Sunday - 7 January 2024 - 8:39 AM

EDITORs TALK : बिहारी अस्मिता का “राजपूत कार्ड”

डॉ. उत्कर्ष सिन्हा

यूपी और बिहार में चुनाव हो जातीय गुणा गणित न हो ये संभव नहीं लगता। यूपी में तो चुनाव दूर हैं मगर बिहार में चुनावों की गूंज अब सुनाई देने लगी है। गठबंधन और महागठबंधन की शक्ल क्या होगी इस पर तो हलचल मची ही है साथ ही साथ जातीय गोलबंदी के माहिर रणनीतिकार अपने अपने मोहरे फिट करने में जुट गए हैं।

बिहार का पिछला चुनाव जिस ब्रांड नीतीश के भरोसे लड़ा और जीता गया था, उस ब्रांड की चमक फीकी पड़ती दिखाई दे रही है। विपक्षी महागठबंधन में चेहरे का पेंच फंसा है तो सत्ताधारी गठबंधन के आर्केस्ट्रा में भी फिलहाल हर साज की आवाज अलग अलग आ रही है। सुर साधने में थोड़ा वक्त तो लगेगा।

लालू यादव ने जिस यादव मुस्लिम समीकरण के जरिए बिहार को साधा था वो कितना कामयाब होगा ये इस बात पर निर्भर होगा कि ओवेसी कितनी सेंध लगा पाते हैं।

यूपी में पिछड़ो की गोलबंदी समाजवादी पार्टी करती थी जहां बीते चुनावों में भाजपा ने बड़ी सेंध लगा दी। बिहार में ऐसा नहीं है, पिछड़ी जातियों के नेता भी कई है और वो अभी अपने पत्ते खोलने को तैयार नहीं। लेकिन इस बीच एक नई कहानी धीरे धीरे उभर रही है। बिहार की राजनीति में बिहारी अस्मिता के साथ इस बार सावर्णों की दबंग जाति “राजपूत” केंद्र में फिलहाल दिखाई दे रही है।

मुंबई में अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत अब एक घटना से ज्यादा राजनीतिक परिघटना बन गई है। बिहार भाजपा ने नारा दे दिया है “न भूले हैं, न भूलने देंगे”। अब इस नारे के बाद क्या इस बात में कोई संदेह बचना चाहिए कि सुशांत सिंह की आत्मा बिहार के चुनावी आकाश में नहीं घूमेगी ?

अब जरा आगे देखिए। लालू यादव के अभिन्न सहयोगी रहे बिहार के बड़े नेता रघुवंश बाबू ने अपनी मृत्यु से ठीक पहले पार्टी से इस्तीफा दे दिया था, तब लालू यादव ने भावुक हो कर कहा था – आप कहीं नहीं जा रहे ? लेकिन ये मेल मिलाप हो पाता उससे पहले रघुवंश बाबू का देहांत हो गया। इसके बाद बारी सियासत की थी तो वो शुरू हो गई।

रघुवंश बाबू एक ऐसे राजपूत नेता थे जिन्होंने सांजीक न्याय की लड़ाई लड़ी और पिछड़ो वंचितों के हक के लिए खड़े रहे, मगर बिहार के राजपूतों ने भी हमेशा अपना समर्थन दिया था। एक वक्त था जब राजद के सिर्फ चार नेता लोकसभा का चुनाव जीते थे जिसमे लालू को छोड़ बाकी तीनों राजपूत बिरादरी के थे।

अब रघुवंश बाबू पर एनडीए की निगाह लगी है। नीतीश न सिर्फ रघुवंश बाबू को याद कर रहे हैं बल्कि उम्मीद की जा रही है कि उनके बेटे को जल्द ही विधान परिषद में मनोनयन के जरिए लाया जाएगा।

अब एक और दृश्य देखिए। कृषि बिल के मसले पर राज्यसभा में हंगामे के बाद उप सभापति हरिवंश सिंह आहत हुए और वे उपवास पर बैठ गए। जय प्रकाश नारायण के शिष्य रहे हरिवंश के अपमान का मुद्दा भी अब भाजपा जोर शोर से उठा रही है। हरिवंश सिंह जनता दल यूनाईटेड से राज्यसभा पहुंचे हैं। अब इन तीनों को एक साथ जोड़ के देखिए तो एक सियासी लकीर खींचती दिखाई देगी।

Radio_Prabhat
English

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com