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नक्सली हमले चुनाव के समय अधिक होते हैं ?

 

अविनाश भदौरिया

छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले में नक्सलियों ने एक बीजेपी विधायक के काफिले पर हमला किया है। माओवादियों ने बीजेपी विधायक भीमा मंडावी के काफिले पर आईईडी हमला किया है। इस हमले में बीजेपी के विधायक भीमा मंडावी की मौत हुई है। वहीं आईईडी ब्लास्ट की चपेट में आने से विधायक के साथ काफिले में मौजूद 3 सुरक्षाकर्मी और एक वाहन चालक की भी मौत हुई है।

इस हमले की पुष्टि एंटी-नक्सल ऑपरेशन के डीआईजी पी सुंदर राज ने करते हुए बताया है कि ‘हमें सूचना मिली कि दंतेवाड़ा में हुए आईईडी ब्लॉस्ट में तीन जवान शहीद हो गए। इस हमले में भाजपा विधायक भीमा मंडावी और वाहन के चालक की भी जान गई है। यह एक शक्तिशाली आईईडी विस्फोट था।’

बता दें कि दंतेवाड़ा छत्तीसगढ़ की बस्तर लोकसभा क्षेत्र का इलाका है और यहां पर आगामी 11 अप्रैल को वोटिंग कराई जानी है। लोकसभा चुनावों से ठीक पहले हुए इस हमले ने एकबार फिर नक्सल प्रभावित इलाकों में दहशत का माहौल बना दिया है। यह कोई पहला मौका नहीं है कि नक्सलियों ने किसी राजनीतिक दल को निशाना बनाया हो। इससे पहले भी कई नक्सली हमलों में नेताओं और जवानों को निशाना बनाया गया है।

25 मई 2013 को छत्तीसगढ़ के दरभा घाटी में हुए हमले को नक्सलियों का अब तक का सबसे भीषण हमला माना जाता है। इस हमले में कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व का सफाया हो गया था। नक्सलियों के इस हमले में पूर्व मंत्री महेंद्र कर्मा, छत्तीसगढ़ कांग्रेस अध्यक्ष नंद किशोर पटेल सहित कई वरिष्ठ नेता मारे गए।

वहीं नक्सलियों के हमले में सीआरपीएफ और राज्य पुलिस के जवानों की मौत की संख्या तो अनगिनत है। वैसे जवानों पर हमले के हिसाब से देखा जाए तो 6 अप्रैल 2010 को दंतेवाड़ा जिले के चिंतलनार जंगल में नक्सलियों द्वारा किया गया हमला अब तक का सबसे बड़ा हमला है। इस हमले में नक्सलियों ने सीआरपीएफ के 75 जवानों सहित 76 लोगों की हत्या कर दी थी।

कुल मिलाकर नक्सलियों के निशाने पर ज्यादातर नेता और प्रशासनिक लोग रहते हैं। एक और खास बात यह है कि इनके हमले चुनाव के समय बढ़ जाते हैं। ऐसे में यह बात आसानी से समझी जा सकती है कि ये लोग इलाके में अपना खौफ तो कायम ही रखना चाहते हैं। साथ ही देश के शीर्ष नेताओं और सेनाओं को भी डराने की कोशिश में रहते हैं।

क्षेत्र में विकास के खिलाफ हैं नक्सली

बता दें कि नक्सलियों की समस्या देश की एक प्रमुख समस्या है। ये वो लोग हैं, जिन्हें हम आतंकवादी की श्रेणी में रखकर सीधे-सीधे मार भी नहीं सकते और ना ही इनकी बगावत को बर्दाश्त किया जा सकता है।

सबसे बड़ी समस्या यह है कि इनकी पहचान भी मुश्किल है। यह हमारे-आपकी ही तरह दिखने वाले सामान्य लोग हैं जिन्हें ऐसा लगता है कि सरकार और शासन के लोग उनके दुश्मन हैं। इनकी लड़ाई भी जंगल और जमीन बचाने के लिए है लेकिन यह लोग किसी तरह की बातचीत को राजी नहीं होते। क्षेत्र का विकास इन्हें विनाश लगता है।

चुनाव नजदीक आते ही देश के कई नक्सल प्रभावित इलाकों में नक्सली जिस तरह लोकसभा चुनाव का बहिष्कार कर मतदान प्रक्रिया में बंदूक के जरिए दहशत का सहारा लेकर सनसनी फैला रहे हैं और सुरक्षाबलों को निशाना बना रहे हैं। उससे लगता है कि वे हताशा के दौर से गुजर रहे हैं।

दरअसल केंद्र की कई नीतियों, कार्यक्रमों को नक्सल प्रभावित इलाकों में जमीनी स्तर पर उतारे जाने के बाद नक्सलियों का विस्तार क्षेत्र कम हुआ है। इसे लेकर नक्सली आका बौखलाहट में हैं।

Radio_Prabhat
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