Thursday - 11 January 2024 - 7:43 PM

हैदराबाद कांड : चारों आरोपियों का पुलिस एनकाउंटर कहां तक जायज

डॉ शिशिर चन्द्रा

क्या सच में आपको हैदराबाद के चारों आरोपियों को पुलिस एनकाउंटर में मार गिराए जाने की ख़ुशी है, और न्याय के इस तरीके से आपके मन को शांति मिल गई। अगर हां तो- फिर हैदराबाद ही क्यों, देश में प्रतिदिन 106 रेप केस दर्ज़ होते है (विविध रिपोर्ट के अनुसार) तो हर एक केस में ऐसे ही होना चाहिए।

चलिए ये भी माना कि ये ज्यादा वीभत्स्य केस था इसलिए ये करना उचित था। लेकिन ये वीभत्स्य था बाकी नहीं है/था। ये कैसे तय हुआ होगा? 3 साल की बच्ची या 80 साल की बुजुर्ग, विकलांग, एकल, वो तो कोई भी हो सकती है। तो सबके ‘आरोपियों’ के साथ ऐसे ही होना चाहिए।

नहीं-नहीं आपके अनुसार हैदराबाद जैसी वीभत्स्य घटना वाले जैसे केस में तो कम से कम ऐसे ही होना चाहिए। बिना मतलब का कोर्ट कचहरी, कानून के चक्कर में समय खोटी क्यों करना ‘फैसला ऑन स्पॉट’ होना चाहिए।

तो हैदराबाद जैसी घटना आम तौर पर 5% तो घटती ही होगी देश में (कभी मीडिया में आती है कभी नहीं आती) तो हर ऐसे 5% वाले केस में ‘फैसला ऑन स्पॉट’ होना चाहिए, नहीं ? तो फिर ऐसा करते हैं।

भारत की न्याय प्रणाली/व्यवस्था जैसी कोई चीज नहीं है और होनी भी नहीं चाहिए ये मान लेते है, और फिर रेप ही क्यों हर ऐसा कृत जो आपको जघन्य लगे उसमे ‘फैसला ऑन स्पॉट’ कर लेते है, नहीं ? लेकिन फिर ये बात भी है कि ये तय कैसे होगा कि कौन सा कृत जघन्य है और कौन सा नहीं? आपके हिसाब से अमुक कृत जघन्य हो सकता है। मेरे हिसाब से अमुक कृत, फिर हर व्यक्ति अपने अपने हिसाब से ‘फैसला ऑन स्पॉट’ कर ले, नहीं?

फैसला ऑन स्पॉट के समर्थन में तो सरकार की आधी कुर्सी हो सकती है खाली

अगर साहब आप ‘फैसला ऑन स्पॉट’ के समर्थक है तो वर्त्तमान सरकार की आधी कुर्सी खाली हो जायेगी (मुझे इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता) क्यूंकि इसमें आधों पर महिला उत्पीड़न/रेप जैसे केस दर्ज़ है। लेकिन आपका ‘फैसला ऑन स्पॉट’ भी बड़ा सेलेक्टिव है।

ये चार में से कोई विधायक-सांसद या उसका बेटा नहीं था न ही कोई बाबा, न ही कोई पूंजीपति या उसका बेटा। अगर होता तो देखते आप ये कितना जल्दी ‘फैसला ऑन स्पॉट’ होता है, और देखते पुलिस की ताक़त भी जिसका अभी गुणगान कर रहे है।

अगर सही तो सरकार करे सी.आर.पी.सी. में ऐसी सजा का प्रावधान

यहां मै रेप और फिर जला देने के कृत का समर्थन तो बिल्कुल भी नहीं कर रहा। इस गफलत में बिलकुल मत रहिएगा, मै न्याय व्यवस्था और प्रणाली की बात कर रहा हूं। अगर आपको और बाकी जनता को लगता है कि ऐसे केस में ऐसी ही सजा होनी चाहिए तो फिर सी.आर.पी.सी. में ऐसी सजा का प्रावधान कर लेना चाहिए सरकार को, इसमें कोई गुरेज़ नहीं है।

