जुबिली न्यूज डेस्क
जैसे-जैसे बिहार विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं, राज्य में सियासी हलचल तेज होती जा रही है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी एक बार फिर बिहार के दौरे पर आ रहे हैं। 15 मई को प्रस्तावित यह दौरा पिछले पांच महीनों में उनका चौथा बिहार दौरा होगा, जिससे साफ है कि कांग्रेस राज्य में अपना खोया हुआ जनाधार खासकर दलित और अति पिछड़ा वर्ग के बीच फिर से कायम करने की रणनीति पर काम कर रही है।
दलित वोटों पर कांग्रेस की खास नजर
बिहार की 243 विधानसभा सीटों में से 38 अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं, और राज्य में दलितों की आबादी लगभग 16 फीसदी मानी जाती है। यह वर्ग राज्य की राजनीति में निर्णायक भूमिका निभाता है। कांग्रेस अब इस वोटबैंक को अपने पक्ष में करने के लिए पूरी ताकत झोंक रही है।
राहुल गांधी इस दौरे में पटना में सामाजिक न्याय से जुड़े एक्टिविस्टों से मुलाकात करेंगे और महात्मा फुले और सावित्रीबाई फुले पर आधारित फिल्म ‘फुले’ भी देखेंगे। यह कदम सामाजिक न्याय के संदेश को सीधे-सीधे दलित समुदाय तक पहुंचाने के रूप में देखा जा रहा है।
दलित छात्रों के साथ संवाद और शिक्षा पर फोकस
कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव और बिहार सह-प्रभारी सुशील पासी ने बताया कि राहुल गांधी मुजफ्फरपुर या दरभंगा जिले के किसी दलित छात्रावास में जाकर छात्रों से संवाद करेंगे। इस दौरान वे शिक्षा, बेरोजगारी और पलायन जैसे मुद्दों पर चर्चा करेंगे। पासी ने कहा कि राहुल गांधी का मकसद बिहार के दलित और अति पिछड़े वर्ग के युवाओं की समस्याओं को समझना और राष्ट्रीय मंच पर उन्हें उठाना है।
कांग्रेस का संगठनात्मक बदलाव भी दलित केंद्रित
हाल ही में कांग्रेस ने दलित समाज से आने वाले राजेश कुमार को बिहार प्रदेश अध्यक्ष और सुशील पासी को सह-प्रभारी नियुक्त किया है। यह बदलाव कांग्रेस की दलित-पिछड़ा वर्ग केंद्रित रणनीति की ओर इशारा करता है। पार्टी ने घोषणा की है कि वह बिहार में शिक्षा, रोजगार और आरक्षण जैसे मुद्दों पर दलित समाज के लिए विशेष आंदोलन छेड़ेगी।
मोदी के दौरे से पहले राहुल का ‘सामाजिक न्याय’ कार्ड
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी मई के अंतिम सप्ताह में बिहार दौरे पर आ रहे हैं। वह रोहतास जिले के बिक्रमगंज में एक बड़ी जनसभा को संबोधित करेंगे। इससे पहले राहुल गांधी का दौरा कांग्रेस की ‘सामाजिक न्याय बनाम हिंदुत्व राष्ट्रवाद’ की सियासी लड़ाई का हिस्सा माना जा रहा है।
बिहार में जातीय समीकरण और राहुल की रणनीति
बिहार की राजनीति जातीय समीकरणों पर टिकी होती है। कांग्रेस ने 90 के दशक में अपना दलित-मुस्लिम-सवर्ण गठजोड़ गंवाया था, लेकिन अब वह दलितों और मुस्लिमों के भरोसे सत्ता की राह तलाश रही है। राहुल गांधी की लगातार यात्राएं, दलित नेताओं के साथ मंच साझा करना, और सामाजिक न्याय के मुद्दों पर मुखरता, इस रणनीति का हिस्सा हैं।
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निष्कर्ष: क्या राहुल की ‘फुले नीति’ रंग लाएगी?
राहुल गांधी की इस पहल से कांग्रेस को दलित और अति पिछड़े वर्गों में नई पकड़ बनाने में मदद मिल सकती है, खासकर तब जब विपक्षी पार्टियों में वोटों का बिखराव है। बिहार में कांग्रेस का मिशन साफ है – सामाजिक न्याय की राजनीति से खोया हुआ आधार फिर से पाना।