Saturday - 6 January 2024 - 2:38 PM

पगडंडी नहीं, लहरों के सफर में हैं राहुल

ओम प्रकाश सिंह

पगडंडी नहीं, लहरों के सफर में हैं राहुल। उनकी भारत जोड़ो यात्रा से संगीतमयी ध्वनि निकल रही है कि नफरत भरी ऑधी के बीच देश भर में प्यार की बात कहने कोई निकला है। राहुल गांधी ने जो भी सोचकर यात्रा प्रारंभ किया होगा, वह बहुत पीछे छूट चुका है।

यात्रा करने के पीछे उनका कारण राजनीतिक था, सांस्कृतिक था, जोड़ने का था, छोड़ने का था वह सब पीछे छूट चुका है फिलहाल वह यात्रा में है और अब तक लगभग तेरह सौ मील की यात्रा कर चुके हैं।
इस यात्रा से राहुल गांधी का अपना पूरा व्यक्तित्व उभर कर आया है।

शुरू में लोगों से मिलना, फोटो खींचाना, उनके लिए हो सकता है योजना रही हो, मार्केटिंग का हिस्सा रहा हो लेकिन धीरे-धीरे परिस्थितियों से उनका जो प्राकृतिक स्वभाव था वह चमकने लगा है। वह छोटे-छोटे समुदायों के पास गए, छोटी-छोटी बस्तियों में गए, अलग-अलग भाषा भाषियों के बीच गए जिनका उनसे कभी उतना संवाद नहीं रहता था। उत्तर भारत से भिन्न दक्षिण में तो छोटी-छोटी दूरी पर एकदम से अलग सी भाषा, अलग से लोग, एकदम अलग से संस्कृति, उनसे मिलते-जुलते अब राहुल गांधी में उनकी सोच का निखार आने लगा है।

यात्रा करना मनुष्य की नैसर्गिक प्रवृत्ति है। हम अगर मानव इतिहास पर नज़र डालें तो पाएँगे कि मनुष्य के विकास की गाथा में यायावरी का महत्वपूर्ण योगदान है।

अपने जीवन काल में हर आदमी कभी-न-कभी कोई-न-कोई यात्रा अवश्य करता है। रामायण भी एक यात्रा है, रामायण का विश्लेषित रुप ‘राम का अयन’ है जिसका अर्थ है ‘राम का यात्रा पथ’। यात्राएँ जोड़ती हैं, लोककल्याण का विस्तार करती हैं। एक दूसरे को.समझने का माध्यम बनती हैं।

राम ने अयोध्या से लंका तक (उत्तर से दक्षिण) लगभग दो हजार मील की यात्रा की थी। राहुल गांधी दक्षिण से उत्तर की लगभग दो हजार दो सौ मील की यात्रा पर निकले हैं, आधा पड़ाव पार भी कर लिया है।

राम की यात्रा सिर्फ वनवास या रावण वध की नहीं थी। इस यात्रा में राम ने देश की संस्कृति को जाना समझा और जोड़ने का काम किया।

राहुल ने यात्रा के दौरान कहा कि वे जन के दिल की बात सुनने निकले हैं, देश की संस्कृति को जानने समझने के साथ लोगों को जोड़ने का इससे बेहतर रास्ता और कोई नहीं है।

यात्राएं कुछ न कुछ देती हैं, चाहे जिस भाव से चलें। यात्राओं की अपनी सहज उपलब्धि, प्राप्तियां किया होती हैं। चलने लगिए तो कुछ ना कुछ होने लगता है।यह ठीक वैसा ही है जैसा आप किसी चीज को एक निश्चित गति पर हिलाते भी रहे तो भी उसमें अपने बहुत से परिणाम होते हैं।

यात्राओं के संदर्भ में देखें तो पौराणिक यात्राओं में कौंडिन्य एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। जिन्होंने भारत के उत्तरी भाग से भारत के दक्षिणी भाग और समुद्र के ऊपर दक्षिण पूर्व एशिया की यात्रा की। इसलिए, वह उपमहाद्वीप और उसके बाहर वैदिक मान्यताओं और प्रथाओं के प्रसारण से जुड़ा हुआ है।

अगस्त्य ऋषि ने विषम परिस्थितियों में सात समंदर लांघा, कहा जाने लगा कि उन्होंने समुद्र को पी लिया। समुंद्र पान का अर्थ इतना है कि कोलंबस और मार्कोपोलो ऐसे पश्चिमी अन्वेषकों से बहुत पहले ही अगस्त्य मुनि ने एक छोटी सी ढोंगी में बैठ समुद्र पार किया। दक्षिण भारत और दक्षिण पूर्वी एशिया में सौहार्द और सहयोग पर आधारित भारतीय संस्कृत के प्रचार-प्रसार का श्रेय अगस्त्य ऋषि को प्राप्त है। राम रावण युद्ध के समय राम को आत्मविश्वास वर्धक मंत्र “आदित्य हृदय: ” देने उन्हें लंका भी जाना पड़ा।

यात्रा के माध्यम से राहुल गांधी ने मजबूती से एक बात बता दी है कि सोशल मीडिया के माध्यम से या बंद कमरे में बैठे बैठे राजनीति नहीं हो पाएगी। अब इन नेताओं के सामने फिर उन्होंने एक बहुत बड़ा लैंड मार्क रख दिया है कि जमीन पर उतरना पड़ेगा। राहुल गांधी का विरोध करने वालों को भी राहुल गांधी जितना ना सही लेकिन राहुल गांधी जैसे जरूर चलना पड़ेगा। एकदम नई लकीर रखी है राहुल गांधी ने।

यह यात्रा जब खत्म होगी तो कांग्रेस के पास उसके क्या राजनीतिक हित होगें, यह सब पीछे छूट चुका है। लेकिन राहुल गांधी के व्यक्तित्व में क्या हुआ है यह महत्वपूर्ण रहेगा। भारत में यात्राओं की सनातन परंपरा रही है उस पर एक बार फिर से जी कर दिखाया है राहुल गांधी ने।

सत्य, अहिंसा का महत्व गांधी जी से पहले भी था लेकिन उसको लोगों ने छोड़ दिया था, विश्वास टूट गया था। सत्य अहिंसा से कुछ पाया नहीं जा सकता।

लोगों को लगता था कि झूठ से और बड़ा झूठ बोलकर जीता जा सकता है। ऐसी विपरीत परिस्थिति में कोई व्यक्ति जब यह विश्वास दिलाता है कि झूठ पर सत्य ही जीतेगा तो वह गांधी हैं। ऐसी परिस्थिति में जब लोगों ने मान लिया था कि यह हार्ड वर्क नहीं स्मार्टवर्क का जमाना है और यहां मीडिया के माध्यमों से काम हो सकता है ऐसे में राहुल गांधी ने सड़क पर उतर कर धूल, कीचड़, धूप सहकर, सेंककर, खिलकर यह बताया कि नहीं राजनीति आज भी ऐसे ही लोगों की डिमांड करती है।

ऐसे ही लोगों के लिए राजनीति है और ऐसे ही लोग राजनीति के लिए बने हैं। वर्तमान परिवेश में भारत जोड़ो यात्रा को शायर क़तील शिफ़ाई की नजरों से देखें तो कह सकते हैं कि ‘तेज़ धूप में आई ऐसी लहर सर्दी की,
मोम का हर इक पुतला बच गया पिघलने से’।

(लेखक , स्वतंत्र पत्रकार व डाक्टर राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय अयोध्या पुरातन छात्र सभा अध्यक्ष हैं)

Radio_Prabhat
English

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com