Friday - 4 July 2025 - 2:51 PM

एक कमल खिला गई लाखों लाखों कमल

लक्ष्मी बाई केलकर जयंतीपर विशेष आलेख

डा. पूजा श्रीवास्तव 

भारतीय संस्कृति को पूरे विश्व में सबसे महान एवं विश्व की सभ्यता में सबसे पुरानी संस्कृति मानी जाती है भारतीय संस्कारों की वैज्ञानिकता पर तो आज अमेरिका सहित अन्य कई विकसित देशों को आश्चर्य हो रहा है की किस प्रकार आज से कई हजारों साल पहले भारत में सभ्यता इतनी विकसित अवस्था में रही थी भारतीय संस्कारों के विभिन्न आयाम खरे उतर रहे हैं भारतीय परंपराओं के अनुसार भारतीय समाज में मातृशक्ति को सदैव ही उच्च स्थान दिया गया है हम भारतीय तो मातृशक्ति को देवी माता के रूप में ही देखते हैं और भारतीय समाज के उत्थान में मातृ शक्ति का योगदान सदैव ही उच्च स्तर का रहा है चाहे वह मातृत्व की दृष्टि से राष्ट्र माता जीजाबाई का हो चाहे वे नेतृत्व की दृष्टि से रानी लक्ष्मीबाई का हो और चाहे वह क  कृतत्व  की दृष्टि से देवी अहिल्याबाई होल्कर का हो वैसे भी भारतीय समाज में माता को प्रथम गुरु के रूप में देखा जाता है जो हमें न केवल इस धरा पर लाती है बल्कि हमारे जीवन के शुरुआती दौर में हमें अपने धार्मिक संस्कारों परंपराओं सामाजिक नियमों आदि से परिचित करवाती है।

लक्ष्मी बाई का जन्म नागपुर के महल जिले में वर्ष 1905 में हुआ था उसका नाम कमल रखा गया था जिसका अर्थ है कमल उनके माता-पिता भास्कर राव दाते , एक सरकारी कर्मचारी और यशोदा बाई एक ग्रहणी थी ब्रिटिश शासन के उन दिनों में , लोकमान्य तिलक द्वारा संपादित,’ केसरी ‘ जैसे समाचार पत्रों को खरीदना और पढ़ना देशद्रोह माना जाता था अगर कोई सरकारी कर्मचारी हो लेकिन उनकी मां अखबार खरीदती थी और सभी महिलाओं को एक साथ पढ़ने के लिए बुलाती थी इस प्रकार लक्ष्मीबाई का मातृभूमि के प्रति गहरा प्रेम संगठन क्षमता , निडरता और निडर भावना उन्हें अपने माता-पिता से मिली एक बच्चे के रूप में हिंदू किंवदंतियायो के गीतों , परंपराओं और कहानियों ने उनके युवा मन पर एक अमिट छाप छोड़ी और उन्हें मंदिर जाना बहुत पसंद था । वह छोटी उम्र में भी बहादुर और स्पष्ट वादी थी उन्होंने खेलों को छोटे-मोटे विवादों से दूर रखकर नेतृत्व के गुणों का प्रदर्शन किया और अपने दोस्तों को बिना किसी पूर्वाग्रह के निष्पक्ष खेलने का निर्देश दिया अपनी मां को अन्य लड़कियों और महिलाओं के साथ प्रतिदिन ‘ केसरी ‘ पढ़ते हुए सुनकर कमल के मन में धीरे-धीरे देशभक्ति और ब्रिटिश शासन के प्रति आक्रोश की भावना बढ़ने लगी। राष्ट्रीय सेवा का समिति का मुख्य उद्देश्य महिलाओं को संगठित करना उनका शारीरिक बौद्धिक और नैतिक विकास करना और उन्हें राष्ट्र निर्माण में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए प्रेरित करना समिति महिलाओं को सशक्त बनाने और उन्हें समाज में सम्मानजनक स्थान दिलाने के लिए काम करती है।

