Saturday - 3 May 2025 - 3:36 PM

जातीय जनगणना पर मायावती ने कांग्रेस को घेरा, जानें क्या कहा

जुबिली न्यूज डेस्क 

जातीय जनगणना को लेकर केंद्र सरकार के हालिया फैसले के बाद सियासी हलचल तेज हो गई है। जहां कांग्रेस इस निर्णय को अपनी पुरानी मांग का फल बताकर श्रेय लेने में जुटी है, वहीं बहुजन समाज पार्टी (बसपा) प्रमुख मायावती ने कांग्रेस को उसके ‘ऐतिहासिक पाप’ याद दिला दिए हैं।

मायावती ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर तीखे शब्दों में कहा कि कांग्रेस को यह नहीं भूलना चाहिए कि उसने दलित और ओबीसी समाज के करोड़ों लोगों को आरक्षण और संवैधानिक अधिकारों से वंचित रखा है। उन्होंने इसे कांग्रेस के इतिहास का “काला अध्याय” बताया।

“श्रेय लेने से पहले अपना इतिहास देखे कांग्रेस”

मायावती ने कहा:“1931 के बाद पहली बार जातीय जनगणना कराने का निर्णय सराहनीय है, लेकिन कांग्रेस को यह नहीं भूलना चाहिए कि वह दलितों और पिछड़ों को उनके संवैधानिक हक से वंचित रखने वाली पार्टी रही है। इसी कारण उसे सत्ता गंवानी पड़ी थी।”

बसपा सुप्रीमो ने कांग्रेस पर आरोप लगाया कि वह अब सत्ता से बाहर होने के बाद दलित और ओबीसी वर्ग के प्रति दिखावटी प्रेम दिखा रही है, जो लोगों को छलने की एक और राजनीतिक चाल है।

“बीजेपी और कांग्रेस एक ही थैली के चट्टे-बट्टे”

मायावती ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पर भी हमला बोला। उन्होंने कहा कि भाजपा ने भी हमेशा संविधान और आरक्षण को कमजोर करने की कोशिश की है। उन्होंने कहा:“आरक्षण को निष्क्रिय बनाकर अंततः इसे खत्म करने की इनकी नापाक मंशा को कौन नहीं जानता? कांग्रेस और भाजपा दोनों जातिवादी और वोट बैंक की राजनीति करने वाले दल हैं।”हालांकि, उन्होंने केंद्र सरकार द्वारा जातीय जनगणना कराने के निर्णय का स्वागत किया, लेकिन साथ में आगाह भी किया कि जनता को इस निर्णय के पीछे की राजनीति को समझना चाहिए।

जातीय जनगणना की मांग लंबे समय से ओबीसी और दलित संगठनों द्वारा की जाती रही है। 1931 के बाद यह पहली बार है जब केंद्र सरकार ने जाति आधारित जनसंख्या आंकड़ों को इकट्ठा करने की दिशा में कदम बढ़ाया है।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह निर्णय आगामी चुनावों को ध्यान में रखते हुए ओबीसी और दलित मतदाताओं को साधने की रणनीति का हिस्सा भी हो सकता है।

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जातीय जनगणना जैसे गंभीर सामाजिक मुद्दे पर भी राजनीतिक दलों के बीच श्रेय की होड़ और आरोप-प्रत्यारोप देखने को मिल रहे हैं। जहां एक ओर यह कदम सामाजिक न्याय और नीति निर्माण की दृष्टि से अहम माना जा रहा है, वहीं दूसरी ओर यह भी स्पष्ट है कि राजनीति के समीकरण अब तेजी से बदल रहे हैं।

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