Sunday - 7 January 2024 - 6:18 AM

कौन निर्भया के दोषियों की सजा टलवाना चाहता?

– एक तरफ फांसी टलवाने के हथकंडे, दूसरी तरफ इच्छामृत्यु की मांग

 -‘जस्टिस डिलेड जस्टिस डिनाइड’ का सबसे ज्वलंत उदाहरण है निर्भया केस 

राजीव ओझा

लगता है वक्त आ गया, निर्भया के हत्यारे चारों बलात्कारियों को अंततः 20 मार्च को सुबह फांसी के फंदे पर लटका दिया जायेगा। निर्भया को सात साल बाद न्याय मिलने वाला है लेकिन कानूनी हथकंडों की बदौलत उन दरिंदों को, जिनको एक पल भी जीने का अधिकार नहीं था, सात साल से अधिक का जीवनदान मिल गया।

एक दरिंदा तो जुवेनाइल एक्ट की आड़ में बाच ही निकला। इस तरह देश का सबसे हाईप्रोफाइल निर्भया केस, ‘जस्टिस डिलेड जस्टिस डिनाइड’ का सबसे ज्वलंत उदाहारण है। बलात्कारी कितने बेशर्म और शातिर हैं इसका अंदाज इससे ही लगाया जा सकता है कि अब तीन बलात्कारियों अक्षय, पवन और विनय और उनके परिवार वालों ने अंतरराष्ट्रीय अदालत का दरवाजा खटखटाया है। आईसीजे से  फांसी टलवाने की अपील की है।

एक तरफ दोषियों के वकील एपी सिंह ने लिखा है कि उनके मुवक्किल चारों दोषियों को भारतीय न्याय व्यवस्था पर भरोसा नहीं है।

दूसरी तरफ दोषियों के परिजनों ने भारतीय न्याय व्यवस्था और राष्ट्रपति पर भरोसा जताते हुए इच्छामृत्यु की इजाजत मांगी है।  ये फांसी टलवाना चाहते हैं लेकिन इच्छामृत्यु चाहते हैं। न्याय जगत में इससे बड़ा तमाशा और मजाक और क्या हो सकता है।

दोषियों के वकील को दोष नहीं दिया जा सकता क्योंकि वो सजा में देरी के लिए जो भी बाजीगरी कर रहे हैं वह अपने पेशे की परिधि में रह कर कर रहे और यह कानून सम्मत है। लेकिन निर्भया मामले में सात साल की जो देरी हुई वह ऐसी ही अन्य पीड़ितों और उनके परिजनों के लिए सात युगों के समान है। साथ ही इसने बता दिया है कि भारतीय न्याय प्रणाली और व्यवस्था के तत्काल पुनर्गठन की जरूरत है।

हम निर्भया के हत्यारे चारों बलात्कारियों के वकील पर सवाल नहीं उठा सकते लेकिन बचाव के लिए एक-एक कर दया याचिका, पुनर्विचार याचिका, क्यूरेटिव याचिका, फिर पुनर्विचार याचिका की प्रक्रिया में काफी धन खर्च होता है। इस लिए बड़ा सवाल यह भी उठा रहा है कि  दोषियों की तरफ से धन की व्यवस्था या फंडिंग कौन कर रहा है।

अतः सरकार इस तथ्य की उच्च स्तरीय जांच करवाए कि निर्भया के हत्यारे चारों बलात्कारियों के संरक्षक कौन लोग हैं और उनको मुकदमा लड़ने के लिये फंड कहाँ से आरहा है?

सभी जानते हैं कि निर्भया के हत्यारे चारों बलात्कारी एक निजी बस के ड्राईवर, कंडक्टर, खलासी, क्लीनर के रूप में काम करते थे। उनकी अर्थिक पृष्ठभूमि/स्थिति का आकलन आसानी से किया जा सकता है।

यही कारण है कि पिछले कुछ महीनों से निर्भया के हत्यारे चारों बलात्कारियों के बचाव के लिए की जा रही अभूतपूर्व कोशिशों के कारण गम्भीर सवाल भारतीय न्याय व्यवस्था पर उठ रहे हैं।

पूरा देश इस कटु सत्य से भी परिचित हैं कि न्याय प्रक्रिया  कितनी महंगी है, विशेषकर हाइकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में मुकदमा लड़ना आम  लोगों के लिए आसान नहीं होता। पूरे भारत की बात जाने दें, केवल उत्तर प्रदेश में ही करीब 18 हजार रेप पीड़ितों को न्याय का इन्तजार है।

यही कारण है कि पिछले कुछ महीनों से निर्भया के हत्यारे चारों बलात्कारियों के बचाव के लिए की जा रही अभूतपूर्व कोशिशों के कारण गम्भीर सवाल भारतीय न्याय व्यवस्था पर उठ रहे हैं। अब निर्भया के हत्यारे बलात्कारियों की फांसी की सजा के खिलाफ इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में अपील की गई है। साथ ही संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार आयोग में भी अपील की गई है।

यह सब स्तब्ध करने वाला है। लोगों को पता होना चाहिए कि इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में मुकदमेबाजी में करोड़ों खर्च होता है। अक्सर राष्ट्रों की ओर से मामला आईसीजे में जाता है। उदाहरण के लिए कुछ समय पूर्व कुलभूषण जाधव की फांसी की सजा के खिलाफ भारत ने इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में अपील की थी।

 

भारत के हरीश साल्वे ने जाधव की फांसी रुकवाने का मुकदमा लड़ने के लिए केवल एक रुपये फीस ली थी लेकिन पाकिस्तान की तरफ केस लड़ने के लिए जो वकील खड़ा हुआ था उसने 6 करोड़ रुपये फीस ली थी।

हालांकि चारों हत्यारों की अपील इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में सुनी ही नहीं जाएगी लेकिन प्रश्न यह है कि वो कौन सी ताकतें हैं जो इन चारों हत्यारों को बचाने के लिए करोड़ों रुपये खर्च करने के लिए तैयार हैं?

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, लेख में उनके निजी विचार हैं)

(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति Jubilee Post उत्तरदायी नहीं है।)

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