Wednesday - 10 January 2024 - 7:41 AM

जानें हाई कोर्ट ने क्यों कहा- शादी ‘इस्तेमाल करो और फेंक दो की संस्कृति’ से प्रभावित

जुबिली न्यूज डेस्क

आज के दौर के लोगों के लिए शादी एक मजाक बनकर रह गया है। ऐसे में एक मामला सामने आया है। जिसे जानकर आपको भी हैरानी होगी। दरअसल केरल हाई कोर्ट ने हाल में टिप्पणी की कि ऐसा लगता है कि वैवाहिक संबंध ‘इस्तेमाल करो और फेंक दो की संस्कृति’ से प्रभावित हैं। लिव-इन संबंधों और छोटी बातों पर तलाक मांगने के केसों में बढ़ोतरी से यह साबित होता है। युवा पीढ़ी विवाह को ऐसी बुराई के रूप में देखती है, जिसे आजादी का जीवन जीने के लिए टाल देना चाहिए। युवा पीढ़ी ‘वाइफ’  शब्द को ‘वाइज इन्वेस्टमेंट फॉर एवर’ की पुरानी अवधारणा के बजाय ‘वरी इन्वाइटेड फॉरएवर’  के रूप में परिभाषित करते हैं। अदालत ने तलाक संबंधी पति की अर्जी खारिज करते हुए कहा अगर किसी पुरुष के एक्स्ट्रामैरिटल अफेयर हैं और वह अपनी पत्नी बच्चों से संबंध खत्म करना चाहता है, तो अपने अवैध संबंध को वैध बनाने के लिए अदालतों की मदद नहीं ले सकता।

लिव-इन संबंध के बढ़ रहे मामले

कोर्ट ने कहा, लिव-इन संबंध के मामले बढ़ रहे हैं, ताकि वे अलगाव होने पर एक-दूसरे को अलविदा कह सकें। अदालत ने नौ साल के वैवाहिक संबंधों के बाद किसी दूसरी महिला के साथ कथित प्रेम संबंधों के कारण अपनी पत्नी और तीन बेटियों को छोड़ने वाले व्यक्ति की तलाक की याचिका खारिज करते हुए कहा कि ईश्वर की धरती कहा जाने वाला केरल एक समय पारिवारिक संबंधों के अपने मजबूत ताने-बाने के लिए जाना जाता था। अदालत ने कहा, ‘लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि स्वार्थ के कारण या विवाहेतर संबंधों के लिए, यहां तक कि अपने बच्चों की भी परवाह किए बिना वैवाहिक बंधन तोड़ना मौजूदा चलन बन गया है। एक-दूसरे से संबंध तोड़ने की इच्छा रखने वाले जोड़े, त्यागे गए बच्चे और हताश तलाकशुदा लोग जब हमारी आबादी में अधिसंख्य हो जाते हैं, तो इससे हमारे सामाजिक जीवन की शांति पर निस्संदेह प्रतिकूल असर पड़ेगा और हमारे समाज का विकास रुक जाएगा।’

प्राचीन काल से विवाह एक संस्कार था

बेंच ने कहा कि प्राचीन काल से विवाह को ऐसा संस्कार माना जाता था, जिसे पवित्र समझा जाता है और यह मजबूत समाज की नींव के तौर पर देखा जाता है। विवाह यौन इच्छाओं की पूर्ति का लाइसेंस देने वाली कोई खोखली रस्म भर नहीं है। अदालत ने तलाक संबंधी पति की याचिका खारिज करते हुए कहा कि ‘अदालतें गलती करने वाले व्यक्ति की मदद करके उसकी पूरी तरह से अवैध गतिविधियों को वैध नहीं बना सकतीं।’

अदालत ने कहा, ‘कानून और धर्म विवाह को अपने आप में एक संस्था मानते हैं और विवाह के पक्षकारों को इस रिश्ते से एकतरफा दूर जाने की अनुमति नहीं है, जब तक कि वे कानून की अदालत के माध्यम से या उन्हें नियंत्रित करने वाले पर्सनल लॉ के अनुसार अपनी शादी को भंग करने के लिए कानूनी अनिवार्यताओं को पूरा नहीं कर लेते।’

​क्या था मामला

हाई कोर्ट में दायर याचिका में याचिकाकर्ता ने बताया कि 2009 में उसका विवाह हुआ था। 2018 तक वैवाहिक संबंधों में कोई दिक्कत नहीं थी, लेकिन बाद में उसकी पत्नी का व्यवहार बदल गया। वह उस पर किसी से प्रेम संबंध होने का आरोप लगाते हुए झगड़ा करने लगी। लेकिन कोर्ट ने उसके दावे को खारिज कर दिया। अदालत ने कहा, ‘उपलब्ध तथ्य और परिस्थितियां स्पष्ट रूप से इस बात की ओर इशारा करती हैं कि 2017 में याचिकाकर्ता के किसी अन्य महिला के साथ प्रेम संबंध हो गए। इसलिए वह तलाक मांग रहा है।

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ताकि वह उस महिला के साथ रह सके। अगर पति अपनी पत्नी व बच्चों के पास लौटने के लिए तैयार है, तो पत्नी उसे स्वीकार करने को राजी है। इसलिए ऐसा कुछ भी नहीं है, जो यह दर्शाता हो कि एक सौहार्दपूर्ण पुनर्मिलन की संभावना हमेशा के लिए समाप्त हो गई है।

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