे अटल बिहारी बाजपेयी उन्हें बेटी के रूप में तथा पूरी पार्टी के बड़े से बड़े नेता दीदी के रूप में स्वीकार करते थे।

वह सिर्फ परिधान से ही नहीं दिल से भी भारतीय महिला थी और उनका मंद-मंद मुस्कान से दमकता चेहरा हमेशा स्नेह से लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता रहता था।

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