Saturday - 6 January 2024 - 1:07 AM

शिवराज कैबिनेट के विस्तार में सिंधिंया की प्रतिष्ठा दांव पर

रूबी सरकार

मध्यप्रदेश में मंत्रिमण्डल का विस्तार की कवायत तेज हो गई है। रविवार को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के दिल्ली पहुंचकर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात के बाद अब संभवतः एक-दो दिन बाद मंत्रिमण्डल विस्तार होने की संभावना है।

इधर गृह मंत्रालय ने राज्यपाल लालजी टंडन के अस्वस्थ्य होने के कारण प्रदेश का प्रभार उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदी बेन पटेल को सौंपा है। आनंदी बेन पटेल सोमवार को राज्यपाल पद की शपथ लेंगी। श्रीमती पटेल पहले भी मध्यप्रदेश की राज्यपाल रह चुकी हैं।

मंत्रिमण्डल विस्तार के साथ ही 24 सीटों पर विधानसभा चुनाव की गतिविधियां तेज हो जायेंगी, जिसमें पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ और सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिंया की प्रतिष्ठा दांव पर है। यह चुनाव भी दिलचस्प होगा। क्योंकि कमलनाथ जहां अपनी खोई प्रतिष्ठा दोबारा पाने के लिए ऐडी-चोटी का जोर लगायेंगे, वहीं ज्योतिरादित्य सिंधिया को जनता की अदालत में सरकार गिराने के औचित्य और खासकर ग्वालियर-चम्बल संभाग में अपना प्रभाव बरकरार रखने के लिए अपने समर्थकों को दोबारा विधायक बनाना होगा।

इन दोनों की प्रतिष्ठा के बीच मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की नींद हराम है। हालांकि यह तय माना जाता है, कि सत्ता जिसके पास है, अधिकतर उन्हीं के प्रत्याशियों की जीत सुनिश्चित होती है। ऐसे में भाजपा को अपनी सरकार कायम रखने के लिए मात्र 9 विधायकों की जरूरत है, जबकि उपचुनाव में भाजपा की जीत कम से कम 15 सीटों पर मानी जा रही है।

यह सरकार भी विधानसभा के उपचुनाव के नतीजों पर ही कायम रह पायेगी। 15 साल का सत्ता का वनवास को समाप्त करने में कांग्रेस पार्टी के रणनीति में त्रिकोण की भूमिका अहम रही है। लेकिन ज्योतिरादित्य के अपने समर्थकों के साथ भाजपा में शामिल हो जाने से सरकार भरभरा कर गिर गई।

अब इस कोण की भरपाई के लिए कांग्रेस भरसक प्रयास कर रही है । कुछ नेताओं का मिला-जुला प्रयास फिर से कांग्रेस को सत्ता तक पहुंचाने के लिए बनने का मार्ग प्रशस्त करने में लगा है। कमलनाथ अब एक्शन मोड में है। उनका आत्मविश्वास फ्रंट फुट पर खेल रहे हैं और स्वयं ही सारा विधानसभा चुनाव से संबंधित सारा काम अपने हाथ में ले रखा है।

फिलहाल कांग्रेस के सामने दो बड़ी चुनौतियां हैं कि वे सर्वे के आधार पर सही उम्मीदवारों का चयन करे और सारे कांग्रेसी एकजुट होकर चुनावी अभियान में पूरे मनोबल के साथ डटे रहे और दूसरा इन क्षेत्रों में अपने संगठनात्मक ढांचे को जैसे -बूथ से लेकर विधानसभा क्षेत्रों तक चुस्त-दुरुस्त करे।

आज कांग्रेस की प्राथमिकता ज्योतिरादित्य सिंधिया के जाने से ग्वालियर-चम्बल संभाग में जो रिक्तता आई है, उसे पार्टी कैसे भरेगी। इसके लिए पार्टी के पास कोई फर्मूला नहीं है। एकमात्र चेहरा पूर्व मुख्यमंत्री और राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह ही है। लेकिन महाराजा के प्रभाव के सामने राजा की कितनी चलेगी। यह कहना जल्दबाजी होगा।

इस क्षेत्र में जातीय समीकरण को देखते हुए कुछ कद्दावर और प्रदेश स्तर के नेताओं को एक साथ लाकर उनका इन क्षेत्रों में भरपूर उपयोग करना होगा। इस लिहाज से पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह, पूर्व केन्द्रीय मंत्री तथा पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुरेश पचौरी, कांतिलाल भूरिया और अरुण यादव जैसे नाम उल्लेखनीय है, जिन्हें एकजुट होकर सक्रियता दिखानी पड़ेगी।

इनके हाथ के साथ इनका दिल भी मिलना चाहिए। ग्वालियर-चम्बल संभाग में ठाकुर, ब्राह्मण और यादव मतदाता अधिक है। इसलिए ये चार चेहरे मिलकर कांग्रेस के लिए वह तीसरा कोण की भरपाई कर सकते हैं। इतना ही नहीं, इस क्षेत्र में दलित मतदाताओं को भी साधना होगा, इसके लिए फिलहाल जाटव मतदाताओं में कांग्रेस का स्थानीय चेहरा फूलसिंह बरैया उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं।

