Wednesday - 10 January 2024 - 5:09 AM

लॉस एंड डैमेज टुडे: जलवायु परिवर्तन कैसे उत्पादन और पूंजी प्रभावित कर रहा है

 

डा. सीमा जावेद

COP28 होने से पहले नए लॉस एंड डैमेज फंड की संभावना के मद्देनजर , डेलावेयर विश्वविद्यालय के क्लाइमेट हब ने

एक रिपोर्ट:”लॉस एंड डैमेज टुडे:

जलवायु परिवर्तन कैसे उत्पादन और पूंजी प्रभावित कर रहा है,” जारी की है जो सभी देशों में जलवायु परिवर्तन से होने वाले आर्थिक नुकसान का जायजा लेती है।

रिपोर्ट के मुख्य बिंदु :

-जलवायु परिवर्तन से सबसे ज्यादा $29 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात को

– अफ्रीकी देशों ने 2022 में सकल घरेलू उत्पाद में जनसंख्या के हिसाब से औसत 8.1% की हानि का अनुभव किया है। यह अफ्रीका के लिए 240 बिलियन डॉलर है ।

-जलवायु परिवर्तन से यूरोपीय देशों के जीडीपी में 4.7% की औसत वृद्धि ( ये लाभ सर्दियों में ठंड कम होने से हुए जो ऊर्जा की खपत कम करने के साथ ठंड से होने वाली मृदु दर कम करता है )और विकसित देशों को जीडीपी में 8.3% की हानि का सामना( ये हानि जानलेवा गर्मी , वेट बल्ब टेम्प्रेचर और इसके चलते कलिंग के लिए बढ़ी ऊर्जा की खपत और गर्मी से होने वाली मौतें, सूखा, बाढ़ , नष्ट होती फसलों, फ़्लैश फ्लड आदि दुष्प्रभावों से हैं )

-2022 में जलवायु परिवर्तन के कारण जनसंख्या-आधारित ग्लोबल जीडीपी का नुकसान 6.3% है।

-ग्लोबल जीडीपी का नुकसान 1.8% यानी लगभग 1.5 ट्रिलियन डॉलर

-निम्न और मध्यम आय वाले देशों ने जलवायु परिवर्तन के कारण $2.1 ट्रिलियन कैपिटल लॉस का अनुभव किया है।

-ऑर्गनाइज़ेशन फॉर इकोनॉमिक कोऑपरेशन एंड डेवलपमेंट (ओईसीडी )देशों के लिए, जलवायु परिवर्तन का नेट प्रभाव बहुत कम रहा है (0.3% लाभ [IQR 3% हानि से 5% लाभ])। इन देशों में सामूहिक रूप से लगभग $636 बिलियन (स्थिर 2015 USD) का नेट लाभ देखा जा सकता है।

– दुनिया ने अनुमानित तौर से 1818 बिलियन डॉलर के नेट जीडीपी लॉस का अनुभव किया है और ग्लोबल साउथ के देशों ने जनसंख्या के हिसाब से औसत जीडीपी में 8.3% की हानि का अनुभव किया है [3 – 14%]।

– सबसे कम विकसित देशों (एलडीसी) के लिये औसत हानि जीडीपी का 8.3% है [4 – 14%] है। 2022 में, यह एलडीसी के लिए 110 बिलियन डॉलर के कुल जीडीपी लॉस का प्रतिनिधित्व करता है।

– छोटे द्वीप राज्यों के गठबंधन (एओएसआईएस) के तहत छोटे द्वीप विकासशील राज्यों (एसआईडीएस) को औसतन 4.3% [2 – 10%], या $ 70 बिलियन का नुकसान हुआ है। ये अनुमान एसआईडीएस के लिए वास्तविक नुकसान को संभवतः कम आंकते हैं, क्योंकि ये समुद्र-स्तर में वृद्धि के प्रभावों का पूरी तरह से हिसाब नहीं रखते हैं।

-क्लाइमेट वल्नरेबल फोरम (सीवीएफ) एक ज़रूरी हितधारक है जिसके सकल घरेलू उत्पाद का 2022 में औसतन 9.9% का अनुमानित नुकसान होगा [4 – 17%], और जिसके कुल सकल घरेलू उत्पाद का 2022 में अनुमानित नुकसान $190 बिलियन होगा।
-मध्यम और निम्न-आय वाले देशों में, 2022 में कुल 2090 बिलियन डॉलर का और भी भरी मैन्युफैक्चर्ड कैपिटल लॉस हुआ है।
-जब जीडीपीऔर कैपिटल घाटे को जोड़ दिया जाता है, तो निम्न और मध्यम आय वाले देशों को 1992 (रियो कन्वेंशन) के बाद से कुल 21 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान हुआ है।

