Wednesday - 10 January 2024 - 8:34 AM

पीएफआई पर बीजेपी की ‘राजनीति’

हेमेंद्र त्रिपाठी

उत्तर प्रदेश में हुए हाथरस कांड के बाद एक बार फिर पीएफआई चर्चा में हैं। सरकार ने प्रदेश में पीएफआई को प्रतिबंधित करने की मांग की है। बताया जा रहा है कि हाथरस कांड की आड़ में ये संगठन प्रदेश में दंगे भड़काने की योजना बना रहे थे। इस मामले में पुलिस हर एंगल पर भी तेजी से काम कर रही है। इस क्रम में पुलिस ने 4 लोगों को गिरफ्तार भी किया है।

गिरफ्तार किये गये चारों लोगों के पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया के सदस्य होने की बात सामने आ रही है। इसमें एक सदस्य बहराइच के जरवल का रहने वाला है। इसके बाद से ही यूपी पुलिस और सक्रीय हो गई है।

ऐसा पहली बार नहीं है जब पीएफआई का नाम सामने आया है। इससे पहले भी जहां जहां दंगे हुए उन सभी दंगों में कहीं न कहीं पीएफआई का नाम आया है। चाहे फिर आप दिल्ली में हुए दंगों की बात करिए या फिर यूपी के लखनऊ में हुए दंगों की बात की जाये। इन सभी में पीएफआई का कोई न कोई लिंक जरुर सामने आया है।

बता दें कि भाजपा कांग्रेस पर अक्सर पीएफआई के प्रति नरमी बरतने का आरोप लगाती आई है। 2015 में कांग्रेस की सिद्धारमैया सरकार ने दक्षिण भारत में आपराधिक गतिविधियों के आरोप में बुक किए गए 1600 पीएफआई और केएफडी एक्टिविस्ट पर से केस को वापस लेने का फैसला लिया था।

इस फैसले पर सरकार का कहना था कि जांच के बाद ये बात सामने आई कि जिन एक्टिविस्ट के खिलाफ चार्जशीट लगाई गई वो शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन करने के लिए जमा हुए थे। हिंसा में उनकी कोई भूमिका नहीं थी और वे भीड़ का हिस्सा नहीं थे।

इसकी आलोचना करते हुए भाजपा ने कहा था कि कांग्रेस सरकार वोट बैंक के लिए ऐसा कर रही है जबकि पुलिस ने पीएफआई और केएफडी के असामाजिक और हिंसक गतिविधियों में लिप्त होने की रिपोर्ट राज्य कैबिनेट को दी थी।

दिल्ली दंगों में भी आया नाम

सीएए और एनआरसी को लेकर दिल्ली के शाहीन बाग़ में कई दिनों ने महिलाएं धरने पर बैठी थी। इस बीच उत्तर-पूर्वी दिल्ली में 23 से 25 फरवरी 2020 के दौरान हिंसा भड़क उठी। देखते देखते इस हिंसा ने भयानक रूप ले लिया। उत्तर पूर्वी इलाके में हुई इस हिंसा में करीब 50 लोगों से ज्यादा की मौत हुई जबकि करीब 300 से अधिक लोग घायल हुए थे।

दिल्ली में हुए इन दंगों के पीछे एक सोची समझी साजिश सामने आई थी। इसमें कुछ विशेष लोगों ने जनता को भड़काने और गुमराह करने का काम किया। इन दंगों की जांच में पुलिस ने पाया कि कट्टरपंथी संगठन पीएफआई पर सीएए के खिलाफ प्रदर्शनों के लिए फंडिंग की गई थी।

इस मामले में दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने पॉपुलर फ्रंट आफ इंडिया (पीएफआई) के अध्यक्ष परवेज और सेक्रेटरी इलियास को दिल्ली के शिव विहार से गिरफ्तार किया गया था। इसके साथ ही शाहीन बाग में चल रहे प्रदर्शन को लेकर फंडिंग के मामले में दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने इलियास की बड़ी भूमिका होने की बात कही थी

