सैय्यद मोहम्मद अब्बास
लखनऊ। पूरे देश में 29 अगस्त को हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद सिंह की याद में राष्ट्रीय खेल दिवस मनाया जाता है। इतना ही नहीं हॉकी को राष्ट्रीय खेल का दर्जा भी मिला हुआ लेकिन भारतीय हॉकी गौरवपूर्ण अतीत वर्तमान में दम तोड़ चुका है। हॉकी के नाम पर ही खेल हो जाता है।
इसके उलट क्रिकेट जैसा खेल देश में लगातार विकास दौड़ की लगा रहा है। आलम तो यह है कि बाजारीकरण के खेल में क्रिकेट अव्वल रहा।
कुछ साल पहले तक भारतीय हॉकी दम तोड़ रही थी। हालांकि अब भारतीय हॉकी एक बार फिर सुनहरे अतीत को वर्तमान में जीती हुई नजर आ रही है क्योंकि उसने कई बड़े टूर्नामेंट में शानदार प्रदर्शन किया है। लेकिन हम आपको बताना चाहेंगे आज भी हॉकी को वो मुकाम नहीं मिल सका है जो क्रिकेट को मिलता है।
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ओलम्पिक में आठ बार सोना जीतने वाली भारतीय टीम इतनी कमजोर होगी किसी ने यह नहीं सोचा था। अतीत सुनहरा था लेकिन वर्तमान लगातार खराब हो चुका है।
जहां एक ओर भारतीय हॉकी टीम प्रदर्शन देने में नाकाम रही तो भारतीय खेल प्रेमियों ने हॉकी से मुंह मोडऩे में देर नहीं की है।
इस वजह से राष्ट्रीय खेल होने पर सवाल उठने लगा। हालांकि भारतीय हॉकी मैच जीत जाती है तो उसको उतनी तवज्जो नहीं मिलती है लेकिन क्रिकेट में जीत का असर इतना होता है कि मीडिया उसकी तारीफ करते थकता नहीं है।
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हॉकी लगातार लोगों की आंखों से गायब होती जा रही है। हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद को लेकर सरकार की राय बदलती रहती है। जिसकी हॉकी को पूरी दुनिया सलाम करती है उसी के साथ बेगाना जैसा बर्ताव किया जाता है।
मेजर ध्यानचंद को अब तक भारत रत्न नहीं दिया गया है। हालात तो यह है कि उनके नाम पर साल 2014 में खेल कर दिया गया था।
पूर्व ओलम्पियन और मेजर ध्यानचंद के पुत्र अशोक कुमार ने जुबिली टीवी के खास कार्यक्रम गेम प्लॉन में कहा था कि ध्यानचंद को देश ही बल्कि पूरा विश्व जानता है।
भारत रत्न देने को लेकर अशोक ध्यानचंद कहते थे कि उनके नाम पर स्टेडियम है। उनके पिता के नाम पर खेल दिवस मनाया जाता है लेकिन जब खेल रत्न देने की बात आती है तो सरकार मुंह फेर लेती है। इतना ही नहीं दद्दा को भारत रत्न देने दिलाने के लिए लोग धरना देते हैं।
इसके आलावा लोग रैली तक निकालते हैं लेकिन सरकार तब भी उनके नाम पर विचार नहीं करती है।
आलम तो यह है कि सरकारी सिस्टम में ध्यानचंद सिर्फ फाइलों में जिंदा है इतना ही नहीं मेजर ध्याचंद अब योजनाओं और प्रतिमाओं तक ही सीमित रह गए है।
उन्होंने गेम प्लॉन में यह भी बताया था कि आखिर कैसे हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद के नाम को हटाकर सचिन के नाम को आगे बढ़ाया गया था।
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उन्होंने बताया कि 17 जुलाई 2013 को खेल मंत्रालय ने पहली बार मेजर ध्यानचंद के नाम को थोड़ी जागरूक नजर आई थी और विधिवत रूप से ध्यानचंद को भारत रत्न देने के लिए सिफारिश पीएम को भेजी थी।
ऐसा लग रहा था कि शायद ध्यानचंद को इतना बड़ा सम्मान मिल जाएगा लेकिन हुआ इसका एकदम उलटा। उन्होंने कहा कि मेजर ध्यानचंद की फाइल पीएमओ में अटकी रही लेकिन जब फैसले की घड़ी आई तो क्रिकेट के भगवान के नाम पर अचानक से मुहर लगा दी गई।
ध्यानचंद के बेटे और स्वयं 1975 की विश्व विजेता भारतीय हॉकी टीम का हिस्सा रहे अशोक ध्यानचंद बरसों से अपने पिता के सम्मान के लिए लड़ रहे हैं।
उन्होंने 2012 से ही खेल मंत्रालय और सरकार से अपने पिता को भारत रत्न देने की मांग कर रहे हैं लेकिन सरकार हर बार उनके नाम पर बेरुखी दिखाती है। उन्होंने कहा कि सबकी नजर ध्यानचंद को महान जरूर है लेकिन भारत के रत्न नाम पर उनके पास कोई जवाब नहीं है।
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भारतीय हॉकी के सफर पर एक नजर
- 1928 से 1956 के बीच छह बार लगातार स्वर्ण पदक जीता
- हालांकि 1960 ओलम्पिक में स्वर्ण जीता है
- 1980 को मास्को ओलंपिक खेलों में अंतिम बार स्वर्ण जीता
- लेकिन अब कलात्मक व कौशलपूर्ण हॉकी का सूरज डूब गया
- राष्ट्रीय खेल हॉकी पर क्यों उठ रहा सवाल
- सरकार कब देंगी मेजर ध्यानचंद को भारत रत्न
- हॉकी खिलाडिय़ों ने की ध्यानचंद को भारत रत्न देने की मांग
- हिटलर की मौजूदगी में 15 अगस्त को ध्यानचंद ने लहराया था भारत का परचम
- ध्यानचंद ने आखिरी अंतराष्ट्रीय मैच 1948 में खेला
- करियर के दौरान वे 400 से अधिक गोल कर चुके थे