समिति का उद्देश्य महिलाओं में राष्ट्रीयता देशभक्ति और संस्कृति के प्रति गर्भ की भावना जागृत करना है समिति स्वस्थ शिवर शिक्षा और अन्य सामाजिक कार्यों के माध्यम से समाज की सेवा करती है समिति पारिवारिक मूल्यों को महत्व देती है और महिलाओं को परिवार और समाज के लिए प्रेरणादायक शक्ति बनाने के लिए प्रोत्साहित करती है समिति भारतीय संस्कृति और परंपराओं को बढ़ावा देने और उनका संरक्षण करने का प्रयास करती है समिति महिलाओं को संगठित करके उनमें आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता का विकास करती है जिससे वह सामूहिक रूप से समाज और राष्ट्र के विकास में योगदान कर सके यदि संक्षेप में कहा जाए तो राष्ट्रीय सेवा का समिति महिलाओं को संगठित करके उन्हें सशक्त बनाकर और उनमे राष्ट्रीयता की भावना जागृत करके राष्ट्रीय निर्माण में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए प्रेरित करती है।

प्रारंभिक संघर्ष में गौ रक्षा अभियान और फ्लेग नियंत्रण।

जब गायों को वध से बचने के लिए अभियान चलाया गया तो युवा कमल मंदिर के पुजारी और दाई  (नानी) के साथ इस पवित्र धर्म युद्ध में शामिल हुई ।इस अभियान ने उन्हें बोलने की शक्ति , विनम्रता का मूल्य और अच्छे उद्देश्य की सेवा करते समय अपमान और नकारात्मकता को सहन करने की क्षमता सिखाई फ्लेग के प्रकोप के समय उन्होंने जाति और धर्म के बावजूद बीमार और जरूरतमंदों की सेवा करने में अपने माता-पिता और दाई की मदद की । उनके पिता बहुत मददगार थे और उन्होंने फ्लेग के उन पीडितो का अंतिम संस्कार भी किया जिन्हें दूसरों ने छूने से मना कर दिया था इन सभी अनुभवों ने उन्हें आज धीरज और धैर्य की मूल सिखाएं।

वर्धा – गतिविधि का केंद्र

लोकमान्य तिलक के दुखद निधन के बाद महात्मा गांधी ने साबरमती छोड़ दी और वर्धा को अपना आश्रम चुना । वर्धा में सेवाग्राम राजनीतिक गतिविधियों से गुलजार हो गया क्योंकि देशभर से स्वतंत्रता सेनानी वहां आने लगे लक्ष्मी बाई की देशभक्ति की भावनाएं प्रज्वलित हुई और उन्होंने अपनी भाभियों को स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने के लिए प्रेरित किया उन्होंने इस महान कार्य के लिए अपने आभूषण भी दान कर दिए दुर्भाग्य से उनके पति को तपेदिक हो गया और जो उन दोनों एक भयानक और लाई इलाज बीमारी थी और सभी प्रयासों और प्रार्थनाओं के बावजूद वह 27 साल की उम्र में उन्हें विधवा बनाकर चले गए उनकी बड़ी बेटी भी इसी बीमारी से मर गई।