रिपोर्ट से पता चलता है कि जलवायु परिवर्तन पहले से ही ग्लोबल स्तर पर सकल घरेलू उत्पाद(जीडीपी) के नुकसान का कारण है, और इसके प्रभावों का सबसे ज़्यादा खामियाजा विकासशील देशों को भुगतना पड़ रहा है।जलवायु परिवर्तन के चलते कम आय वाले ट्रॉपिकल विकासशील देश जीडीपी में नुकसान का सामना कर रहे हैं। जबकि कई अमीर देशों पर जलवायु परिवर्तन का बहुत कम असर या फ़ायदा दिखाई दे रहा है।

विश्व स्तर पर, 2022 में जलवायु परिवर्तन के कारण जनसंख्या-आधारित जीडीपी का नुकसान 6.3% है, इसमें जलवायु से संबंधित प्रत्यक्ष, अंतर्राष्ट्रीय और पूंजीगत हानियां शामिल हैं।हालाँकि ग्लोबल जीडीपी का नुकसान 1.8% यानी लगभग 1.5 ट्रिलियन डॉलर है। कुल मिलाकर दुनिया जलवायु परिवर्तन की वजह से 1.5 ट्रिलियन डॉलर गरीब हो गयी है।

जहां कई अमीर देश इससे कम प्रभावित हुए हैं। उन्हें ग्लोबल वार्मिंग के चलते ठंड- बर्फबारी से बचने के लिए हीटिंग के ऊपर होने वाले खर्च नहीं करने से जलवायु परिवर्तन से नुक़सान की जगह लाभ हो रहा है। कई उच्च आय वाले देशों को इससे वर्तमान में नेट गेन यानी शुद्ध लाभ हो रहा है। जलवायु परिवर्तन से यूरोपीय देशों के जीडीपी में 4.7% की औसत वृद्धि हुई है।

वहीं सबसे कम विकसित देशों को औसत जनसंख्या के अनुसार जीडीपी में 8.3% की हानि का सामना करना पड़ रहा है। वहीं दक्षिण पूर्व एशिया और दक्षिणी अफ्रीका इससे सबसे ज़्यादा प्रभावित हैं। जहां देशों को क्रमशः अपने जीडीपी का औसतन क्रमश: 14.1% और 11.2% का नुकसान हो रहा है।

 

ऐसे में जलवायु परिवर्तन मौजूदा वैश्विक असमानताओं को भी बढ़ा रहा है।ये नुकसान विकासशील देशों पर जलवायु परिवर्तन के कारण पड़ने वाले असंगत बोझ को हाईलाइट करते हैं।

रिपोर्ट के लेखक डॉ. जेम्स राइजिंग (डेलावेयर विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर) के अनुसार, “जलवायु परिवर्तन की वजह से दुनिया खरबों डॉलर गरीब हो गई है, और इसका अधिकांश बोझ गरीब देशों पर पड़ा है। मुझे उम्मीद है कि यह जानकारी उन चुनौतियों को स्पष्ट करती है जिनका कई देश पहले से ही सामना कर रहे हैं, और उन चुनौतियों को संबोधित करने के लिए उनकी तत्काल सहायता की आवश्यकता को भी।”

जैसा कि cop27 में पैसला लिया गया था, cop28 में जलवायु परिवर्तन की वजह से होने वाली प्राकृतिक आपदाओं के लिए कमजोर देशों को मुआवजा देने के लिए नए लॉस एंड डैमेज फंड पर प्रगति की उम्मीद है। रिपोर्ट ज़रूरी यूएनएफसीसीसी वार्ता समूहों के स्तर पर इम्पैक्ट का अनुमान भी मुहैया करती है।

विश्लेषण से जलवायु परिवर्तन, आर्थिक परिणामों और कैपिटल निवेश के बीच जटिल गतिशीलता का भी पता चलता है।
ये नतीजे जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के लिए वैश्विक सहयोग और समर्थन की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करते हैं।

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