यशोदा श्रीवास्तव
प्रयागराज के मेडिकल एसोसिएशन के कन्वेंसिंग सेंटर में सिविल सोसायटी द्वारा आयोजित संविधान सम्मान सम्मेलन में राहुल गांधी का भाषण जातिय जनगणना के आलोचकों का जवाब है।
राहुल गांधी का यह भाषण उन तमाम ट्रोल सेना को भी जवाब है जो वाट्स एप के प्लेट फार्मों पर जातीय जनगणना के मसले पर राहुल गांधी की ऐसी तैसी करते रहते हैं।
उक्त सम्मेलन में बहुत ही बेबाकी से राहुल गांधी ने कहा कि यदि उनका राजनीतिक नुकसान भी हो रहा हो तो भी वे इस विषय से पीछे हटने वाले नहीं हैं,जाति जनगणना उनके राजनीतिक जीवन का मिशन है। बाबा साहब के संविधान में सभी नागरिकों को एक समान कहा गया है,हम उसी रास्ते पर चलकर जातिय जनगणना की बात कर रहे हैं।
उन्होंने इस सम्मेलन में जाति जनगणना क्यों जरूरी है,इसे व्याख्यापित कर उन तमाम लोगों का भ्रम दूर करने की कोशिश की जो इस भ्रम में थे कि इससे तो उनका सरकारी हिस्सा ही मारा जाएगा। हालांकि यहां यह सवाल भी है कि देश के बहु आबादी के हिस्से में सरकारी इमदाद आता ही क्या है? जाति जनगणना से ऐसे करोड़ों लोगों को सरकारी बजट में हिस्सेदारी सुनिश्चित करना ही राहुल गांधी का मक्सद है जो सरकारी योजनाओं से वंचित हैं।उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि देश की जनता के लिए जारी करोड़ों अरबों का बजट सिर्फ दस फीसद के हिस्से आता है। नब्बे फीसदी के हिस्से में जीरो आता है। इस नब्बे फीसदी में कोई जाति नहीं सिर्फ गरीब और उपेक्षित आते हैं।
यहां यह सवाल हो सकता है कि ऐसा तो पहले भी होता आया है। आजादी के बाद की लगभग सभी सरकारों में ऐसा ही होता रहा इसमें राहुल गांधी के पूर्वजों के नेतृत्व वाली भी सरकार रही।
लेकिन देर से ही सही यदि राहुल गांधी ने यह मुद्दा उठाया है तो इसकी आलोचना क्यों?इसलिए कि इसे विपक्ष का कोई नेता उठा रहा है और वह उस परिवार का है जो मौजूदा भाजपा सरकार और उसके तमाम नेताओं के आलोचना,लांछन और हास परिहास के केंद्र में है।
जातिय जनगणना से पता चलेगा कि जिस जाति की जितनी आबादी है क्या सरकारी बजट में उसे अनुपातिक आधार पर फायदा मिल रहा है। नारा तो सबका साथ सबके विकास का है लेकिन क्या यह धरातल पर भी है?
जाति जनगणना के विरोध के पीछे क्या है,यह नहीं पता लेकिन राहुल गांधी के जाति का मखौल उड़ाकर इसे इग्नोर नहीं कर सकते। राहुल चाहते हैं कि जिस भी जाति की जितनी संख्या हो, नौकरी से लेकर उसके उत्थान तक में बजट का आबंटन उसी आधार पर हो। बाबा साहब का सपना”बराबरी का दर्जा और समान भागीदारी” का उद्देश्य तभी फलीभूति होगा। उन्होंने मीडिया से लेकर तमाम संस्थानों में अनुपात के हिसाब से सभी जातियों की भागीदारी की बात की है जो अभी नहीं है। इसमें किसी एक जाति की बात भी नहीं की गई।
स्किल डेवलेपमेंट भाजपा सरकार का भी प्रमुख एजेंडा है। तमाम जगह इस पर काम भी हुए। अब अगर राहुल गांधी यह कहते हैं कि युवाओं को ऐसी ट्रेनिंग उन हुनरमंदों से दी जाय जो लाखों की संख्या में हमारे बीच मौजूद हैं तो ग़लत क्या है?
यदि आप किसी को बढ़ईगिरी की ट्रेनिंग देना चाहते हों तो क्यों न यह ट्रेनिंग उन्हीं से दी जाय जो पहले से ही इस पेशे में पारंगत हैं।
वे कहते हैं कि हमारे देश में लाखों करोड़ों हैं जिनके पास अनलिमिटेड स्किल है,हमें युवाओं में स्किल डेवलेपमेंट के लिए उन्हीं पारंगत लोगों का इस्तेमाल करना चाहिए लेकिन यह काम अप्रशिक्षित हाथों से कराया जा रहा है जिसका युवाओं को कोई फायदा नहीं मिल रहा।