Wednesday - 10 January 2024 - 8:54 AM

नहीं रहा पत्रकारिता का कमाल

शबाहत हुसैन विजेता

लखनऊ. 13 जनवरी की शाम तक उत्तर प्रदेश की सियासत की तहों को खोलकर सामने ला रहे एनडीटीवी के रेजीडेंट एडीटर रात को सोये तो सुबह उठे ही नहीं. कौन जानता था कि उत्तर प्रदेश की बदलती सियासत की जो तस्वीर कमाल खान पेश कर रहे हैं दरअसल यह उनकी आख़री रिपोर्ट है. कमाल खान रिपोर्टिंग की उस ज़मीन से जुड़े थे जिसमें हलकी बात को चिल्लाकर कह देना उनकी फितरत नहीं थी. वह वज़नदार बात को बहुत संयम के साथ बोलते थे. वज़नदार बात को बहुत आसानी से कह जाते थे.

कमाल खान का जाना सिर्फ एक पत्रकार का जाना भर नहीं है. यह चला जाना है गंगा-जमुनी तहजीब का. गंगा-जमुनी तहजीब के पैरोकार बहुत से मिल जायेंगे मगर वह तो इस तहजीब को जीने वाले शख्स थे. कमाल खान ने पत्रकार रुचि कुमार से शादी की थी. घर में मज़हब को लेकर कोई बैर-भाव नहीं था.

उन्हें जानने वाले बहुत से लोग यही समझते होंगे कि पत्नी हिन्दू हैं इस नाते वह दोनों मजहबों में बैलेंस बनाना जानते हैं जबकि हकीकत यह थी कि बचपन से ही वह हिन्दुओं के साथ खेल कर बड़े हुए थे. कमाल खान के घर का माहौल भी गंगा-जमुनी तहजीब वाला था.

कमाल खान बड़ी श्रद्धा के साथ रामायण देखते थे. रामायण के एक-एक किरदार की उन्होंने अपने मन मस्तिष्क में बहुत अच्छी तरह से स्टडी की थी. अयोध्या का बदलता माहौल तो उन्होंने अपनी पत्रकारिता के दौरान देखा, परखा और समझा. रामलीलाओं को देखते हुए बड़े हुए कमाल खान ऐसी रामलीलाओं की कवरेज करने ज़रूर पहुँच जाते थे जहाँ पर राम-लक्ष्मण के किरदार मुसलमान निभाते थे.

कमाल खान को ढेरों चौपाइयां याद थीं लेकिन विश्व हिन्दू परिषद वाले राम उन्हें पसंद नहीं थे. अपनी एक रिपोर्ट में कमाल खान ने कहा था कि राम ने बचपन से लेकर बड़ी उम्र तक कभी भी गुस्सा नहीं किया. बहुत ठंडे दिमाग से हर बात सुनते थे और अपना फैसला कर लेते थे. जब उनके बनवास का आदेश निकाला गया तो भी उनके चेहरे पर रोष नहीं उभरा और जब राजगद्दी की तरफ उनके कदम बढ़े तो भी चेहरे पर घमंड नहीं उभरा.

कमाल खान अपनी उस रिपोर्ट में कहते हैं कि राम की पूरी ज़िन्दगी में गुस्सा सिर्फ एक बार आया था जब उन्होंने तीन दिन तक समुद्र से रास्ता देने की प्रार्थना की क्योंकि उन्हें लंका जाना था लेकिन समुद्र अनसुना करता रहा तब उन्हें गुस्सा आया और उन्होंने समुद्र को सुखा देने के लिए धनुष वाण उठा लिया. धनुष वाण उठाये वही राम विश्व हिन्दू परिषद को पसंद आ गए और वही उसके हर कलैंडर में शामिल हो गए.

कमाल खान अयोध्या रिपोर्टिंग करने गए थे तो सरयू के किनारे खड़े होकर उन्होंने कहा था कि राम जो सबको साथ लेकर चले. जिनका नाम अभिवादन का ज़रिया बना. लोग जय सियाराम कहकर गर्व का अनुभव करते हैं वही जयश्रीराम के नारे में बदले तो छह दिसम्बर सामने आया.

