Sunday - 14 January 2024 - 3:55 PM

कांग्रेस में विरोध के बावजूद ही आखिर क्यों राहुल गांधी ही बनेंगे राष्ट्रीय अध्यक्ष

अनिल शर्मा

कांग्रेस में पिछले काफी दिनों से राहुल गांधी के विरोध में दबे स्वर में आवाज उठती रही है कि उन्हें पुनः राष्ट्रीय अध्यक्ष न बनाया जाये। इस दबी आवाज को मुखर-स्वर तब मिला जब दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री स्व. शीला दीक्षित के पुत्र और कांग्रेसी नेता संदीप दीक्षित ने तथा सांसद व वरिष्ठ कांग्रेसी नेता शशि थरूर ने खुलकर राहुल गांधी को पुनः राष्ट्रीय अध्यक्ष न बनाये जाने की आवाज बुलंद की और उन्हें पुनः राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाये जाने का पुरजोर विरोध किया।

लेकिन कांग्रेस के अंतरूनी हालात ये बता रहे हैं कि कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी को ही अंततः कांग्रेस का पुनः राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया जायेगा। इसका मुख्य कारण यह है कि देश के अधिकांश कांग्रेसी नेता यही मानते हैं कि कांग्रेस का उद्धार करने में सक्षम केवल और केवल गांधी परिवार ही है।

इसके चलते उनके पास सिर्फ च्वाइस हैं, या तो वे राहुल गांधी को पुनः राष्ट्रीय अध्यक्ष बनायें या फिर प्रियंका गांधी को जो इस समय कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव और उत्तर प्रदेश की प्रभारी हैं, उन्हें ही राष्ट्रीय अध्यक्ष की जिम्मेदारी दे दी जाये। इसमें कांग्रेस के युवाओं का भी रूझान प्रियंका गांधी की तरफ है।

तमाम पुराने कांग्रेसी नेता आयरन लेडी के नाम से विख्यात पूर्व प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी की छवि प्रियंका गांधी में देखते हैं। उनके बोलने, चलने, देखने तथा भाषण देने की शैली को भी इंदिरा गांधी के काफी करीब पाते हैं। उधर कांग्रेस के युवाओं चाहे वो लड़का हो या लड़की उनमें प्रियंका गांधी का ग्लैमर कायम है।

लेकिन दिक्कत यह है कि प्रियंका गांधी ऐसे किसी भी प्रस्ताव का जो उनको अपने भाई के विरुद्ध खड़ा करता हो को वे सिरे से खारिज करती हैं। उधर कांग्रेस की चेयरपर्सन सोनिया गांधी की लम्बे अरसे सेहत ठीक न होने के कारण उन्हें भी इस बात की जल्दी है कि राहुल गांधी की ताजपोसी जल्दी हो।

इसलिये वे राहुल गांधी की कांग्रेस में समर्थकलाबी और विरोधियों की बारीकी से पहचान करने में जुटी हुई हैं। वैसे भी राजनीति में जरा सा भी शक करने पर कोई भी सत्ता में बैठा हुआ या पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष की कमान संभाले हुए व्यक्ति ऐसे किसी व्यक्ति को चाहे वो अपनी बेटी ही क्यों न हो, महत्वपूर्ण पद पर नहीं बैठाता है, जिससे भविष्य में कोई परेशानी हो जाये।

याद कीजिए लगभग डेढ़ दशक पहले प्रियंका गांधी के पति राबर्ट वाड्रा के पिता ने संघ के एक वरिष्ठ अधिकारी को आसाम में अपने किसी व्यक्तिगत काम के लिए पत्र लिखवाया था।

वह पत्र लीक हो जाने के कारण आपको याद होगा कि दामाद राबर्ट वाड्रा के साथ उनके परिवार और यहाँ तक कि अपनी बेटी प्रियंका के राजनैतिक कद को कम करने का काम किया गया था और उनकी जिम्मेदारी सिर्फ दो संसदीय क्षेत्रों क्रमशः रायबरेली जहाँ से उनकी माँ श्रीमती सोनिया गांधी चुनाव लड़ती हैं और अमेठी जहाँ से उनके भाई राहुल गांधी चुनाव लड़ते हैं तक ही सीमित कर दी गई थी।