सक्रिय सामाजिक राजनीतिक जीवन की शुरुआत।

लक्ष्मी बाई को एहसास हुआ कि वर्धा में लड़कियों के लिए कोई स्कूल नहीं था जहां वे अपनी बेटी को दाखिला दिला सके इसलिए उन्होंने लड़कियों के ‘ स्कूल की नींव ‘ रखने में पहला कदम उठाया और इस तरह वर्धा में महिला साक्षरता का मार्ग प्रशस्त किया उन्होंने देखभाल करने वाले और समर्पित शिक्षकों की तलाश की और उन्हें अपने घर में रहने की जगह दी और उन्हें अपने परिवार के सदस्यों की तरह माना उन्होंने लड़कियों को साइकिल चलाना और तेराकी  सीखने के लिए प्रोत्साहित किया उन्होंने सेवाग्राम में कटाई कार्यक्रमों प्रभात फेरी , शाम की प्रार्थना सभाओं और प्रश्न उत्तर  सत्र में भाग लिया। उन्होंने जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं की दुर्दशा देखी और उनके लिए समाधान तलाशना शुरू किया इस बीच उनके बेटे आरएसएस में शामिल हो गए जहां उन्होंने शारीरिक और मानसिक अनुशासन युद्ध कला आदि सिखाई गई उन में बदलाव और अनुशासन देखकर लक्ष्मीबाई ने फैसला किया कि महिलाओं के लिए एक समान संस्थान उनकी समस्याओं का समाधान है उन्होंने आरएसएस के संस्थापक डॉक्टर के बी हेडगियर से मिलने का फैसला किया डॉक्टर हेडगेवार उनकी शांत शक्ति और दर्शन से प्रभावित हुए स्वामी विवेकानंद जैसे महान नेताओं के अवधारणा के साथ उन्होंने उन्हें महिलाओं को सशक्त बनाने की आवश्यकता के बारे में समझाने की कोशिश की डॉक्टर हेडगेवार ने उनसे पूछा कि क्या वह महिलाओं का नेतृत्व करने की जिम्मेदारी लेने को तैयार हैं और इस तरह राष्ट्रीय सेविका समिति का गठन किया गया।

रूढ़िग्रस्त समाज विरोध

लक्ष्मी बाई केलकर ने रूढ़िग्रस्त समाज से जमकर टक्कर ली उन्होंने अपने घर में हरिजन काम करने वाले रखें महात्मा गांधी की प्रेरणा से उन्होंने घर में चरखा मंगवाया एक बार जब महात्मा गांधी ने एक सभा में दान करने की अपील की तो लक्ष्मीबाई केलकर ने अपनी सोने की जंजीर ही दान में दे दी थी।

आत्मविश्वास का बीजारोपण और कर्तव्य पथ पर अग्रसर ।

लक्ष्मी बाई ने महसूस किया कि महिलाओं की बेहतरी की दिशा में पहला कदम महिलाओं को भारत के गौरवशाली अतीत और राष्ट्रवादी मूल्य के प्रति गर्व के बारे में प्रेषित करना था क्योंकि विदेशी दासता के तहत महिलाओं में आत्मविश्वास की कमी थी और उन्हें लगता था कि उनके मूल्य और आदर्श पश्चिमी विचारधाराओं से कमतर है वह अपने समर्पित कार्यकर्ताओं के साथ घर-घर गई और उन्हें बाहर निकाल कर राष्ट्रीय सेवा में शामिल होने के लिए प्रेरित किया विजयादशमी के दिन , राष्ट्रीय सेविका  समिति का औपचारिक उद्घाटन किया गया उनके उत्साह से प्रेरित होकर महिलाओं में नए साहस और आत्मविश्वास के साथ खुद को नामांकित करना शुरू कर दिया सभी सेविकाएं उन्हें ‘ वंदनीया  मौसी जी ‘ के रूप में संबोधित करने लगी और वह लाखों सेविकाओं के लिए एक आदर्श विश्वास पात्र और मार्गदर्शक बन गई उन्होंने शारीरिक और बाहरी व्यायाम से खुद को मजबूत करना शुरू कर दिया उन्होंने विभिन्न स्थानों पर नए केंद्र या शाखाएं खोली और नए लोगों को प्रेरित करने और शामिल करने के लिए शिविर आयोजित किया ।

