Thursday - 11 January 2024 - 9:13 AM

तो क्या 2022 की तैयारी में लगी हैं प्रियंका गांधी

विवेक श्रीवास्तव

लोकसभा चुनाव शुरू होने में बस थोड़ा ही वक्त बचा है। उसमें 2022 के विधानसभा चुनाव की बात करना थोड़ा बेमानी सा लगता है। मगर उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की रणनीति की बात करें तो प्रियंका गांधी को लाने की असली वजह 2019 का लोकसभा चुनाव नहीं बल्कि 2022 का विधानसभा है। जी हां, इस बात का संकेत खुद प्रियंका गांधी ने पार्टी कार्यकर्ताओं को दिया है।

दरअसल प्रियंका गांधी गुरुवार को अमेठी में थीं। जहां के गौरीगंज इलाके में पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ मीटिंग कर रही थीं। इसी दौरान उन्होंने एक कार्यकर्ता से पूछा कि, “आप चुनाव की तैयारी कर रहे हैं ना”। अभी कार्यकर्ता कोई जवाब देता इससे पहले ही उन्होंने कहा कि “मैं 2019 की नहीं 2022 की बात कर रही हूं”। वहीं इसके बाद रायबरेली में हुई पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ मीटिंग में भी उन्हें 2022 की तैयारी के लिए उन्होंने बोला।

इससे साफ पता चलता है कि कांग्रेस उत्तर प्रदेश में एक दूर की कौड़ी के साथ काम करने में जुटी है और प्रियंका गांधी की राजनीति में इंट्री 2019 को ध्यान में रखकर नहीं बल्कि 2022 को देखते हुए हुई है।

अयोध्या में प्रियंका, रामभक्त की शरण में मगर राम से दूरी

प्रियंका गांधी आज अयोध्या में हैं। जहां उन्होंने हनुमानगढ़ी में रामभक्त हनुमान का दर्शन किया। मगर थोड़ी ही दूरी पर स्थित रामलला से दूरी बनाये रखी। ऐसा नहीं है कि सिर्फ प्रियंका गांधी ने ही ऐसा किया है। इसके पहले वर्ष 2016 में किसान महायात्रा के दौरान राहुल गांधी भी अयोध्या पहुंचे थे।

मगर वे भी सिर्फ हनुमानगढ़ी ही दर्शन के लिए गए थे और राम की नगरी में रामलला से दूरी बनाए रखी थी। ये पहला मौका था जब 26 साल के बाद गांधी परिवार का कोई सदस्य अयोध्या पहुंचा था। इसके पहले वर्ष 1990 में राजीव गांधी अयोध्या गए थे। हालांकि उन्होंने कहीं दर्शन और पूजन नहीं किया था।

सवाल ये है कि जब राम की नगरी में रामलला के दर्शन नहीं करने थे तो अयोध्या जाने का क्या मक़सद। मतलब मक़सद साफ है, राजनीति। दरअसल अगर बीजेपी के हिन्दुत्व के मुद्दे को चुनौती देना है तो अयोध्या आना गांधी परिवार के लिए ज़रूरी है मगर रामलला से दूरी उनकी सियासी मजबूरी भी है।

क्योंकि अगर वो रामलला के दर्शन करेगी तो एक वर्ग उनसे नाराज़ होगा जो पार्टी कभी नहीं चाहेगी। चुनाव सिर पर हैं और चुनावी गणित और रणनीति में थोड़ी सी भी चूक बड़ा नुकसानदेह हो सकती है।

प्रियंका की सक्रियता कहीं बिगाड़े न गठबंधन का गणित

दरअसल अखिलेश यादव ने जब बसपा से गठबंधन का फार्मूला बनाया था तब उन्हें लगा था कि इससे यूपी में बीजेपी से गठबंधन का सीधा मुकाबला होगा और दलित- मुसलमान और यादवों के गठजोड़ के आगे बीजेपी टिक नहीं पाएगी।

हालांकि, कांग्रेस के गठबंधन से दूर रहने और प्रियंका गांधी वाड्रा की बढ़ती सक्रियता से गठबंधन की चुनावी गणित गड़बड़ा सकती है। प्रियंका पहले ही वाराणसी, प्रयागराज, मिर्जापुर का दौरा कर चुकी हैं, गंगा पर नाव की सवारी करके अब वो अयोध्या का दौरा भी कर चुकी हैं।

मगर कांग्रेस का गठबंधन से अलग रहना और उत्तर प्रदेश में प्रियंका गांधी की सक्रियता गठबंधन का चुनावी गणित बिगाड़ सकती है। प्रियंका की सक्रियता ने यूपी में त्रिकोणीय मुकाबला कर दिया है।

प्रियंका के आने से कोई करिश्मा भले न हो मगर यूपी में कांग्रेस को मज़बूती तो ज़रूर मिलेगी। ये दीगर बात है कि इसका जितना फायदा कांग्रेस को मिलेगा उससे कहीं ज्यादा फायदा बीजेपी को भी हो सकता है।

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