न्यूज डेस्क
लोकसभा चुनाव अब अपने आखिरी पड़ाव पर पहुंच गया है। यूपी की 27 सीटों पर अगले दो चरणों में मतदान होगा। 2014 में इन सीटों में से 26 सीटों पर बीजेपी ने जीत हासिल की थी। लेकिन योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद खाली हुई गोरखपुर सीट पर उपचुनाव में बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा था।
हालांकि, योगी आदित्यनाथ अपनी पारंपरिक सीट गोरखपुर को इस बार पार्टी को वापस दिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाह रहे हैं। इसीलिए उन्होंने पार्टी प्रत्याशी रवि किशन शुक्ला को जीताने के लिए खुद कमान संभाली है।
योगी के साथ उनकी सेना हिन्दू युवा वाहिनी भी रवि के साथ-साथ कदम से कदम मिलाकर चल रही है और कभी “गोरखपुर में रहना है तो योगी-योगी कहना है” का नारा लगाने वाले अब “अश्वमेध का घोड़ा है, योगीजी ने छोड़ा है” का नारे लगा रहे हैं।
योगी के अलावा बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और आरएसएस ने भी गोरखपुर सीट पर दोबार पार्टी का झण्डा बुलंद करने के लिए पूरा जोर लगा दिया है। अमित शाह ने दलित वोटरों को रिझाने के लिए बीजेपी की स्पेशल टीम तैयार की है।
शाह ने कार्यकर्ताओं को हर संभव तरीकों का इस्तेमाल करने की हिदायत दी गयी है। यानी जो जिस तरह से माने, उसे उसी तरह से ट्रीट किया जाएगा। हर तरीके की आजमाइश के लिए दलित वोटरों पर फोकस कर लगाए गए कार्यकर्ता को अनआफिशियली लेकिन प्रैक्टिकली काफी पावर दिया गया है।
इसके अलावा आरएसएस ने भी अपनी टीम को मैदान में उतारा है, जो रवि किशन के लिए उसी तरीके से प्रचार कर रही है जैसे योगी आदित्यनाथ के लिए किया करती थी। इसके अलावा सह सर कार्यवाहक दत्तात्रेय होसबोले समेत संघ के कई बड़े पदाधिकारी गोरखपुर में डेरा डाले हुए हैं।
सूत्रों की माने तो इन दिनों संघ के सह सर कार्यवाहक दत्तात्रेय होसबोले गोरखपुर में बीजेपी को जीत दिलाने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं। योगी के साथ संघ ने भी गोरखपुर सीट को प्रतिष्ठा की सीट बना ली। शायद इसी लिए संघ के कार्यकर्ता डोर टू डोर कैंपेन करने के साथ दलित वोटरों को लुभाने के लिए बीजेपी द्वारा चलाया जा रहा मिशन ‘हजार दलित वोटरों पर एक बीजेपी कार्यकर्ता’ में भी काम कर रहे हैं।
बताते चले कि करीब 32 सालों के दरमियां गोरक्षनाथ मठ के प्रमुख दिग्विजय नाथ, महंत अवैद्य नाथ और 1998 से लेकर 2017 तक योगी आदित्यनाथ गोरखपुर से सांसद रहे। साल 2018 में उपचुनाव में बीजेपी को मिली हार के बाद अब आम चुनाव में भी योगी वो की लहर नज़र नहीं आती जो अब तक नज़र आया करती थी, जो राजनीति मंदिर से शुरु होकर हिंदुत्व का प्रतीक बनी, अब गोरखपुर के लोगों के बीच ये फ़ैक्टर फ़ीका लगता है। आरएसएस इसी कमी को पूरा करने के लिए मैदान में उतरी है।
सवर्ण बनाम पिछड़ी जाति की लड़ाई?
गोरखपुर में लगभग कुल 19 लाख वोटर हैं, जिनमें 3 लाख 90 हज़ार से 4 लाख तक निषाद-मल्लाह वोटर हैं। 1 लाख 60 हज़ार मुसलमान वोटर, 2 से ढाई लाख ओबीसी (कुर्मी, मौर्या, राजभर आदि ), 1 लाख 60 हज़ार यादव, डेढ़ से दो लाख ब्राह्मण, डेढ़ लाख तक क्षत्रिय, एक लाख बनिया और डेढ़ लाख सैंथवार वोटर हैं। यानी निषाद वोटर निर्णायक स्थिति में रहते हैं।