धर्म-कर्म और कर्तव्य की गहरी भावना

यह पारिवारिक और सामाजिक मूल्यों के बीच अद्वितीय संतुलन रखने वाली महिला थी कई बार उन्हें घर पर रहना पड़ता था खास करके बच्चों की बीमारी के दौरान जबकि वे अपने सामाजिक कार्यों को भी जारी रखती थी घर और सामाजिक जीवन को एक दूसरे से प्रभावित किए बिना संभालने का उनमें असाधारण कौशल था शुरू में वह महिलाओं को प्रेरित करती थी और प्रशिक्षण शिविर लगती थी शिवर सफलतापूर्वक लगने के बाद उन्होंने दूसरे चरण की नींव रखी जिसमें नर्सरी स्कूल और लघु उद्योग स्थापित करने के प्रस्ताव थे। दुर्भाग्य से भारत का विभाजन हो गया और उन्हें अपना ध्यान अधिक महत्वपूर्ण मामलों की ओर लगाना पड़ा उन्होंने हिंदुओं को नैतिक आध्यात्मिक और शारीरिक सहायता देने के लिए सिंध तक की यात्रा की कराची में उन्होंने सांप्रदायिक घृणा और हिंसा को प्रत्यक्ष रूप से देखा उन्होंने वहां की सेविकाओं को एकजुट और शांत रहने के लिए प्रेरित किया और मुंबई में उनका सुरक्षित आवास और भोजन की व्यवस्था की।

रामायण एवं गीता से धर्म एवं कर्म के रास्ते पर चलना सीखा

ऐसा कहां जाता है कि इस दौरान उन्होंने एक स्वप्न आया जिसमें एक पवित्र ऋषि ने उन्हें रामायण दी और शांति और सद्भाव के लिए काम करने का आग्रह किया यह उत्साह की भावना के साथ झांकी और रामायण के प्रवचनों के साथ समिति को एक नई दिशा देने का फैसला किया उनके भाविक और हृदय स्पर्शी प्रवचनों को सुनकर लोग उनके बड़े प्रशंसक बन गए उन्होंने इस मिशन पर कई राज्यों की यात्रा की वह एक प्रखर वक्ता थी और श्रोताओं को मंत्र मुक्त कर देती थी उन्होंने केवल भगवान राम के राज्याभिषेक तक ही कथा सुनाएं क्योंकि वह एक योग प्रशासक और शासक के रूप में उनके गुणो पर जोर देना चाहती थी जिनके कर्तव्य और त्याग के आदर्शों को आम जनता अपने दैनिक जीवन में अपना शक्ति है उनके प्रवचन राज्याभिषेक समारोह के साथ समाप्त होते थे उन्होंने महिलाओं को सीता का अनुकरण करने और साहस शक्ति पवित्रता और निर्भयता के साथ परिवार समाज और राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्यों को समझने के लिए प्रेरित किया।

