स्पेशल डेस्क
लखनऊ। कहा जाता है सियासत में कुछ भी हो सकता है। इतना ही नहीं राजनीति में न कोई दोस्त है और न ही कोई दुश्मन। इसके पीछे का सच यही है कि सत्ता हासिल करने के लिए राजनीतिक दल कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं। वोट बैंक की राजनीति मौजूदा समय में चरम पर है। चुनावी फायदे के लिए अक्सर राजनीतिक पार्टियां धर्म का चोला ओढ़ लेती है।
यह भी पढ़ें : सीएम योगी को गुस्सा क्यों आता है ?
भारतीय राजनीतिक के इतिहास पर गौर करे तो ऐसे कई उदाहरण मिलेंगे जिससे ये पता चलता है कि राजनीतिक दल विशेष समुदाय का वोट हासिल करने के लिए उनके पक्ष में बयान देते नजर आते हैं। इतना ही नहीं इस दौरान वोट बैंक की खातिर धार्मिक चोला ओढ़कर देश के राजनीतिक दल अपनी भाषा की मर्यादाओं को तार-तार कर देते हैं।
केजरीवाल भी धर्म का चोला ओढऩे से अछूते नहीं रहे
अभी हाल में दिल्ली चुनाव सम्पन्न हुआ है। हिन्दु-मुसलमानों के नाम पर खूब भाषा की मर्यादाओं को ताक पर रखकर वोट मांगे गए है। दिल्ली में केजरीवाल ने तीसरी बार सत्ता हासिल की।
हालांकि केजरीवाल की पार्टी अपने अच्छे कामों के सहारे सत्ता पर काबिज हुई लेकिन केजरीवाल जैसे नेता को भी वोट की खातिर सॉफ्ट हिंदुत्व का सहारा लेना पड़ा। इसके आलावा दूसरे पक्ष के समर्थन की आड़ में डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया ने कहा था कि मैं शाहीन बाग के लोगों के साथ हूं।
चुनाव जीतने के बाद दिल्ली के ग्रेटर कैलाश से आम आदमी पार्टी के विधायक सौरभ भारद्वाज ने ट्विटर पर लिखा, हर महीने के पहले मंगलवार को सुंदर कांड का पाठ अलग-अलग इलाकों में किया जाएगा।
यह भी पढ़ें : पुलिसवालों में क्यों बढ़ रही आत्महत्या की प्रवृत्ति?
ऐसे में अन्य राजनीतिक दलों के चेहरे पर चिंता की लकीर देखी जा सकती है, क्योंकि अन्य दल खासकर बीजेपी हिंदुत्व के सहारे चुनावी दंगल जीतने का भरोसा रखती है।
बीजेपी का धार्मिक चोला भी किसी से छुपा नहीं
अगर थोड़ा पीछे जाएगे तो बीजेपी का धार्मिक चोला भी किसी से छुपा नहीं है। साल 2014 में चुनाव जीतने के लिए कट्टर हिंदुत्व को खूब भुनाया गया था लेकिन दूसरी पार्टियों ने सॉफ्ट हिंदुत्व का सहारा लेने से परहेज नहीं किया। इस लिस्ट में भले ही केजरीवाल का नया नाम हो लेकिन इसमें राहुल गांधी से लेकर सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव तक शामिल रहे हैं।
यह भी पढ़ें : डोनाल्ड ट्रंप ने मोदी को दिखाया ठेंगा
कांग्रेस ने बदला है अपना ट्रैक
बात अगर कांग्रेस की जाये तो उसने हाल के दिनों में अपना ट्रैक जरूर बदला है। राहुल गांधी ने सॉफ्ट हिंदुत्व के सहारे वोट बैंक बढ़ाने में जोर लगाया। इसी के तहत गुजरात विधानसभा चुनाव में राहुल गांधी का एकाएक हिंदुत्व प्रेम जाग उठा और एक के बाद एक कई मंदिरों में जाकर अपनी हाजरी लगायी।
राहुल यहीं नहीं रूके उन्होंने कैलाश मानसरोवर जाकर शिवभक्त होने का दावा भी किया। सॉफ्ट हिंदुत्व के बल पर कांग्रेस ने मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान चुनावी जंग जीत ली।
राहुल गांधी की तरह प्रियंका गांधी ने भी सॉफ्ट हिंदुत्व का सहारा लिया है। इसी के तहत उन्होंने गंगा में नाव पर सवार होकर संगम से काशी तक का सफर तय करके विरोधियों को एक अलग संदेश दिया है। इसके साथ ही प्रियंका ने प्रयागराज, चित्रकूट से लेकर काशी सहित तमाम मंदिरों में जाकर अपना हिंदुत्व प्रेम जाहिर किया है।
मुस्लिम छवि से बाहर निकलने के लिए सपा ने बदला रूख
यूपी में अगर अखिलेश यादव की बात की जाये तो वो भले ही बीजेपी पर धर्म की राजनीति करने का आरोप लगाते हो लेकिन वो भी धर्म की सियासत करने से बाज नहीं आते हैं।
उन्होंने कई मौकों पर मुस्लिम छवि से बाहर निकालने की कोशिश की है। 2017 में उत्तर प्रदेश की सत्ता से बेदखल होने के बाद से अपनी छवि में बदलाव लाते हुए अपने आपको कृष्ण भक्त के रूप में जनता के सामने पेश किया था।
इतना ही नहीं अखिलेश ने सैफई में भगवान श्री कृष्ण की 51 फीट ऊंची प्रतिमा लगवाकर वोट बैंक की सियासत को हवा दी है।
सूबे के बाराबंकी स्थित एक शिवालय में उन्होंने विशेष पूजा-अर्चना की थी। अखिलेश ने बाबा शिव के जलाभिषेक से लेकर उनका श्रृंगार तक किया था, इसके साथ ही अखिलेश ने एक विशेष वर्ग को संदेश देने की कोशिश की ।
कुल मिलाकर देश के राजनीतिक दल अपने कामों से वोट हासिल न करके धार्मिक आस्था का सहारा लेकर वोट हासिल करना चाहते हैं। अब देखना होगा देश की जनता आखिर कब इन चीजों को समझती है