जबकि आज के मुकाबले डेढ़ दशक पहले उस समय युवाओं में और बुजुर्ग कांग्रेसियों में भी प्रियंका गांधी का दस गुना ज्यादा क्रेज था और कांग्रेसियों को उम्मीद थी कि प्रियंका गांधी के आने के बाद चमत्कार हो जायेगा। क्रूर राजनीतिक इतिहास यह बताता है कि एक समय कांग्रेस में संजय गांधी की तूती बोलती थी।

प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बाद उन्हें ही प्रधानमंत्री के रूप में देखा जाता था। लेकिन संजय गांधी की ग्लाइडर उड़ाते समय उसके क्रैस हो जाने पर हुई मौत के बाद एकदम से कांग्रेस में परिदृश्य बदल गया। संजय गांधी की धर्मपत्नी मेनिका गांधी को उनके बच्चे के साथ प्रधानमंत्री आवास से मय सामान के बाहर निकाल दिया गया। आज मेनिका गांधी और उनके पुत्र वरुण गांधी भाजपा में सांसद हैं।

क्रूर राजनीति की यह मिशाल है कि जिन संजय गांधी के कारण आपातकाल के बाद जनता पार्टी की सरकार ने जिस तरह से युवा कांग्रेसियों ने देश व्यापी आन्दोलन छेड़ा जिसके कारण सिर्फ ढाई वर्ष के भीतर इंदिरा गांधी पुनः प्रधानमंत्री बनीं।

उस संजय गांधी को भी कांग्रेसियों ने न सिर्फ भुला दिया बल्कि आज पूरे देश में कांग्रेस की कोई भी रैली या सभा या बैठक में कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के साथ बैनर में संजय गांधी का छोटा सा भी चित्र नहीं लगाया जाता।

जबकि संजय गांधी आजीवन कांग्रेस के लिए समर्पित रहे हैं और कांग्रेस के इतर वे कुछ भी नहीं सोचते थे। कांग्रेस में राहुल गांधी को पुनः अध्यक्ष देखने वाले दलित नेता सुशील कुमार शिंदे, मल्लिकार्जुन खड़गे सहित दलित लाबी के तमाम नेता एकजुट हैं।

वहीं मुस्लिम नेताओं में गुलामनवीं आजाद, शकील अहमद, राष्ट्रीय प्रवक्ता मीर अफजल, राशिद अल्बी, नसीम खान, इमरान मसूद, हारुर रसीद भी राहुल गांधी के पुरजोर समर्थक हैं।

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इसके आलावा राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, रणदीप सुरजेवाला, उपमुख्यमंत्रर सचिन पायलट, मिलिंद देवड़ा, दीपेन्द्र हुड्डा, ज्योतिरादित्य सिंधिया यह सभी नेता चाहते हैं कि राहुल गांधी ही राष्ट्रीय अध्यक्ष बनें। इसके लिए ये नेता जोर-शोर से लाबिंग में लगे हुए हैं।

उधर सोनिया गांधी की किचन कैबिनेट के सदस्य और राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष मोतीलाल बोरा, अहमद पटेल, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, कपिल सिब्बल, पी. चिदंबरम, मणि शंकर अययर, दिग्विजय सिंह, पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह, म.प्र.के मुख्यमंत्री कमलनाथ हों या छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल हों सभी सोनिया गांधी की राय के साथ ही जायेंगे।

इससे साफ हो गया कि पार्टी का अध्यक्ष पद गांधी परिवार में ही रहने वाला है। क्योंकि सोनिया गांधी उस समय के कटु अनुभवों को नहीं भूली हैं जब प्रधानमंत्री बनने के बाद नरसिंहा राव ने सोनिया गांधी और उनके परिवार को श्रीलंका के लिट्टे आतंकबाद के नाम पर वर्षों तक उनके ही घर में एक तरह से नजरबंद जैसा करवा दिया था।

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श्री राव ने सोनिया गांधी को राजनीति से आइसोलेट करने की पूरी कोशिश की थी। इसलिए सोनिया गांधी ऐसा कोई रिस्क नहीं लेना चाहेंगी। इसलिये सोनिया गांधी अब गांधी परिवार के बाहर अध्यक्ष पद नहीं जाने देंगी। इससे इतना तय है कि आगामी मार्च या अप्रैल महीने में जब भी कांग्रेस पार्टी का राष्ट्रीय अधिवेशन किसी कांग्रेस शासित राज्य में होगा उसी राष्ट्रीय अधिवेशन में राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी की सर्वसम्मति से ताजपोशी हो जायेगी।

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(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं यह लेख निजी विचार है)

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