Friday - 5 January 2024 - 3:06 PM

अगले साल के अंत तक चल सकता है लॉकडाउन का सिलसिला

कोविड-19 का असर दुनिया के हर क्षेत्र पर पड़ा है. इसकी वजह से जलवायु भी प्रभावित हुई है. लॉकडाउन के दौरान ग्रीनहाउस गैसों तथा हवा प्रदूषित करने वाले तत्वों के उत्सर्जन में अचानक गिरावट होने के बावजूद इसका वैश्विक तापमान पर इसका कोई खास असर नहीं पड़ा है।

अनुसंधानकर्ताओं ने आगाह किया है कि लॉकडाउन जैसे कुछ कदमों का सिलसिला वर्ष 2021 के अंत तक भी जारी रह सकता है, लेकिन अगर सुगठित उपाय नहीं अपनाये गये तो वर्ष 2030 तक अपेक्षित स्तर के मुकाबले वै‍श्विक तापमान में महज 0.01 डिग्री सेल्सियस की ही गिरावट आयेगी।

हालांकि लीड्स यूनिवर्सिटी की अगुवाई में किये गये अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि आर्थिक भरपाई की योजना में जलवायु सम्बन्धी  नीतिगत कदमों को जोड़ा जाए और हरियाली का दायरा बढ़ाने पर जोर दिया जाए तो हम मौजूदा नीतियों के तहत वर्ष 2050 तक अनुमानित ग्लोबल वार्मिंग में आधी से ज्याादा की कमी ला सकते हैं।

इससे वैश्विक तापमानों को पेरिस समझौते के तहत वैश्विक तापमान में बढ़ोत्तगरी को डेढ़ डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने का अच्छा मौका मिलेगा। साथ ही इससे जोखिमों के साथ-साथ उच्च तापमान के कारण होने वाले गम्भीर दुष्पारिणामों को भी टाला जा सकेगा।

पियर्स फॉर्स्ट की बेटी हारिएट का ए लेवल निरस्ति होने के बाद उन्हों ने उसके साथ काम शुरू किया। दोनों ने गूगल और एप्पल से प्राप्ति नये ग्लो बल मोबिलिटी डेटा का विश्ले षण किया। उन्हों ने हिसाब लगाया कि फरवरी से जून 2020 के बीच 123 देशों में 10 विभिन्न ग्रीनहाउस गैसों और वायु प्रदूषकों के उत्सेर्जन में कैसे बदलाव आया। उसके बाद उन्होंने बड़ी टीम की मदद से इसका विस्तृत अध्य्यन किया।

इस टीम द्वारा उजागर तथ्यों को ‘नेचर क्लाइमेट चेंज’ नामक पत्रिका में प्रकाशित किया गया है। इसमें इस बात को विस्तार से रखा गया है कि पूरी दुनिया में लॉकडाउन के दौरान बड़े पैमाने पर हुए बदलावों और औद्योगिक गतिविधियों पर विराम लगने के कारण वैश्विक स्तर पर कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2)‍ नाइट्रोजन ऑक्साइड (एनओएक्स) तथा अन्यत प्रदूषणकारी तत्वों के उत्सर्जन में  10-30 प्रतिशत तक की गिरावट के बावजूद जलवायु पर इसका बेहद मामूली असर पड़ेगा। ऐसा इसलिये क्यों कि उत्सर्जन में आयी यह कमी स्थायी नहीं है।

शोधकर्ताओं ने लॉकडाउन के कारण हुए आर्थिक नुकसान की भरपाई के लिये विकल्प भी सुझाये हैं। इनमें दिखाया गया है कि मौजूदा हालात हमारे सामने सुगठित आर्थिक बदलावों को लागू करने का अनूठा अवसर दे रहे हैं, जो हमें अधिक सतत और पूरी तरह से प्रदूषणमुक्त भविष्य की तरफ बढ़ने में मदद कर सकते हैं।

अध्ययन के मुख्य लेखक, कान्रेर न कनसोर्टियम के प्रिंसिपल इन्वेस्टीगेटर और लीड्स में प्रीस्टली इंटरनेशनल सेंटर फॉर क्लाइमेट के निदेशक पियर्स फॉर्स्टमर ने कहा ‘‘आर्थिक नुकसान की भरपाई के लिये अपनाये जाने वाले उपाय हमें इस सदी के मध्य तक अतिरिक्त वार्मिंग में 0.3 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोत्तरी रोकने का बेहतरीन मौका दे सकते हैं। जहां तक खतरनाक जलवायु परिवर्तन को टालने का सवाल है तो इसके जरिये कामयाबी और नाकामी के बीच फर्क को समझा जा सकता है।’’

“अध्ययन में कम कार्बन उत्सर्जन करने वाले वाहनों, सार्वजनिक परिवहन और साइकिल लेन को प्रोत्साहित कर यातायात से होने वाले प्रदूषण को कम करने के अवसरों को भी रेखांकित किया गया है। अगर हवा की गुणवत्ता अच्छी होगी तो उससे सेहत पर महत्वपूर्ण प्रभाव फौरन पड़ेंगे और इससे जलवायु तुरंत ही ठंडी होना शुरू हो जाएगी।’’