और नहीं तो फिर ज्यूडिसरी सरकार और पुलिस से पूछे की अब उसकी जरूरत है भी की नहीं, क्यूंकि अब ‘फैसल ऑन स्पॉट’ तो होना सबको मंजूर है। और फिर इसके होने वाले अंजाम को भी समझ ही लीजियेगा।

दुनिया के जिस भी देश के कानून का हवाला (व्हाट्सएप दुनिया का ज्ञान से) देकर ऐसी न्याय व्यवस्था कि ऐसे लोगो को फांसी दे देना चाहिए, जिन्दा जला देना चाहिए, सूली पर चढ़ा देना चाहिए, लिंग काट देना चाहिए, अपंग कर देना चाहिए आदि आदि को उचित ठहरा दिया जा रहा है।

क्या उन देशों में अब रेप नहीं होता? क्या महिला हिंसा बंद हो गई है (देशों का नाम नहीं लूंगा पर जरा आंकड़े आप देख ले सभी देशों के जहां के उदहारण दे रहे हैं)?

जो आसान दिखता वही करते हम

सवाल ये है कि हम बहुत सेलेक्टिव है, जो आसान रास्ता दिखता है वो तुरंत कर लेते है। ये आसान रास्ता था और बहुत ही राजनीति भरा, और सही समय भी कि जनता मांग कर रही है, जनता का रुख किधर है। कठिन रास्ते तो लम्बे होते है इतनी जल्दी जनता को कैसे शांत करते।

हम अपने बच्चों को, लड़कों को पुरुषों को नहीं संवेदित करते, उनकी परवरिश में महिलाओं का सम्मान करना नहीं सिखाते, इसकी बात नहीं करते और करते भी है तो कितनी और क्या?

पितृसत्ता किस कदर हावी है

हमें आपको नहीं पता क्या कि चाय की दुकान पर, अपने छोटे समूह में, स्कूल कॉलेजों में आदि ऐसी जगहों में लड़के/पुरुष क्या क्या और कहा तक की बात करते हैं? पितृसत्ता किस कदर हावी है, क्या उसकी बात नहीं होनी चाहिए? सत्ता संबंधों की बात करने से सबको बड़ी परेशानी होती है क्योंकि सत्ताधारी को चुनौती लगती है, क्यूंकि सत्ता (ताकत) के माध्यम तो बहुत है, किसी को धर्म से मिलती, किसी को जाति से, किसी को पुरुष होने क नाते तो किसी को धन से तो किसी को किसी से।

महिला हिंसा में भी घरेलु हिंसा की बात नहीं

महिला हिंसा की बात करेंगे और दलितों पर अत्याचार पर पीछे हट जायेंगे ऐसा कैसे ? अच्छा ये भी बहुत सेलेक्टिव है। महिला हिंसा में भी घरेलु हिंसा की बात नहीं, चयन के अधिकार की बात नहीं होगी, अपनी मर्ज़ी की बात नहीं होगी। तब उस समय हमारी सभ्यता, संस्कृति, जाति, धर्म आड़े आ जायेगा।

तो ऐसे सेलेक्टिव न्याय पर और उसके ‘फैसला ऑन स्पॉट’ पर आप गर्व कर सकते है पर मै नहीं, आपका भरोसा हो सकता है पर मेरा नहीं, आप अपने मन को ख़ुशी दे सकते है पर मै नहीं।

(लेखक सामाजिक कार्यकर्ता हैं । यह उनके निजी विचार हैं)

ये भी पढ़े : यूपी में भी पुलिस को न रोको हैदराबाद की तरह ठोंको

ये भी पढ़े:  दरिंदों के दमन के लिए दामिनी बनना होगा

ये भी पढ़े : साहित्यकारों का उन्नाव अब बना रेपिस्टों का पनाहगार

ये भी पढ़े : जिंदगी की जंग हार गई उन्नाव की निर्भया

Radio_Prabhat
English

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com