Saturday - 6 January 2024 - 11:33 AM

Lok Sabha Election: जानें मिर्जापुर लोकसभा सीट का इतिहास

मिर्जापुर लोकसभा क्षेत्र अपनी कई खूबियों की वजह से विख्यात है। यह क्षेत्र जितना धार्मिक वजह से जाना जाता है उतना ही उद्योग धंधों की वजह से भी जाना जाता है। मिर्जापुर जहां पांच सौ साल पुराने पीतल उद्योग के लिए भी प्रसिद्ध है वहीं यह लाल पत्थरों की वजह से भी जाना जाता है।

ऐसा माना जाता है कि इन लाल पत्थरों का उपयोग करके ही सम्राट अशोक ने अशोक स्तम्भ (भारत का राष्ट्रीय चिन्ह है) का निर्माण करवाया था। मां विंध्यवासिनी की धरती मिर्जापुर हमेशा से ही धर्म और राजनीति में विशेष महत्व रखता आया है। विन्ध्याचल, अरावली और नीलगिरी पहाड़ों से घिरा यह क्षेत्र विन्ध्य क्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है।

आबादी/ शिक्षा

उत्तर में संत रविदास नगर और वाराणसी, पूर्व में चंदौली, दक्षिण में सोनभद्र और उत्तर-पूर्व में इलाहाबाद जिले से घिरा हुआ है। 4521 वर्ग किलोमीटर में फैले इस जिले में चार तहसीलें है जिसमें लालगंज, मडिहान, चुनार और मिर्जापुर सादर शामिल है। 1989 में सोनभद्र के अलग होने तक यह यूपी का सबसे बड़ा जिला था लेकिन वर्तमान में यह क्षेत्र नक्सल प्रभावी है और रेड कॉरिडोर का हिस्सा है।

2011 की जनगणना के अनुसार यहां की कुल आबादी 24.96 लाख है जिनमें पुरुषों की संख्या 13.12 लाख और महिलाओं की संख्या 11.84 लाख है। 26.48 प्रतिशत लोग अनुसूचित जाति से जबकि 0.81 प्रतिशत लोग अनुसूचित जनजाति से ताल्लुक रखते हैं। यूपी के लिंगानुपात 912 के मुकाबले यहां प्रति 1000 पुरुषों पर 903 महिलायें हैं।

यहां की औसत साक्षरता दर 57.22 प्रतिशत है जिनमें पुरुषों की साक्षरता दर 65.98 प्रतिशत और महिलाओं की साक्षरता दर 47.51 प्रतिशत है। वर्तमान में यहां कुल मतदाता की संख्या 1,671,154 है जिसमें महिला मतदाता 767,687 और पुरुष मतदाता की संख्या 903,414 है। मिर्र्जापुर में 91.81 प्रतिशत लोग हिन्दू धर्म में आस्था रखते है लेकिन यहां दूसरे धर्मों के लोग भी रहते है।

राजनीतिक घटनाक्रम

1952 में यहां पहली बार चुनाव हुए जिसमें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के जॉन विल्सन विजयी हुए और यहां के पहले सांसद बने। 1967 तक हुए सभी आम चुनावों में कांग्रेस ने इस सीट पर लगातार कब्जा किया।

1967 के चुनाव में कांग्रेस के जीत के रथ को भारतीय जनसंघ ने रोका लेकिन 1971 में पुन: कांग्रेस इस सीट पर आसीन हो गई। 1977 के चुनाव में कांग्रेस अपनी सीट नहीं बचा पायी और भारतीय लोकदल के फकीर अली अंसारी ने यहां जीत दर्ज की।

1980 के बाद इस सीट पर किसी एक पार्टी का वर्चस्व नहीं रहा। जहां 1980 में कांग्रेस (इंदिरा), 1984 में कांग्रेस, 1989 में जनता दल और 1991 में भारतीय जनता पार्टी ने इस सीट पर कब्जा किया।

वहीं 1996 के चुनावों में पहले डाकू रह चुकी फूलन देवी समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ी और मिर्जापुर की पहली महिला सांसद बनी लेकिन 1998 लोकसभा चुनाव में फूलन देवी अपनी सीट नहीं बचा पायी और यह सीट भाजपा की झोली में चली गई।

1999 के लोकसभा चुनाव में फूलन देवी ने बीजेपी के वीरेन्द्र सिंह को हराकर अपनी हार का बदला ले लिया। 2002 में यहां उपचुनाव हुए, जिसमें सपा एक बार फिर विजयी हुई।

2004 के चुनाव में बसपा ने अपना खाता खोला। नरेन्द्र कुमार कुशवाहा बसपा के टिकट पर यहां से चुनाव लड़े और जीत का स्वाद चखा। 2007 के चुनाव में भी बसपा अपना सीट बचाने में कामयाब रही लेकिन 2009 में नहीं बचा पायी।

सपा के बाल कुमार पटेल ने इस सीट पर कब्जा जमाया। वर्तमान में यहां से केन्द्रीय परिवार कल्याण और स्वास्थ्य राज्यमंत्री अनुप्रिया पटेल अपना दल की टिकट पर सांसद है। अनुप्रिया पहली बार लोकसभा के लिए निर्वाचित हुई हैं।

 

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