Sunday - 7 January 2024 - 4:37 AM

महाशिवरात्रि से जुड़ी पौराणिक कथाएं

फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को हर साल महाशिवरात्रि पर्व मनाया जाता है। ये साल की आने वाली 12 शिवरात्रियों में से सबसे खास होती है। इस दिन माता पार्वती और  भगवान शिव का विवाह हुआ था।

इस साल शनिवार, 18 फ़रवरी को महाशिवरात्रि मनाया जाएगा है। महाशिवरात्रि के दिन ही मंदिरों में शिव भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। भक्‍त इस दिन व्रत रखते हैं, भगवान को बेलपत्र चढ़ाते हैं और भगवान शिव की विधिवत पूजा करते हैं।

प्रचलित पौराणिक कथाएं

पौराणिक कथाओं की माने तो महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव शिवलिंग के रूप में प्रकट हुए थे। इसी दिन पहली बार शिवलिंग की भगवान विष्णु और ब्रह्माजी ने पूजा था। ये भी मान्यता है कि इस घटना के चलते महाशिवरात्रि के दिन शिवलिंग की विशेष पूजा की जाती है।

दूसरी प्रचलित कथा के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन ही भगवान शंकर और माता पार्वती का विवाह हुआ था। इसी वजह से नेपाल में महाशिवरात्रि के तीन दिन पहले से ही मंदिरों को मंडप की तरह सजाया जाता है।

मां पार्वती और शिव जी को दूल्हा-दुल्हन बनाकर घर-घर घुमाया जाता है और महाशिवरात्रि के दिन उनका विवाह कराया जाता है। इसी कथा के चलते माना जाता है कि कुवांरी कन्याओं द्वारा महाशिवरात्रि का व्रत रखने से शादी का संयोग जल्दी बनता है।

तीसरी प्रचलित कथा के मुताबिक भगवान शिव द्वारा विष पीकर पूरे संसार को इससे बचाने की घटना के उपलक्ष में महाशिवरात्रि मनाई जाती है.

दरअसल, सागर मंथन के दौरान जब अमृत के लिए देवताओं और राक्षसों के बीच युद्ध चल रहा था, तब अमृत से पहले सागर से कालकूट नाम का विष निकला. ये विष इतना खतरनाक था कि इससे पूरा ब्रह्मांड नष्ट किया जा सकता था. लेकिन इसे सिर्फ भगवान शिव ही नष्ट कर सकते थे.

तब भगवान शिव ने कालकूट नामक विष को अपने कंठ में रख लिया था. इससे उनका कंठ (गला) नीला हो गया. इस घटना के बाद से भगवान शिव का नाम नीलकंठ पड़ा।

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