क्वीयन मार्ग्ररेट स्कूल से जुड़ी और इस अध्ययन की सह-लेखक हारिएट फॉर्स्टंर ने कहा “हमारे अध्यययन से जाहिर होता है कि लॉकडाउन से जलवायु पर दरअसल बहुत मामूली सा असर पड़ा है। अहम बात यह है कि इसके जरिये हमें प्रदूषणमुक्त कारखाने लगाकर अर्थव्यवस्था को मजबूती देने का बेहतरीन अवसर मिला है। इससे भविष्य की जलवायु में बहुत बड़ा अंतर पैदा किया जा सकता है। मैं कला का अध्ययन करने के लिये अगले महीने लंदन जा रही हैं मगर मैंने ए-लेवल तक कैमेस्ट्री भी पढ़ी है और मुझे खुशी है कि मैंने जो भी पढ़ा उसे किसी अच्छे काम में इस्तेमाल किया।”

ईस्ट एंग्लिया यूनिवर्सिटी से जुड़े और इस अध्ययन के सह-लेखक क्यूेरीन लू कुएरी ने कहा “कोविड-19 महामारी के दौरान प्रदूषणकारी तत्वों के उत्सर्जन में हुई गिरावट कुछ ही वक्त के लिये है, लिहाजा इससे जलवायु परिवर्तन की रफ्तार में कमी लाने में कोई मदद नहीं मिलेगी, लेकिन सरकारें इस वक्त क्या करती हैं, यह टर्निंग प्वाइंट हो सकता है। अगर वे लॉकडाउन के कारण हुए आर्थिक नुकसान की भरपाई के लिये उठाये जाने वाले कदमों में जलवायु का ख्याल रखने पर भी ध्यान  दें तो इससे जलवायु परिवर्तन के गम्भीर दुष्परिणामों को टालने में मदद मिल सकती है।”

इम्पीरियल कॉलेज स्थित ग्रांथ इंस्टीट्यूट फॉर क्लाइमेट चेंज एण्ड एनवॉयरमेंट से जुड़े और इस अध्ययन के सह-लेखक जोरी रोगेल ने कहा “लॉकडाउन के कारण पूरी दुनिया में प्रदूषणकारी तत्वों के उत्सर्जन में जो भारी गिरावट आयी है उसका वर्ष 2030 तक वैश्विक तापमान पर कोई मापने योग्य असर नहीं होगा। मगर इस संकट से उबरने के रास्तों को लेकर इस साल लिया गया फैसला हमें पेरिस समझौते को निभाने के लिये ठोस मार्ग उपलब्ध करायेगा।”

क्लाइमेट एनालिटिक्स बर्लिन से जुड़े और इस अध्ययन के सह लेखक मैथ्यू गिडेन ने कहा “कोविड-19 के कारण जलवायु पर पड़ने वाला असर कितने लंबे वक्त तक रहेगा, यह इस बात पर निर्भर नहीं करता कि इस संकट के दौरान क्या हुआ, बल्कि इस पर निर्भर करेगा कि संकट खत्म होने के बाद क्या होगा। जलवायु को बेहतर बनाने की अपनी प्रतिज्ञाओं को अमलीजामा पहनाने के रास्ते पर दुनिया को लाते वक्त नुकसान की प्रदूषणमुक्त भरपाई और कम कार्बन उत्सर्जन वाले उपायों में निवेश पर ध्यान दिए जाने से अर्थव्यवस्था को नई शुरुआत मिल सकती है।”

नेशनल सेंटर फॉर एटमॉस्फेरिक साइंस और वॉल्फ्सन एटमॉस्फेरिक केमिस्ट्री लैबोरेट्री यूनिवर्सिटी ऑफ यॉर्क के प्रोफेसर और इस अध्ययन के सह लेखक मैथ्यू इवांस ने कहा “दुनिया भर से मिले वायु गुणवत्ता संबंधी अनुभवों का विश्लेषण करने पर हमें पता चला कि गूगल और एप्पल के मोबिलिटी डेटा में प्रदूषण में आई कमी से संबंधित जो आंकड़े हैं वे इस सिलसिले में वास्तव में किए जा रहे अनुभवों के बेहद करीब हैं।”

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नासा जीएसएफसी में स्थित ग्लोबल मॉडलिंग एंड एसिमिलेशन ऑफिस (जीएमएओ) में गोडार्ड अर्थ साइंसेज, टेक्नोलॉजी एंड रिसर्च के क्रिस्टोफर केलर ने कहा “कोविड-19 महामारी के कारण इंसानी गतिविधियों में आई कमी ने हमें वातावरणीय वायु प्रदूषण पर इंसानी प्रभाव को बेहतर तरीके से नापने का एक अनोखा अवसर दिया है।”

“देखी-महसूस की गई चीजों के रियल टाइम विश्लेषण, मोबिलिटी डाटा और नासा के मॉडल स्टिमुलेशन से हमें वायु प्रदूषण पर कोविड-19 की रोकथाम के लिए उठाए गए कदमों के प्रभाव के सिलसिले में एक मात्रात्मक जायजा मिलता है। यह अध्ययन दिखाता है कि इस तरह की सूचना से वायु की गुणवत्ता और जलवायु के बीच जटिल प्रतिक्रियाओं के बारे में अपनी समझ बढ़ाने में कैसे मदद मिल सकती है।”

(यह लेख नेचर क्लाइमेट चेंज पत्रिका के एक ताजा अध्‍ययन और अनुसन्धान पर आधारित है.)

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