Wednesday - 10 January 2024 - 6:17 AM

हार कर भी जीते अखिलेश, अर्से बाद मायावती ने दिखाया बड़ा दिल

न्‍यूज डेस्‍क

मोदी को हराकर केंद्र की कुर्सी पर बैठने का सपना देख रही मायावती ने उत्‍तर प्रदेश में महागठबंधन से बड़े ही शांत तरीके से अलग हो गईं। 144 दिनों में धूम धड़ाके से बना गठजोड़ एकस्पायरी डेट तक पहुंच गया। यूं तो मायावती ने इससे पहले भी कई बार अपने सहयोगियों से अलग हुई हैं, लेकिन इस बार वो कुछ बदली लगी।

अपने चाचा शिवपाल से अलग होने और पिता मुलायम सिंह यादव के सक्रिय राजनीति दूरी बनाने के बाद अखिलेश ने बसपा सुप्रीमो मायावती के साथ न केवल पुरानी दुश्मनी भुलाकर दोस्‍ती की, बल्कि अपने राजनीतिक संस्‍कार से मायावती का दिल भी जीत लिया।

शायद इसीलिए सपा सुप्रीमो से अलग होने के बाद भी मायावती ये कहना नहीं भूली की अखिलेश और डिंपल से उनके रिश्‍ते आगे भी अच्‍छे रहेंगे। ये बात इसलिए भी खास है क्‍योंकि यह पहला मौका नहीं जब बसपा सुप्रीमो मायावती ने किसी गठबंधन को छोड़ा है। मायावती अलग-अलग समय पर ‘अपने फायदे’ के हिसाब के गठबंधन करती और तोड़ती रही हैं।

फिर चाहे वो गेस्ट हाउस कांड के बाद मुलायम सिंह का साथ छोड़ना हो या फिर अपना 6 महीने का कार्यकाल पूरा करने के बाद कल्याण सिंह की सरकार से समर्थन वापस लेना हो। हर बार अपने राजनीतिक फायदे और कुर्सी पाने की ललक में मायावती ने अपने सहयोगियों से न केवल अलग हुई’ साथ ही उसे बुरा और दोषी बनाने से भी नहीं चूकी। लेकिन इस बार मायावती ने सपा सुप्रीमो के लिए जिस तरह से बड़ा दिल  दिखाया है उसके भी सियासी मायने निकाले जा रहे हैं।

अपनी करीब ढाई दशक पुरानी दुश्मनी भुलाकर लोकसभा चुनाव में गठबंधन करके उतरी मायावती ने हार के 12 दिन बाद ही गठबंधन से अलग होने का एलान कर दिया, जिसके बाद अखिलेश यादव और आरएलडी के अजित‍ सिंह ने भी सूबे की 11 सीटों पर होने वाले उपचुनाव में अकेले चुनाव लड़ने का एलान कर दिया है।

माना जाता है कि मायावती कोई भी फैसला यूं नहीं करती है, उनके हर फैसले के पीछे सोची समझी रणनीति होती है। दरअसल मायावती ने गठबंधन से पूरी तरह किनारा नहीं किया है। उन्होंने भविष्य के लिए विकल्प रख छोड़ा है। जानकारों की मानें तो इसके पीछे मायावती की रणनीति भी हो सकती है।

लोकसभा चुनाव के दौरान अखिलेश यादव ने सियासी संदेश दिया था कि मायावती प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवार होंगी और वह यूपी की राजनीति में लीड करेंगे। अब जब राष्ट्रीय राजनीति में कुछ हासिल नहीं हुआ है तो बसपा सुप्रीमो यूपी के सीएम उम्मीदवार के रूप में खुद को दोबारा स्थापित करना चाहती हैं। अस्थायी ब्रेक-अप को सपा पर दबाव बनाने की कवायद के रूप में भी देखा जा रहा है।

मायावती की नजर 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव पर हैं। अगर उस समय बसपा अकेले कमजोर पड़ती तो उस हालात में मायावती और अखिलेश एक बार फिर गठबंधन करके चुनाव लड़ सकते हैं। इसलिए अखिलेश और डिंपल के प्रति नरम रुख अपना कर गठबंधन को जिंदा रखने की कोशिश कर रही हैं।

 

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