जुबिली स्पेशल डेस्क
इजराइल के साथ जारी संघर्ष विराम के बाद ईरान ने अपनी सैन्य रणनीति में बड़ा बदलाव किया है। लगातार हुए टारगेटेड हमलों और सैन्य अधिकारियों की हत्याओं के बाद अब तेहरान सरकार ने अपने कई प्रमुख रक्षा संगठनों में नए प्रमुखों की सार्वजनिक घोषणा नहीं करने का निर्णय लिया है।
इस फैसले के पीछे मुख्य वजह है, इजराइली खुफिया एजेंसियों की सटीक निशानेबाजी। रिपोर्टों के मुताबिक, संघर्ष की शुरुआत में ही इजराइल ने ईरान के करीब 10 शीर्ष सैन्य अधिकारियों को मार गिराया था, जिनमें ‘खतम अल-अनबिया’ ब्रिगेड के प्रमुख अली शादमानी भी शामिल थे। उनकी मौत के बाद जिन दो अधिकारियों ने बारी-बारी से पदभार संभाला, वे भी इजराइली हमलों में मारे गए।
‘खतम अल-अनबिया’ आखिर है क्या?
ईरान की सुरक्षा संरचना में ‘खतम अल-अनबिया’ (जिसका मतलब है: “पैग़ंबरों की मुहर”) एक अहम सैन्य-इंजीनियरिंग इकाई है, जिसे Islamic Revolutionary Guard Corps (IRGC) नियंत्रित करता है। यह संगठन न सिर्फ मिसाइलों और हथियार प्रणालियों की निगरानी करता है, बल्कि ईरान की कई बड़ी औद्योगिक और पुनर्निर्माण परियोजनाओं का भी हिस्सा रहा है — खासकर 1980-88 के ईरान-इराक युद्ध के बाद।
हमास से प्रेरित रणनीति?
ईरान के इस फैसले के बाद कई रणनीतिक विश्लेषक इसे “हमास मॉडल” बता रहे हैं। गौरतलब है कि गाजा में इजराइली हमले के बाद हमास ने अपने शीर्ष नेता याह्या सिनवार की हत्या के बाद नया प्रमुख सार्वजनिक रूप से घोषित नहीं किया था। उनकी रणनीति यह थी कि अगर कमांडर की पहचान गुप्त रहे, तो इजराइल के लिए उसे निशाना बनाना मुश्किल होगा।
ईरान की मेहर न्यूज एजेंसी से बात करते हुए एक सैन्य प्रवक्ता ने कहा, “अब हम पुरानी गलतियों को नहीं दोहराएंगे। जो हुआ, वह एक झटका था — लेकिन हमारी जड़ें गहरी हैं, और हमारी रणनीति अब पहले से कहीं ज्यादा ठोस है।”
नया दौर, नई रणनीति
ईरान के इस कदम को एक संकेत माना जा रहा है कि वह अब ‘शोकेस कमांड’ के बजाय ‘शैडो कमांड’ यानी छाया नेतृत्व की रणनीति की ओर बढ़ रहा है। इसका उद्देश्य है — इजराइल की निगरानी और टारगेट किलिंग से बचाव, ताकि सैन्य ढांचे की निरंतरता बनी रहे।