Sunday - 7 January 2024 - 5:00 AM

किंग जॉर्ज मेडिकल विश्वविद्यालय में ट्रांसप्लांट सर्जरी की शुरुआत

प्रियंका

कई वर्षों तक ब्रेन डेड मरीजों के अंगों के दान से अन्य मरीजों को दूसरे संस्थानों में ऑपरेशन के माध्यम से जीवन दिलाने वाले किंग जॉर्ज मेडिकल विश्वविद्यालय (KGMU) में अब बात अंगदान से आगे बढ़ चुकी है। मेडिकल विश्वविद्यालय ने पहली बार लिवर ट्रांसप्लांट स्वयं किया।

साथ ही कम लागत में यह प्रत्यारोपण कर फिर साबित किया की यह संस्थान आज भी सूबे में स्वस्थ्य जनहित के कार्य करने में ना सिर्फ सक्षम है अपितु सबसे कम दरों पर करने के लिए कटिबद्ध।

किंग जॉर्ज मेडिकल विश्वविद्यालय के सर्जिकल गैस्ट्रोएन्टेरोलॉजी विभाग के मुखिया प्रोफसर अभिजीत चंद्र विगत कई वर्षों से ब्रेन डेड मरीजों के माध्यम से उन मरीजों को जीवन देते आ रहे जिन्हे अंग प्रत्यारोपण की आवश्यकता थी। परन्तु यहाँ सिर्फ अंग निकले जाते थे।

प्रत्यारोपण या तो पीजीआई या दिल्ली के संस्थानों या अस्पतालों में ही संभव होता। तो अंग निकलने के बाद किंग जॉर्ज मेडिकल विश्वविद्यालय की टीम अंग के साथ सड़क मार्ग से एयरपोर्ट तक ‘ग्रीन कॉरिडोर’ बनाकर एयरपोर्ट जाती और वहां से दिल्ली। परन्तु अब यहीं प्रत्यारोपण होने की शुरुआत है गयी। और पहला लिवर प्रत्यारोपण केस एक 50 वर्षीय मरीज पर किया  गया।

किंग जॉर्ज मेडिकल विश्वविद्यालय में एक प्रकार से इतिहास रच गया जब संस्थान में पहली बार लिवर ट्रांसप्लांट सफलतापूर्वक किया गया। क्रॉनिक लिवर सिरोसिस से ग्रस्त मरीज को लिवर उसकी 48 वर्षीय पत्नी ने दिया। प्रातः 5 बजे शुरू हुए इस ऑपरेशन में करीब 14 घंटे लगे। मरीज का लिवर  90 प्रतिशत तक खराब हो चुका था। क्रॉनिक लिवर  डिजीज के कारण लिवर  ट्रांसप्लांट ही विकल्प था।

इस प्रत्यारोपण की दो खास बातें रहीं। पहली की लिवर ट्रांसप्लांट अभी सूबे में सिर्फ पीजीआई में होता है तो इस बात की उम्मीद जगी की प्रदेश में अब दो संसथान इस प्रकार का काम करेंगे। जाहिर है लम्बी वेटिंग लिस्ट में पड़े मरीज जिन्हे बाहर जाकर महंगा इलाज करना पड़ता था उन्हें अब रहत मिलेगी।

साथ ही क्यूंकि किडनी ट्रांसप्लांट लोहिआ संसथान में भी होता है तो प्रदेश में अब तीन संसथान ऐसे होंगे जहाँ ट्रांसप्लांट ऑपरेशन संभव हो गए हैं।

दूसरी बात यह है कि इस ट्रांसप्लांट को केजीएमयू के चिकित्सकों ने महज 7 से 8 लाख रुपये के खर्च में करने का दवा किया जो की अन्य अस्पतालों की तुलना में काम है और प्राइवेट संस्थानों से 10 फीसदी काम खर्च पर जो की इस बात को दर्शाता है की जिनके पास खर्च उठाने की दिक्कत है वे भी इस प्रकार का इलाज करवा सकते हैं।

सर्जन की टीम का टीम का नेतृत्व डॉ अभिजीत चंद्रा ने किया, साथ ही डॉ विवेक गुप्ता, डॉ तूलिका चन्द्रा, डॉ प्रदीप जोशी डॉ मोहम्मद परवेज मोहम्मद परवेज, व कई अन्य डाक्टर और मेडिकल स्टाफ साथ रहे।

डॉ चंद्र की माने तो लगभग 50 मेडिकल स्टाफ ने 5 दिनों तक दिन रात मेहनत की तब जाकर यह संभव हो पाया। उन्होंने  दोनों मरीज वा डोनर टीम की निगरानी में हैं। मरीज का ट्रांसप्लांट होने के बाद अगले एक साल तक निगरानी रहेगी साथ ही दवाएं भी चलेंगी। डॉ चंद्र का कहना है की संसथान अब प्रत्यारोपण कार्यक्रम को आगे बढ़ाएगा।

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