Sunday - 7 January 2024 - 1:11 PM

भारत के संविधान के अनुरूप नहीं है एमपी का धर्म स्वातंत्र्य विधेयक

आराधना भार्गव

लव जिहाद – धर्म स्वातंत्र्य  विधेयक को मध्यप्रदेश के कैबिनेट ने मंजूरी देकर भारत के संविधान के माखौल उड़ाया है। इन कानून को 28 दिसंबर से शुरू होने वाले विधान सभा सत्र में पेश किया गया।

इसके अनुसार किसी भी प्रकार के प्रलोभन, लोभ या जबरदस्ती धर्म परिवर्तित करने का प्रतिबंधित किया गया है। ऐसे मामले में 1 से 5 साल तक जेल और 25,000 रूप जुर्माना होगा ।  प्रलोभन या जबरदस्ती किसी महिला, नाबालिक या अनुसूचित जाति-जनजाति के लोगों का धर्म परिवर्तन करने पर 2 से 10 साल तक की सजा और 50,000 रूपये का जुर्माना होगा ।  धर्म को छिपाकर गलत तरीके से जानकारी देकर किसी अन्य प्रकार से प्रलोभन देकर या जबरदस्ती धर्म परिवर्तन कराने और इस तरह की शादी कराने पर 3-10 साल की सजा अथवा 50,000 रूपये का जुर्माना होगा।

भारत के संविधान के अनुच्छेद 13 (2) में उल्लेख किया गया है कि राज्य ऐसी कोई विधि नही बनाएगा जो हमारे मौलिक अधिकारों के विरूद्ध हो या जो हमारे मौलिक अधिकारों को छीनती या न्यून करती हो। और मौलिक अधिकारों के उल्लंघन में बनाई गई प्रत्येक विधि उल्लंघन की मात्रा शून्य होगी। न्यायालयों को यह शक्ति है कि मूल अधिकारों का उल्लंघन करने वाली विधियों को शून्य घोषित करें।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि बालिग  को अपनी शर्तो पर जिन्दगी जीने का हक है। कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के एटा की युवती द्वारा दूसरे धर्म के व्यक्ति से शादी करने को सही माना, उस व्यक्ति के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी रद्द कर दी इसी प्रकार के फैसले कर्नाटक, केरल के न्यायधीशों द्वारा दिये है।

भारत के संविधान में उल्लेख किया गया है कि मौलिक अधिकारों के खिलाफ देश में कोई भी कानून नही बनाया जा सकता। संविधान के अनुच्छेद 21 में व्यक्तिगत स्वतंत्रता का उल्लेख किया गया है। भारत में शादी की उम्र तय की गई है। व्यस्क लड़का या लड़की अपनी मर्जी से शादी करने के लिए स्वतंत्र होंगे, व्यस्क व्यक्ति अपनी मर्जी से जहाँ चाहे वहाँ शादी कर सकता है। माता-पिता, धर्म, समाज, जाति पुलिस, न्यायपालिका, विधायिका इसमें हस्तक्षेप नही कर सकते। संविधान के अनुच्छेद 21 के अन्तर्गत व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार प्रत्येक नागरिक को देता है, जिसमें व्यक्ति उसे क्या खाना है? क्या पहनना है? किसके साथ रहना है, किस धर्म को मानना है, किससे शादी करना है इसकी आजादी देता है। और इस आजादी के खिलाफ कोई भी सरकार कानून नही बना सकती।

लव जिहाद का कानून भारत के संविधान के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। इस संबंध में कर्नाटक हाईकोट ने अपने एक फैसले में कहा है कि शादी किससे करनी है, किससे नही, ये निजी पसंद का मामला है। जस्टिस एस सुजाता और सचिन शंकर मगद्म ने यह फैसला दिया उसी उसी तरह सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस मदन बी लोकुर ने भी उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा लाये गए लव जिहाद अध्यादेश को गलत बताया। इलाहाबाद हाईकोट ने भी धर्मांतरण से जुडे अपने ही फैसले को गलत ठहराया।

कोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि किसी भी धर्म के व्यक्ति को मनपसन्द साथी चुनने का हक है, इसमें किसी को दखल देने का अधिकार नही है। कोर्ट ने कहा कि अनिवार्य रूप से यह मायने नही रखता है कि कोई धर्मांतरण वैध है या नही, एक साथ रहने के लिए दो बालिगों के अधिकार को राज्य या अन्य द्वारा नही छीना जा सकता। लव जिहाद का कानून बनाकर भाजपा शासित राज्यों ने विधायिका और कार्यपालिका के अधिकारों को लेकर संघर्ष छेड़ दिया है। विधायिका और न्यायपालिका की टकराहट देश हित में नही है।

देश में दहेज प्रथा के खिलाफ अन्तर्राजातिय विवाह को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने भीमराव अम्बेडकर फाउण्डेशन के माध्यम से शुरूआत की जिसमें अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, के लड़के या लड़कियों के साथ सवर्ण समाज के व्यक्ति द्वारा शादी किये जाने पर 2,50,000/- रूपये पुरूस्कार देने के घोषणा की, जिसमें शादी के समय 1,50,000/- रूपये और शादी के पश्चात् शेष राशि डा. अम्बेडकर फाउण्डेशन में फिक्स डिपाजिट किये जाने का प्रावधान रखा। दुःख की बात ये है कि अभी तक यह राशि कुल 500 लोगों को प्रदान करने की घोषणा की है।

मध्यप्रदेश सरकार ने लव जिहाद जैसे गैर संवैधानिक कानून बनने के बाद फिर भीमराव अम्बेडकर फाण्डेशन  द्वारा अन्र्तरजातीय विवाह को प्रोत्साहन देने के मामले में अपना क्या मत रखेगी ? दहेज हत्या, दहेज प्रताड़ना, घरेलुहिंसा से महिलाओं को मुक्ति दिलाने के लिए मध्यप्रदेश सरकार को यह कहना था कि अन्तर्जातीय विवाह करिये सरकार आपके साथ है, तथा यह कहती अन्तर्जातीय विवाह करके 2,50,000/- रूपये की राशि लेकर अपना सुखमय जीवन प्रारम्भ कीजिए हम आपके साथ है का नारा देती।

मध्यप्रदेश विधान सभा के प्रोटेम स्पीकर रामेश्वर शर्मा ने कहा कि लोग अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातिय के लोगों के साथ विवाह इसलिए करते है कि उन्हें आरक्षण का लाभ मिले। मुझे बहुत दुःख के साथ कहना पड़ रहा है कि प्रोटेम स्पीकर रामेश्वर शर्मा जी को इस बात की जानकारी नही है कि शादी करने से जाति नही बदलती और जाति का लाभ शादी करने वाला व्यक्ति कानूनीतौर पर प्राप्त नही कर सकते।

मैं ऐसे हजारों रूलिंग पेश कर सकती हूँ। लव जिहाद का कानून लागू होने पर महिला हिंसा, दहेज हत्या के मामलों में बढ़ोतरी होगी। अन्तर्जातीय विवाह या मन पसन्द जीवन साथी चुनने पर लव जिहाद धर्म स्वतंत्र कानून का सहारा लेकर मध्यप्रदेश सरकार युवक एवं युवती को जेल के सींखचों के अन्दर डालेगी और झूठी प्राथमिकी के आधार पर सजा करवाने का काम भी करेगी, इस कारण किसान संघर्ष समिति लव जिहाद का कानून का विरोध करती है।

मध्यप्रदेश के छिन्दवाड़ा में स्थित पातालकोट तथा आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में बच्चों को सिकल-सेल (SCD) या ड्रीपेनोसाइटोसिस नामक रोग से पीढ़ित पाये गये है। यह एक आनुवंशिक रक्त विकार है जवाहरलाल नेहरू केन्सर रिसर्च इंस्टीटूट द्वारा रिसर्च करने पर यह जानकारी सामने आई है कि आदिवासी का विवाह आदिवासी के बीच होने के कारण उत्पन्न होने वाली संतान सिकलसेलिया नामक रोग से पीडित होती है। अब प्रदेश में लव जिहादः धर्म स्वातंत्र्य का कानून लागू किया गया है तो अब समजाति विवाह सम्पन्न होने से उत्पन्न संतान कई रोगों से पीड़ित होगी। लव जिहाद का कानून प्रदेश में अन्धविश्वास को बढ़ावा देगा तथा विज्ञान को नकारेगा।

 

(लेखिका मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा में एडवोकेट और समाजी कार्यकर्ता हैं, लेख में उनके निजी विचार हैं )

 

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