स्पेशल डेस्क
लखनऊ। पोषम पा भई पोषम पा… अब तो जेल में जाना पड़ेगा या फिर लुका छिपी के साथ ही घर के आंगन में सिकड़ी बनाकर इक्कट-दुक्खट जैसे खेल एक बार फिर सुर्खियों में आ गए है। इतना ही नहीं आइस पाइस हो या फिर अंताक्षरी अथवा कैरम बोर्ड सभी नॉन ओलम्पिक गेम्स एक बार फिर घरों में खेले जा रहे हैं।
दरअसल कोरोना वायरस के चलते इस समय पूरे देश में लॉकडाउन है। इस वजह से लोगों का वक्त खो-खो, सिकड़ी, कैरम, लूडो, पोषम्पा भई पोषम्पा और गुट्टा खेलना, सुर बग्घी जैसे खेल से कट रहा है।
मजे की बात यह है यह खेल अपना अस्तित्व खो चुके थे। ऐसे में मोबाइल गेम के इस दौर में बचपन के खेल खो चुके थे वो एकाएक फिर से लौट आए है।
नॉन ऑलिम्पक गेम्स इस समय हर घरों में खेला जा रहा है। लॉकडाउन को एक हफ्ते से ज्यादा का वक्त गुजर चुका है लेकिन लोग अपने परिवार के साथ वक्त बेहद मजेदार तरीके से गुजार रहे हैं। आलम तो यह है कि मम्मी, पापा और चाचा चाची सभी इन खेलों को बड़े शौक से खेल रहे हैं।
आइस-पाइस के खेल मे कौन कहां छिप गया, पता लगाना मुश्किल हो जाता लेकिन अगर दिखाई पड़ गये तो तपाक से आइस-पाइस कह कर उसे मरा हुआ मान लिया जाता।
आइस-पाइस को भी अपने घरों में खेल रहे हैं। हालांकि वहीं बच्चे और नौजवान अपनी छतों पर क्रिकेट खेलते नजर आ रहे हैं। लॉकडाउन के दौरान लोग छतों पर पतंगबाजी उड़ाते नजर आए।
घर-घर में इन खेलों को लोग सुबह और शाम खेल रहे हैं। इसके साथ ही मैदान से दूर हो चुके इन बच्चों को भी इन खेलों में खूब मजा आ रहा है। कई लोगों का कहना है कि लॉकडाउन के चलते कहीं भी नहीं जा सकते हैं। ऐसे में उनका वक्त कट नहीं रहा है। इस वजह से ऐसे खेलों को चुना जिससे समय भी कट जाये और चोट लगने का डर भी नहीं है।
लॉकडाउन की वजह नॉन ओलम्पिक गेम्स तेजी घरों में दस्तक दे रहा है। इतना ही नहीं जिनकी ज्वाइंटर फैमिली है, वहां तो नॉन ओलम्पिक गेम्स खूब खेला जा रहा है।
घर में अधिक लोग खेलने वाले है तो वे खो-खो, विष अमृत और ऊंची नीचा ग्लास खेल रहे हैं। जिन घरों में लोग कम है वहां पर पोषम पा भई पोषम पा, गुट्टा, सुर बगघी, सिकड़ी, कैरम और लूडो जैसे खेल लोगों को खूब पसंद आ रहे हैं। लोग इन खेलों के सहारे अपना मनोरंजन भी खूब कर रहे हैं।
भूले-बिसरे खेल के आयोजन कर्ता व साहस sports अकादमी की सुधा वाजपेयी बतायी है कि प्रोफेशनल खेलों के साथ इन खेलों के आयोजन भी जरूरी है। इससे उन लोगों का मनोबल बढ़ता है जो सिर्फ घरों में रहते हैं। इनकी भी ख्वाहिश होती है कि वह भी कुछ कर सके। ऐसे खेलों से उन लोगों को जोड़ा जा सकता है, जिन्हें समाज में कहीं कुछ कर दिखाने का मौका नहीं मिलता है।
नॉन ओलम्पिक गेम्स से क्या है फायदा
राजधानी में तकरीबन 60 लाख से अधिक लोग रह रहे हैं. इनमें से आठ से दस हजार लोग ही सीधे प्रोफेशनल खेलों से जुड़े हुए हैं। इंटरनेट के इस युग में जो लोग प्रोफेशनल गेम्स से नहीं जुड़े हैं वे मोबाइल और वीडियो गेम्स खेलते है, जबकि नॉन ओलम्पिक गेम्स से ना केवल लोग अपना मनोरंजन कर सकते है बल्कि रिश्तों को भी मजबूत रखते हैं। ज्वाइंटर फैमलीज में महिलाएं ऐसे खेलों में खूब बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेती थी।
नॉन ओलिम्पक एसोसिएशन से जुड़े लोगों का क्या कहना
उधर नॉन ओलम्पिक एसोसिएशन से जुड़े लोगों ने खुशी जाहिर करते हुए कहा कि मोबाइल के इस दौर में नॉन ओलिम्पक गेम्स लगभग खत्म हो चुके थे लेकिन इसके अस्तित्व बचाए जाने के लिए लगातार प्रयास चल रहे हैं।
शहर के विभिन्न इलाकों के लोग इसमें हिस्सा लेते थे। इन खेलों में वह लोग भी शामिल होते थे, जिन्हें एक्सपोजर नहीं मिलता था। ऐसे में इन खेलों में शामिल होने से लोगों को मनोबल बढ़ता था। घर के किचन में काम करने वाली महिलाएं तक इनमें हिस्सा लेते थी।