प्रो. अशोक कुमार
आज, भारत में छात्र संघ चुनाव लिंगदोह समिति की सिफारिशों और सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देशों के अनुसार होते हैं।
इन नियमों का उद्देश्य चुनावों को स्वतंत्र, निष्पक्ष और पारदर्शी बनाना है और यह सुनिश्चित करना है कि छात्रों का प्रतिनिधित्व करने वाले लोग वास्तव में उनके हितों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
भारतीय विश्वविद्यालयों में छात्र संघ चुनाव होने चाहिए या नहीं, यह एक जटिल प्रश्न है जिस पर वर्षों से बहस होती रही है। दोनों पक्षों के मजबूत तर्क हैं, और अंतिम निर्णय व्यक्तिगत मूल्यों और विश्वासों पर निर्भर करता है।
छात्र संघ चुनावों के पक्ष में तर्क
• छात्र प्रतिनिधित्व: चुनाव छात्रों को विश्वविद्यालय प्रशासन के साथ अपनी चिंताओं और मुद्दों को उठाने के लिए एक मंच प्रदान करते हैं। यह छात्रों को उनकी शिक्षा और परिसर के जीवन में अधिक सक्रिय भूमिका निभाने में सशक्त बनाता है।
• नेतृत्व विकास: चुनाव प्रक्रिया छात्रों को नेतृत्व कौशल, सार्वजनिक बोलने और बहस करने की क्षमता, और टीम वर्क विकसित करने का अवसर प्रदान करती है। ये कौशल भविष्य के लिए फायदेमंद हो सकते हैं, चाहे छात्र किसी भी करियर का चयन करें।
• राजनीतिक जागरूकता: चुनाव छात्रों को राजनीतिक प्रक्रिया और उनके अधिकारों के बारे में जागरूक करते हैं। यह उन्हें जिम्मेदार नागरिक बनने के लिए प्रोत्साहित कर सकता है और चुनावों में भाग लेने और अपने समुदायों में योगदान करने के लिए प्रेरित कर सकता है।
• विविधता और समावेश: चुनाव विभिन्न पृष्ठभूमि और विचारधाराओं के छात्रों को प्रतिनिधित्व करने का अवसर प्रदान करते हैं। यह परिसर में अधिक समावेशी और स्वागत योग्य वातावरण बनाने में मदद कर सकता है।
छात्र संघ चुनावों के खिलाफ तर्क
• राजनीतिकरण: चुनाव परिसर में राजनीतिक दलों और गुटों के बीच विभाजन पैदा कर सकते हैं। इससे तनाव, संघर्ष और यहां तक कि हिंसा भी हो सकती है।
• ध्यान भंग: चुनाव प्रचार और गतिविधियों में छात्रों का बहुत अधिक समय लग सकता है, जिससे उनकी पढ़ाई और शैक्षणिक प्रदर्शन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
• अनुचित प्रभाव: कुछ का तर्क है कि चुनावों में अक्सर धन, शक्ति और प्रभाव वाले छात्रों या समूहों का अनुचित लाभ होता है।
• प्रासंगिकता: कुछ का मानना है कि छात्र संघ अब उतने प्रासंगिक नहीं हैं जितने पहले हुआ करते थे। आधुनिक विश्वविद्यालयों में छात्रों की चिंताओं का प्रतिनिधित्व करने के लिए कई अन्य तरीके मौजूद हैं, जैसे कि छात्र समितियां और प्रशासन के साथ सीधा संवाद।
निष्कर्ष
छात्र संघ चुनावों का विषय जटिल है और इसके पक्ष और विपक्ष दोनों में मजबूत तर्क हैं। नई शिक्षा नीति में छात्रों की भागीदारी देखकर वास्तव में आश्चर्य होता है। विभिन्न समिति में छात्रों का जुड़ाव विश्वविद्यालयों का है लेकिन छात्र संघ का कोई उल्लेख नहीं है, मैं चाहता हूं और आशा करता हूं कि जब योजना का विवरण आएगा, तो छात्र संघ के गठन और कार्य के बारे में कुछ योजना होगी ! यह प्रत्येक विश्वविद्यालय और उसके छात्र समुदाय पर निर्भर करता है कि वे तय करें कि उनके लिए क्या सही है।
(पूर्व कुलपति कानपुर, गोरखपुर विश्वविद्यालय , विभागाध्यक्ष राजस्थान विश्वविद्यालय)