कमाल खान ने अयोध्या को लेकर तमाम खबरें एनडीटीवी के लिए बनाईं. रामलला के लिए कपड़े तैयार करने वाले मुसलमानों और अयोध्या के मन्दिरों को फूल सप्लाई करने वाले मुसलमानों पर उनकी स्टोरी काफी चर्चित भी हुईं.

प्रिंट से इलेक्ट्रानिक में जाने वाले कमाल खान ने पढ़ना कभी नहीं छोड़ा. एनडीटीवी के ग्रुप एडीटर रवीश कुमार के मुताबिक़ कमाल खान कहीं टूर पर जाते थे तो अपने साथ तमाम किताबें लेकर जाते थे. अपनी खबरों के चार लाइन के इंट्रो के लिए कई बार वह चार-चार घंटे तक पढ़ते रहते थे. वह खूब पढ़ाई करते थे इसलिए उनकी खबरें दूसरे किसी भी रिपोर्टर से अलग होती थीं. वह खूब शेर-ओ-शायरी का इस्तेमाल करते थे. सैकड़ों शेर उन्हें रटे हुए थे.

कमाल खान वाकई कमाल के थे. मौजूदा दौर में वह बड़े पत्रकारों में गिने जाते थे मगर सामने आ खड़े होते थे तो कहीं से नहीं लगता था कि यह वही कमाल खान हैं जो अखबार में थे तो लगता था कि अखबार में में नगीने की तरह से फिट हैं और अखबार छोड़कर चैनल में चले गए तो लगता था कि जैसे यह तो चैनल के लिए ही बने हैं.

अपनी आख़री सांस तक बेहतरीन पत्रकारिता को समर्पित रहे कमाल खान जिस शान से जिए उसी शान से चले भी गए. बटलर पैलेस कालोनी के बी-28 नम्बर मकान से वह आख़री बार निकले तो जिस एम्बुलेंस में सवार हुए उसके पीछे वाहनों का एक बड़ा काफिला कर्बला मलका जहाँ के लिए रवाना हुआ. दरवाज़े पर देर तक भीड़ जमा रही.

रिपोर्टिंग को लेकर उनके मन अजब सी बेचैनी हुआ करती थी. कैफ़ी आज़मी से उन्होंने इंटरव्यू के लिए बात की थी मगर उन्होंने मना कर दिया था. उन्होंने रंगकर्मी राकेश से बात की और उनसे कैफ़ी साहब को तैयार करने को कहा. कमाल खान और रुचि कुमार के साथ राकेश भी कैफ़ी आज़मी के गाँव मिजवां रवाना हुए. वहां से शानदार इंटरव्यू करके वापस लौटे. उन्हें जिससे भी बात करनी होती थी उसके लिए कोई न कोई क्लू ढूंढ ही लेते थे. यह अजब इत्तेफाक है कि जिन कैफ़ी आज़मी का इंटरव्यू करने के बाद कमाल खान विजयी अंदाज़ में आज़मगढ़ से वापस लौटे थे उन्हीं कैफ़ी की सालगिरह के दिन उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया.

बात तय हो जाती तो निकल जाते थे अपनी मंजिल की तरफ. इधर चुनाव की वजह से काफी बिजी थे. दिमाग में हर वक्त खबरें चला करती थीं. सरकार में मची भगदड़ पर भी उनकी पैनी नजर थी. सरकार से इस्तीफ़ा देने वाले हर मंत्री की डीटेल उनके पास थी. कल भी देर तक काम किया था. आज भी करना था. एक बड़ा काफिला आज कमाल खान के घर से रवाना हुआ तो दूर से ही नज़र आ गया कि खबर कोई बहुत बड़ी है, ब्लास्ट करने वाली है खबर. मगर बड़ा सन्नाटा था. भीड़ भी बड़ी खामोश थी. अलविदा कमाल खान. यह दुनिया चलती रहेगी पहले की तरह. बदलते दौर में थोड़ा सन्नाटा होगा मगर कोई आएगा जो आपकी तहरीक को आगे बढ़ाएगा. कोई न कोई कहीं होगा जो अब भी आपकी तरह मेहनत से अपनी रिपोर्ट तैयार करता होगा. कोई होगा जिसके मन में भी कुछ कर गुजरने की आप जैसी बेचैनी होगी क्योंकि होंठ थम जाने से पैगाम नहीं थम जाते, जिस्म की मौत कोई मौत नहीं होती है.

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