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लोहिया अस्पताल के डॉक्टरों को प्रोफेसर बताकर लिया एमबीबीएस का पाठ्यक्रम और अब विलय पर फंसाया पेंच

स्पेशल डेस्क

लखनऊ। डॉ. राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान और डॉ. राम मनोहर लोहिया संयुक्त चिकित्सालय के विलय के लिए शासन ने 27.08.2019 को आदेश जारी कर दिया। आदेश जारी होने के बाद से ही संयुक्त चिकित्सालय के कर्मचारी आंदोलित हो गए हैं। लोहिया कर्मचारी अस्तित्व बचाओ मोर्चे के अनुसार प्रमुख सचिव चिकित्सा शिक्षा डॉ. राजनीश दुबे की हठधर्मिता और कुछ भ्रष्टाचारियों से उनकी सांठ- गांठ होने के कारण प्रमुख सचिव, लोहिया संयुक्त चिकित्सालय के कर्मचारियों (पैरामेडिकल तथा लिपिक वर्ग) को डॉ. राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान में मरीजों की चिकित्सा करने के लायक समझा ही नहीं।

विशेष सचिव, उत्तर प्रदेश शासन के चिकित्सा शिक्षा अनुभाग- 2 दिनांक 12 जून 2015 के अनुसार विलय के पश्चात शासनादेश संख्या 1/1/95-का-4-2003 दिनांक 26 मई 2003 की व्यवस्था के अनुसार संयुक्त चिकित्सालय में कार्यरत, चिकित्सक एवं कर्मचारियों को 3 साल के लिए प्रतिनियुक्ति पर रखा जाना था, लेकिन प्रमुख सचिव उत्तर प्रदेश शासन के आदेश संख्या 1985/71-2-2-2019-आर.एम-11/2013-टी.सी दिनांक 27 अगस्त 2019 को अधिकांश कर्मचारियों को चिकित्सा संस्थान में प्रतिनियुक्ति पर न रख कर अन्य चिकित्सालयों में स्थानांतरित करने का आदेश जारी किया गया है।

इसके अलावा लगभग 15 साल से अधिक समय से आउटसोर्सिंग पर रखे गए चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों को शासनादेश में कोई स्थान ही नहीं दिया गया है। इस तरह से एक झटके से आउटसोर्सिंग पर कार्य रहे अनुभवी वार्ड ब्वाय आदि चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों को विलय के बाद उनकी नौकरी से बाहर कर दिया गया है। अब चर्चा यह भी है कि नयी भर्ती करने में करोड़ों की कमाई होगी और संविदा कर्मचारियों की भर्ती के लिए अभी से शासन में एक से डेढ़ लाख रुपए लिए जाने की चर्चा है।

 

लोहिया कर्मचारी अस्तित्व बचाओ मोर्चा ने तो सीधे- सीधे आरोप लगाया है कि पिछली सरकार में प्रमुख सचिव चिकित्सा शिक्षा डा. रजनीश दूबे, की सरकार के कुछ मंत्रियों अधिकारियों के साथ सांठ- गांठ है। अब इस सरकार में भी प्रमुख सचिव चिकित्सा शिक्षा डा. रजनीश दूबे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और मंत्री को गुमराह करके तथ्यों को छिपाकर पिछली सरकार के भ्रष्टाचारियों के बनाए मंसूबे को कामयाब करने में सफल हुए हैं।

संस्थान में यह भी चर्चा है कि प्रमुख सचिव चिकित्सा शिक्षा डॉ. दुबे संस्थान से कई तरह के व्यक्तिगत फायदे अनियमित रूप से ले रहे हैं। सूत्रों के अनुसार संस्थान में कई चिकित्सकों की योग्यता एमसीआई के मानकों को पूरी ना करते हुए भी प्रमोशन पा गए हैं। सूचित है कि डॉ. राम मनोहर लोहिया संयुक्त चिकित्सालय को इन्हीं चिकित्सकों और कर्मचारियों की बदौलत पूरे देश का प्रथम एन.ए.बी.एच. मानकीकृत राजकीय चिकित्सालय होने का गौरव प्राप्त है। डॉ. राम मनोहर लोहिया संयुक्त चिकित्सालय में एन.ए.बी.एच. व एमसीआई के समस्त मानकों को पूरा किया है ।

मेडिकल काउंसिल ऑफइंडिया द्वारा ०3.02.2014 से ०8.04.2014 तक कुल 51 निरीक्षण हुए, जिसमें भारत सरकार के चिकित्सा विशेषज्ञ सम्मिलित थे। इस समय कुछ भ्रष्ट अधिकारियों ने शासन के अधिकारियों से मिलीभगत करके राम मनोहर लोहिया संयुक्त चिकित्सालय में तैनात लगभग 10 चिकित्सकों को लोहिया इंस्टीट्यूट में प्रोफेसर पद पर काम करते हुए दर्शाया।

वेतन भी चिकित्सा शिक्षा से दिया जाना दिखाया। जबकि वास्तविकता यह है कि ये सभी चिकित्सक राम मनोहर लोहिया संयुक्त चिकित्सालय में तैनात थे। इन चिकित्सकों का वेतन भी डॉ. आरएमएल संयुक्त चिकित्सालय से ही आहरित किया जा रहा है।

एमसीआई की वेबसाइट पर दर्शित चिकित्सकों के फार्म के अवलोकन में देखा गया कि प्रेजेंट डेजिग्नेशन, पूर्व में अंकित वास्तविक डेजिग्नेशन को कटिंग करके या डिलीट करके असिस्टेंट प्रोफेसर दर्शाया गया…

जैसे डॉ. सुरेश अहिरवार

डॉ. देवाशीष शुक्ला  

 

 

डॉ कुलदीप सिंह

डॉ नम्रता

सभी चिकित्सक जब एमसीआई के अनुसार लोहिया इंस्टीट्यूट में असिस्टेंट प्रोफेसर पद पर हैं और तो और राम मनोहर लोहिया संयुक्त चिकित्सालय की ओपीडी, इनडोर आदि में मरीजों की सभी लोहिया इंस्टीट्यूट की बताकर एमसीआई को कागजात सौंपे गये। इसी के आधार पर डॉ राम मनोहर लोहिया चिकित्सा संस्थान को एमबीबीएस का पाठ्यक्रम चलाने की अनुमति दी गई।

अगले अंक में जुबिली पोस्ट बतायेगा MCI ने खोली लोहिया मेडिकल इंस्टीट्यूट में शिक्षकों की नियुक्ति की पोल

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