जुबिली न्यूज डेस्क
नई दिल्ली। तमिलनाडु के राज्यपाल को लेकर हाल ही में आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर अब राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने अपनी प्रतिक्रिया दी है। राष्ट्रपति ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट से 14 संवैधानिक सवाल पूछे हैं, जिनका सीधा संबंध राज्यपाल और राष्ट्रपति की शक्तियों से है।
पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राज्यपाल किसी विधेयक को अनिश्चितकाल के लिए रोक नहीं सकते। इस पर राष्ट्रपति ने कोर्ट से जानना चाहा है कि क्या राज्यपाल को निर्णय लेते समय मंत्रिपरिषद की सलाह माननी अनिवार्य है और क्या उनके फैसलों की न्यायिक समीक्षा की जा सकती है।
राष्ट्रपति ने उठाए राज्यपाल की शक्तियों पर सवाल
राष्ट्रपति द्वारा पूछे गए ये सवाल संविधान के अनुच्छेद 200, 201, 361, 143, 142, 145(3) और 131 से जुड़े हुए हैं। सवालों का फोकस इस बात पर है कि राज्यपाल और राष्ट्रपति को किस हद तक अदालत के निर्णयों और मंत्रिपरिषद की सलाह का पालन करना चाहिए।
जानिए राष्ट्रपति के पूछे गए 14 अहम सवाल:
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राज्यपाल के पास बिल आने के बाद कौन-कौन से संवैधानिक विकल्प होते हैं?
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क्या राज्यपाल को फैसला लेते समय मंत्रिपरिषद की सलाह मानना जरूरी है?
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क्या राज्यपाल के फैसलों को कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है?
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क्या अनुच्छेद 361 राज्यपाल के फैसलों को न्यायिक समीक्षा से बचाता है?
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अगर संविधान में समयसीमा तय नहीं है, तो क्या कोर्ट समयसीमा तय कर सकती है?
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क्या राष्ट्रपति के फैसले कोर्ट में चुनौती के योग्य हैं?
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क्या सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रपति के निर्णयों पर समयसीमा निर्धारित कर सकता है?
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क्या सुप्रीम कोर्ट की राय लेना राष्ट्रपति के लिए बाध्यकारी है?
(बाकी के 6 सवाल भी इन्हीं विषयों से जुड़े हैं, जो संवैधानिक स्पष्टता की मांग करते हैं।)
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संविधान की व्याख्या और न्यायपालिका की भूमिका पर बहस
इस मुद्दे ने एक बार फिर संविधान की व्याख्या, राज्यपाल और राष्ट्रपति की शक्तियों, और न्यायपालिका की सीमा पर राष्ट्रीय बहस को जन्म दे दिया है। विशेषज्ञ मानते हैं कि इस प्रकार के सवाल लोकतंत्र के संतुलन को समझने और स्पष्टता लाने में मदद करते हैं।