योग साधना एवं चिकित्सा  स्वास्थ्य के कार्य ।

मौसी ने विभिन्न स्वास्थ्य चिकित्सा और डॉक्टर से परामर्श किया और महिलाओं की जरूरत के हिसाब से फिटनेस कार्यक्रम को फिर से डिजाइन किया योगासन सूर्य नमस्कार को शामिल किया गया और इतिहास की महान महिलाओं की प्रेरक कहानियां को संकलित किया गया और प्रार्थना सभाओं के दौरान सुनाया गया महिलाओं के शारीरिक और मानसिक विकास के विशेषज्ञ मार्गदर्शन और प्रशिक्षण के लिए उन्होंने सेवाओं को संबोधित करने के लिए कई प्रतिष्ठित हस्तियों और डॉक्टर को आमंत्रित किया उन्होंने मराठी में ‘ सेविका ‘ नामक पत्रिका का प्रकाशन शुरू किया जो अब कई भाषाओं में  ‘ राष्ट्र सेविका ‘ के रूप में प्रकाशित होती है उन्होंने महिलाओं की प्राकृतिक प्रतिभा को विकसित करने के लिए व्यावसायिक पाठ्यक्रम प्रशिक्षण कार्यक्रम और अल्पकालिक पाठ कर्मों के साथ ग्रहणी विद्यालय की स्थापना की और भारत की गौरवशाली संस्कृति के आधार पर महिलाओं की शिक्षा को पूर्ण संगठित करने के लिए  ‘भारतीय श्री विद्या निकेतन ‘ की स्थापना की उन्होंने 8 भुजाओं वाली देवी शक्ति की पूजा की प्रथा शुरू की जिनमें से प्रत्येक में क्रमशः कमल ,भागवत गीता, भगवा ध्वज, अग्नि कुंड, घंटी , तलवार और माला थी जो नारी  शक्ति का प्रतिनिधित्व करती है और विभिन्न केंद्रों में उनकी मूर्तियां स्थापित की उन्होंने महिलाओं की संगीत और भक्ति प्रतिभा को प्रोत्साहित करने के लिए भजन मंडलों का गठन किया और उन्हें रानी लक्ष्मीबाई और जिजामाता जैसी महान महिलाओं की उपलब्धियां को काव्यात्मक रूप में रचने के लिए प्रेरित किया उन्होंने शिवाजी के संघर्ष स्वामी विवेकानंद को अपने चित्रों के माध्यम से सामाजिक पुनर्जागरण और जनता के उत्थान में योगदान देने के लिए आमंत्रित किया उन्होंने महान महिला नेताओं की शताब्दी मनाई और हर बैठक में वंदे मातरम गाकर मातृभूमि का सम्मान करने की परंपरा शुरू की उन्होंने नागपुर में देवी अहिल्याबाई मंदिर , वर्धा में अष्टभुजा मंदिर , और कई अन्य मंदिरों का निर्माण कराया ।

गुणों का भंडार

अपनी व्यापक और विविध जिम्मेदारियां के बावजूद मौसी जी स्वच्छता की आदर्श थी और कभी भी अपने घर की अपेक्षा नहीं करती थी वह धार्मिक थी और पूजा के दौरान फूलों की सजावट के सौंदर्य का हमेशा ध्यान रखती थी वह तीर्थ यात्राओं पर जाती थी और समय के मूल्य का बहुत ध्यान रखती थी क्योंकि उनके पास करने के लिए बहुत सारे काम होते थे उन्होंने कभी लोगों को खुद को ऊंचे स्थान पर रखने की अनुमति नहीं थी और अपनी सारी प्रशंसा समिति को समर्पित कर दी जिससे चाटुकारिता को हाथों रहित किया गया । उनकी याददाश्त बहुत ही तेज थी और एक बार परिचय होने पर भी वे किसी भी व्यक्ति को याद रख सकती थी प्रत्येक व्यक्ति को महत्व और देखभाल और चिंता देने की उनकी क्षमता ने उन्हें सभी सेविकाओं का प्रिया बना दिया वह उन सभी के लिए एक मां की तरह थी और वह खुद को उनके बच्चे होने के लिए भाग्यशाली मानती थी ।

