सुरेंद्र दुबे
संशोधित नागरिकता कानून के विरोध में कल उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में जिस तरह प्रदर्शन के नाम पर उपद्रवियों ने बवाल काटा उससे एक बात साफ है कि अगर सरकार आसामाजिक तत्वों पर नियंत्रण रखने में असफल रही तथा दंगाईयों को सबक नहीं सिखाया गया तो नागरिकता कानून विरोधी आंदोलन दंगों में परिवर्तित हो सकता है और जब दंगे होंगे तो फिर उसे हिंदू-मुस्लिम दंगा होने से रोकना बहुत ही दिक्कत तलब हो जाएगा। कल मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस खतरे को समझा और दंगाईयों की संपत्ति तक जब्त करने की घोषणा की।
राजधानी में कल जिस तरह पुलिस निष्क्रिय बनी रही और कम बल प्रयोग के नाम पर दंगाईयों को खुली छूट मिली रही उससे आम नागरिक सहम गए। वर्षों बाद राजधानी में ये पहला अवसर था जहां दंगाई खुलेआम गुंडई करते रहे। शहर के दर्जनों इलाकों में जमकर आगजनी व तोड़फोड़ हुई। और तो और पुलिस वाले अपनी पुलिस चौकियों को भी आगजनी से नहीं बचा पाए।

पुलिस को या तो दंगाईयों की तैयारी की जानकारी नहीं थी या फिर दंगाईयों को मनमानी करने की मौन स्वीकृति दी गई। ताकि आम जनता में ये संदेश जाए कि नागरिकता कानून विरोधी आंदोलन नाजायज है और आम जनता इस आंदोलन में शामिल न हो। मीडिया की कुछ ओबी वैन को भी फुंक जाने दिया गया। ताकि आंदोलनकारियों को मीडिया का समर्थन न मिले।
नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में पूरे देश में आंदोलन चल रहा है। छात्र, वकील, प्रोफेसर, बुद्धजीवी और बॉलीवुड के नामी चेहरे इस जन आंदोलन में भाग ले रहे हैं। दिल्ली में जामिया विश्वविद्यालय के बाहर हुई हिंसा के बाद से दिल्ली में चल रहा आंदोलन शांति पूर्ण ढंग से चल रहा है जो एक स्वस्थ्य लोकतंत्र की आवश्यकता है।

देश के 22 विश्वविद्यालयों में भी शांति पूर्ण प्रदर्शन चल रहे हैं। प्रदर्शन में मुसलमानों के बहुतायत रूप से शामिल होने के बावजूद आंदोलन हिंदू-मुस्लिम होने के दुष्प्रचार से बचा हुआ है। पर कल राजधानी लखनऊ में जिस तरह मुस्लिम बहुल इलाकों में दंगे जैसे हालात बन गए उससे आंदोलन की साख पर बट्टा लगा है।

कानून बनाना सरकार का काम है। उसके इस अधिकार को उससे नहीं छीना जा सकता है। जनता अगर नागरिकता संशोधन एक्ट को गलत समझ रही है तो उसे इसका शांति पूर्ण ढंग विरोध करने का अधिकार संविधान ने दे रखा है। कुछ लोग इस कानून को संविधान के अनुच्छेद 14 के विरूद्ध मान रहे हैं, जिसमें जाति व धर्म के आधार पर कानून बनाने की मनाही है।
कुछ लोग इस कानून को मुस्लिम विरोधी मान रहे हैं तो कुछ लोग इसे भाजपा के हिंदू ऐजेंडा के रूप में देख रहे हैं। सरकार अभी तक अपनी मंशा स्पष्ट नहीं कर सकी है। भ्रम के कारण आंदोलन जारी है। पर ये आंदोलन हिंसक न होने पाए। इसकी जिम्मेदारी मूलत: विपक्ष की है, जिसने आंदोलन को हवा तो दे दी है पर आंदोलनकारियों पर उसका नियंत्रण नहीं दिख रहा है। आंदोलन बड़े पैमाने पर स्वत: स्फूर्त है, जिससे विपक्ष उत्साहित है और सरकार चिंतित।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, लेख उनके निजी विचार हैं)
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