कांग्रेस को इन बड़े चेहरों के साथ इस अंचल में बेहतर प्रदर्शन करना होगा। इसके साथ ही क्षेत्रीय नेताओं जैसे- डॉ. गोविंद सिंह, के.पी.सिंह, बालेन्दु शुक्ला, अशोक सिंह को एकजुट करना होगा। क्योंकि भाजपा की सरकार रहेगी या नहीं, इसका बहुत कुछ दारोमदार ग्वालियर-चम्बल संभाग के नतीजों पर निर्भर करेगा।

दूसरी तरफ भाजपा में इस वक्त ज्योतिरादित्य सिंधिया, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर, गृह एवं स्वास्थ्य मंत्री डॉ नरोत्तम मिश्रा और प्रभात झा जैसे नेताओं के साथ यहां संघ की अनुषांगिक संगठनों के समर्पित कार्यकर्ताओं से भी कांग्रेस को लोहा लेना है।

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वैसे देखा जाये, तो भाजपा में भी सब कुछ ठीक-ठाक है, यह नहीं कहा जा सकता। क्योंकि राज्यसभा चुनाव में अपने कोटे के दो मत कम मिलने से यह साबित हो चुका है और दोनों ही विधायक भले ही अलग-अलग इलाकों के हों, लेकिन दलित वर्ग के हैं। इनका असंतोष इस मायने में विशेष अर्थ रखता है, कि दलित मतदाता 16 विधानसभा क्षेत्रों में काफी प्रभावशाली हैं।

2018 के विधानसभा चुनाव में दलित मतदाताओं ने बड़े पैमाने पर बसपा और भाजपा के बजाय कांग्रेस के पक्ष में अपना मत दिया था। राज्यसभा चुनाव में भी भाजपा के दलित चेहरे पूर्व मंत्री व गुना के विधायक गोपीलाल जाटव ने ज्योतिरादित्य सिंधिया के स्थान पर कांग्रेस उम्मीदवार दिग्विजय सिंह को वोट दिया है। कुछ चेहरे ऐसे हैं, जिनका असंतोष सतह पर आ गया है।

इसी तरह जो नाराज हैं, उन्हें भी पूरी तरह सक्रिय करना भाजपा के लिए जरुरी हो गया है। इस बीच अपेक्स बैंक के पूर्व अध्यक्ष भंवर सिंह शेखावत की नाराजगी और पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी के बेटे दीपक जोशी कभी नाराज हो जाते है, तो कभी पट जाते है, ऐसे में इनकी भूमिका पर संदेह बना रहेगा। वैसे भाजपा में असंतोष का असर सामान्यतः चुनाव परिणामों को प्रभावित नहीं करता, लेकिन कांग्रेस का असंतोष उसका बना-बनाया खेल बिगाड़ देता है।

बहरहाल ज्यादा असंतोष को देखते हुए भाजपा ने फिलहाल तय किया है, पार्टी छोड़कर आये सभी 22 पूर्व विधायकों को वह चुनाव का टिकट देगी। इसे भाजपा के परंपरागत कार्यकर्ता किस सीमा तक पचा पायेंगे यह भी देखने वाली बात होगी।

चूंकि भाजपा उपचुनावों को लेकर किसी भी प्रकार की गफलत नहीं रखना चाहती इसलिए नये -नये भाजपा से जुड़े नेताओं को संघ और पार्टी की विचारधारा समझाने की फार्मूला तलाश कर रही है ताकि वे अपने भाषण में पार्टी की मूल विचारधारा को समाहित करें और उस पर चलना प्रारंभ करें।

भाजपा अभी से एक ऐसा तंत्र विकसित करना चाहती है ताकि उपचुनाव के समय यदि कोई असहज स्थिति सामने आये तो उसे दुरुस्त करने के लिए उसके पास माकूल व्यवस्था हो। उपचुनावों में कांग्रेस की एक रणनीति पार्टी छोड़कर भाजपा के टिकट पर लड़ने वाले अपने प्रतिद्वंदियों को आईना दिखाने की है।

इस चुनाव को जनता बनाम दलबदलू में परिवर्तित करने के मकसद से ही ‘जनता देगी अपना जवाब’ नारा कांग्रेस ने उछाल दिया है। भाजपा की रणनीति अपनी सरकार की उपलब्धियों के साथ ही 15 माह की कमलनाथ सरकार पर आरोपों की घटाटोप बौछार करते हुए अपनी सरकार के मुखिया शिवराज सिंह चौहान की उपलब्धियां उससे बेहतर बताने की कोशिश करेगी।

इसके साथ ही पिछले 15 साल के कार्यकाल में सुशासन को आधार बनाकर कांग्रेस को आईना दिखायेगी। कांग्रेस और भाजपा दोनों भलीभांति जानते हैं, कि 24 विधानसभा उपचुनावों में हर क्षेत्र में अलग-अलग मुद्दे हावी रहेंगे ।इसीलिए भाजपा हर क्षेत्र में अलग-अलग संकल्प-पत्र लेकर मैदान में उतरेगी।

वहीं कांग्रेस ने भी इन क्षेत्रों के लिए 24 पुस्तिकाएं तैयार कर ली हैं, जिसमें वहां की स्थानीय परिस्थितियों, जातिगत समीकरणों और कांग्रेस सरकार द्वारा उन क्षेत्रों के लिए किये गये कार्यों के साथ ही जीत के लिए जो कुछ करना होगा, उसे भी पुस्तिका में समाहित करेगी। इस प्रकार 24 संकल्प-पत्रों और 24 पुस्तिकाओं को दोनों ही दल अपनी जीत की कुंजी मानकर चल रही है।

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