नारी को नारायणी बनाने वाली थी मौसी जी

विश्व का सबसे बड़ा तेजस्वी स्त्री संगठन प्रचार प्रसार से कोसों दूर रहते हुए निरंतर कार्य कर रहा है भारतीय चेतना संस्कार और राष्ट्र निर्माण की भावना को 30 के दशक में ऐसी सोच रखने वाली एक साधारण सी महिला ने अपने मन में जब यह संकल्प लिया तो कौन जानता था कि उनका संकल्प मूर्त रूप ले लेगा और उनके विचारों का एक छोटा सा बीज विशाल वट वृक्ष बनकर देश दुनिया में विस्तार कर लेगा एक साधारण सी ग्रहीणी ने अपने दृढ़ संकल्प, अटल लक्ष्य ,समर्पण, और त्याग से एक ऐसा संगठन खड़ा कर दिया जो आज दुनिया का सबसे बड़ा महिला संगठन है और जिसकी जगह भारत के बड़े महानगरों से लेकर दूर दराज के दुर्गम इलाकों और गांव तक पहुंच चुकी है विदेश में भी इस संगठन का नाम काम और ख्याति है आज इस संगठन में लाखों महिलाएं समाज और राष्ट्र निर्माण में चुपचाप अपना योगदान दे रही है कौन जानता था सांसारिक परिभाषा में एक साधारण महिला जो दसवीं तक की पढ़ाई भी नहीं कर पाई और जो मात्र 27 वर्ष की आयु में विधवा हो गई वह एक ऐसा अनुपम कार्य कर जाएगी जिससे भारत की आने वाली पीढ़ियां उन्हें सदा सदा के लिए याद रखेंगे और वह महान महिला के नाम से इतिहास के पन्नों में दर्ज हो जाएगी आने वाली पीढ़ियां उनका अनुसरण करेंगे और अपना आदर्श मनेगी ऐसी असाधारण महिला थी वंदनानीय मौसी जी लक्ष्मीबाई केलकर जिन्होंने 1936 में एक ऐसा महिला संगठन की नींव रखी जो नारी शक्ति का प्रतीक बन गया राष्ट्रीय सेविका  समिति भले ही नारी विमर्श के पश्चिमी पैमानों पर खरी ना उतरती हो पर यह नारी शक्ति का प्राचीन भारतीय परंपरा को शोध करती है जो नारी को पुरुष को प्रति स्पर्धक नहीं बल्कि  पूरक मानती है जिस तरह परिवार में पत्नी और पति एक दूसरे के पूरक है इस तरह स्त्री पुरुष समाज में एक दूसरे के पूरक हैं।

वंदनीय मौसी जी का जीवन गाथा एक साहसी महिला की प्रेरक गाथाहै जिन्होंने महान नैतिक साहस और मानसिक निडरता , अनुशासन के साथ सभी बडो का सामना किया और अंततः विजय हुई पुरुष प्रधान समाज में उनकी दूरदर्शी दृष्टि साहस और आत्मविश्वास के परिणाम स्वरुप महिलाओं के पुनर्वास के लिए एक शक्तिशाली संगठन की शुरुआत हुई जिसने पारंपरिक भारतीय महिलाओं के दिलों में देशभक्ति की भावना और सूक्त स्त्री शक्ति को जगाया उन्होंने वसुदेव कुटुंबकम यानी पूरा विश्व एक परिवार है कि हिंदू विचारधारा की सर्वोच्चता स्थापित करने के लिए संघर्ष किया उन्होंने अपना जीवन मातृभूमि की सेवा और देखभाल के लिए समर्पित कर दिया उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि समाज के सभी सदस्यों की सेवा करने के लिए महिलाओं को मातृत्व की भावना को पोषित करना चाहिए ।उनके अनुसार    सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामया सभी लोग सुखी रहें और सभी लोग निरोगी स्वस्थ रहे।

कर्तव्य प्रेम और त्याग की भावना के साथ सेवा एक महान राष्ट्र की सच्ची पहचान है उन्होंने हर महिला के दिल  में प्राचीन हिंदू संस्कृति की महिमा पर गर्व पैदा करने की कोशिश की और आने वाली पीढियां के लिए सभी भारतीयों महिलाओं द्वारा उनका सम्मान किया जाएगा ।वदिनी मौसी जी लक्ष्मी बाई केलकर नारी जागरण की अग्रदूत , राष्ट्रीय सेविका समिति का ध्येय वाक्य है स्त्री राष्ट्र की आधारशिला है मूल लक्ष्य स्त्री विमर्श में सनातन संस्कृति की भारतीय परंपरा को सुदृढ़ करना है।

कर्तव्य,  प्रेम और त्याग की भावना के साथ सेवा एक महान राष्ट्र की सच्ची पहचान है उन्होंने हर महिला के दिल  में प्राचीन हिंदू संस्कृति की महिमा पर गर्व पैदा करने की कोशिश की और आने वाली पीढियां के लिए सभी भारतीयों महिलाओं द्वारा उनका आदर सहित सम्मान किया जाएगा।  उनके द्वारा बताए गए मार्ग पर चलने का सतत प्रयास निरंतर जारी रहेगा।

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