लखनऊ हिंसा में भी थी पीएफआई की भूमिका

नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में सबसे पहले हिंसक प्रदर्शन हुए. उसके अगले ही दिन जुमे की नमाज के बाद अन्य कई जिलों में प्रदर्शन के दौरान पत्थरबाजी, आगजनी, फायरिंग, बमबाजी और पुलिस से भीड़ की झड़प हो गई।

प्रदेश में हुए इस हिंसक प्रदर्शन में 18 लोगों की मौत हो गई। इस हिंसा में 50 से अधिक लोग घायल भी हुए। लखनऊ में फैली हिंसा भड़काने में पॉपुलर फ्रंट इंडिया संगठन का नाम सामने आया। इस मामले में यूपी पुलिस ने संगठन के प्रेसिडेंट सहित कई लोगों को गिरफ्तार भी किया।

उप मुख्यमंत्री ने बताया था सिमी का छोटा रूप

यूपी में फैली हिंसा को लेकर यूपी के उपमुख्यमंत्री डॉ. दिनेश शर्मा ने कहा था कि नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ राजधानी लखनऊ सहित प्रदेश के अन्य जिलों में हिंसा भड़काने में पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया का हाथ था। जोकि प्रतिबंधित सिमी का ही एक छोटा रूप है।

असम में भी हिंसा फैलाने का आरोप

उत्तर प्रदेश से पहले असम में भी नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ हिंसा की साजिश रचने के सिलसिले में पीएफआई का नाम सामने आया था। इस मामले में असम के पीएफआई अचीफ अमिनुल हक को गिरफ्तार किया गया था। असम पुलिस ने अमिनुल के करीबी सहयोगी और प्रेस सेक्रेटरी मुजमिल हक को भी गिरफ्तार किया था।

 

बताया जा रहा था कि ये दोनों दिसपुर सचिवालय पर हुए हमले में शामिल थे। गौरतलब है कि असम के वित्त मंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने भी संदेह जताया था कि हिंसा में प्रतिबंधित संगठनों के हाथ होने का शक है।

क्या है पीएफआई

पीएफआई एक उग्र इस्लामी कट्टरपंथी संगठन है। देश में 23 राज्य ऐसे हैं, जहां पीएफआई अपनी गतिविधियां चला रहा है। यह संगठन खुद को न्याय, स्वतंत्रता और सुरक्षा का पैरोकार बताता है। मुस्लिमों के अलावा देश भर के दलितों, आदिवासियों पर होने वाले अत्याचार के लिए आंदोलन करता है।इस संगठन पर सांप्रदायिक माहौल खराब करने के भी आरो लग चुके हैं।

पीएफआई, स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (SIMI) का ही एक रूप हैं। बैन आतंकी संगठन सिमी से जुड़े कई लोग पीएफआई संगठन में पदाधिकारी बने। इसमें पीएफई के नेशनल चेयरमेन रहे अब्दुल रहमान सिमी के पूर्व नेशनल सेक्रेटरी थे।

स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया, नेशनल डेवलपमेंट फ्रंट (NDF), पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI), कर्नाटक फोरम फॉर डिग्निटी (KDF) और कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया (CFI), इन सभी संगठनों के तार एक-दूसरे से जुड़े हैं।

कब बना था पीएफआई?

पीएफआई का गठन 2006 में नेशनल डेवलपमेंट फ्रंट के बाद किया गया था। पीएफआई पर पहले भी कई गैरकानूनी गतिविधियों में शामिल होने के आरोप लग चुके हैं। इस संगठन का एक महिला विंग भी है। फ़िलहाल ये देश के 23 राज्यों में सक्रिय है और इससे 15 से अधिक मुस्लिम संगठन जुड़े हुए, जिनके सदस्यों की संख्या हजारों में है।

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