Friday - 12 January 2024 - 6:07 PM

घुसपैठ कर चुका है छात्र राजनीति में कलुषित मानसिकता का दावानल

डा. रवीन्द्र अरजरिया

भारत गणराज्य को टुकडों-टुकडों में विभक्त करने का मंसूबा पालने वाले कन्हैया कुमार को भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी ने न केवल बेगूसराय से लोकसभा की चुनावी जंग में उतारा बल्कि अपने सिद्धान्तों से भी समझौता करते हुए पहली बार क्राउड फंडिग को धन संग्रह का हथियार भी बना लिया।

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्रसंघ अध्यक्ष पद पर सन 2015 में चयनित होने के बाद कन्हैया कुमार का नाम संसद पर हमले के दोषी अफजल गुरू की फांसी की बरसी पर आयोजित किये गये कार्यक्रम और उसमें लगाये गये देश विरोधी नारों के कारण चर्चाओं में आया था। विगत 9 फरवरी 2016 को हुये इस राष्ट्रविरोधी कार्यक्रम के समर्थन में कांग्रेस के राहुल गांधी सहित अनेक राजनैतिक दलों, कथित बुद्धिजीवियों और विचारकों ने कन्हैया कुमार के पक्ष में भागीदारी दर्ज की थी।

कन्हैया कुमार के नेतृत्व में आयोजित हुए इस बरसी कार्यक्रम और उसे जायज ठहराने वालों के सामने आते ही उनकी वास्तविकता उजागर हो गई। कन्हैया कुमार को उमर खालिद सहित अनेक कलषित मानसिकता वालों ने खुलकर साथ दिया था। अब यही टुकडे-टुकडे गैंग चुनावी दंगल में कूद कर संविधानिक व्यवस्था को एक बार फिर तार-तार करने का लक्ष्य साध रही है।

सिद्धान्तों, आदर्शों और नीतियों को दरकिनार करते हुए भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी पूरी तरह से ‘चुनाव और जंग में सब कुछ जायज हैÓ की तर्ज पर काम करती दिख रही है। इतना ही नहीं कन्हैया कुमार ने तो पार्टी की लाइन से भी दो कदम आगे बढकर अपनी मर्जी से मधेपुर सीट पर जन अधिकार पार्टी (लोकतांत्रिक) के पप्पू यादव को अपना समर्थन देने तक की घोषणा कर दी।

चुनाव आचार संहिता को जानबूझकर तार-तार करते हुए उन्होंने बिना अनुमति के आम सभा करके अपनी मनमानियों की बानगी पेश कर दी। छात्र राजनीति में राष्ट्र विरोधी क्रियाकलापों से सुर्खियों में आये कन्हैया कुमार ने जिस तरह से लोकसभा चुनावों में उम्मीदवारी दर्ज की है, उससे शिक्षा के मंदिरों के वातावरण पर भी अनेक प्रश्नचिन्ह अंकित होने लगे।

विचारों को गति देने की गरज से मस्तिष्क किसी अनुभवी हस्ताक्षर को खोजने लगा।  जेहन पर लखनऊ विश्वविद्यालय की छात्र राजनीति से राजनैतिक समीक्षक तक का सफर तय करने वाले गंगाचरण राजपूत का चेहर उभर आया। तत्काल उन्हें फोन लगाया। फोन पर निर्धारित किया गया आमने-सामने की मुलाकात का समय और स्थान।

प्रत्यक्ष मुलाकात होते ही लखनऊ विश्वविद्यालय की यादें ताजा हो उठीं। वे बटलर हॉस्टल में और हम हबीबुल्लाह हॉस्टल में रहते थे। छात्र राजनीति में हम सब मिलकर रचनात्मक आंदोलनों को गति देते थे।  उस समय ब्रजेश पाठक, रामवार सिंह, समरपाल सिंह, हरिश्चन्द्र, राकेश सिंह राना सहित अनेक साथियों ने एक साथ मिलकर व्यक्तिगत विचारों से परे हमेशा ही छात्रहितों-राष्ट्र हितों के लिए काम किये थे।

यादों का दायरा बढता देखकर हमने उन्हें वर्तमान की उपस्थिति का भान कराते हुए अपने विचारों से अवगत कराया। प्ले स्कूलों से लेकर विश्वविद्यालयों तक की शिक्षा पद्धति को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि चिन्ताजनक है ज्ञान के मंदिरों में उगने वाली राष्ट्रविरोधी फसलें। विश्वविद्यालयों को कुछ राजनैतिक दलों ने अपनी विचारधाराओं को पोषण करने वाली संस्थाओं के रूप में परिवर्तित करके रख दिया है।

पहले वरिष्ठ छात्रों को सब्जबाग दिखाकर लालच के मोहपाश में बांधा जाता है, फिर इन्हीं मास्टर ट्रेनरों को फंडिंग करके नवागन्तु छात्रों को अपनी जमात में शामिल करने का सिलसिला संचालित होता है। कन्हैया कुमार जैसे अनेक राष्ट्रद्रोही लोग विश्वविद्यालयों में विद्यार्थी बनकर अपने आकाओं के इशारों पर काम कर रहे हैं।

सीमापार की कम्युनिष्ट मानसिकता के घातक स्वरूप को देश के ही जयचन्दों की जमात न केवल हवा दे रही है बल्कि उसे अलगावादियों द्वारा लगाई जा रही चिंगारियों के साथ भी आत्मसात कर रही है। कम्युनिष्ट विचारधारा में घर-घर जाकर वोट और नोट मांगने की परम्परा रही है।
पूंजीवाद से परहेज करने वाली वामपंथी पार्टी ने पहली बार बिहार के बेगूसराय में पूंजीवादी मानसिकता को अंगीकार करते हुए धन संग्रह हेतु क्राउड फंडिंग का फंडा अपनाया है।

कन्हैया कुमार ने मात्र तीन दिन में तीस लाख रुपये की धनराशि एकत्रित कर ली। आनलाइन अनुदान स्वीकार करने वाली बेब साइड पर पर्दे के पीछे से धन की वर्षा हो रही है। भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी के इस उम्मीदवार को मिलने वाले अनुदान की गहन जांच करने पर बहुत सारे आश्चर्यजनक तथ्य सामने आयेंगे।

घुसपैठ कर चुका है छात्र राजनीति में कलुषित मानसिकता का दावानल। इसे समाप्त किये बिना आने वाली पीढियों में राष्ट्र भक्ति के संस्कार पैदा करना असम्भव नहीं तो कठिन अवश्य है। चेहरे पर कठोरता के भाव, शब्दों में तीखापन और भाव-भंगिमा के उभरे आक्रोश ने उनकी मन:स्थिति की स्पष्ट समीक्षा कर दी थी।

चर्चा चल ही रही थी कि तभी उनके नौकर ने कमरे में प्रवेश करके सोफे के सामने रख़ी टेबिल पर शीतपेय के साथ स्वल्पाहार की प्लेटें सजाना शुरू कर दीं। व्यवधान उत्पन्न हुआ परन्तु तब तक वर्तमान में चल रही छात्र राजनीति के बहाने राजनैतिक दलों की स्वर्थपरितापूर्ण नीतियां सामने आ चुकी थी। सो इस विषय पर भविष्य में लम्बे विचार विमर्श का आश्वासन लेकर हमने परोसे गये भोज्य पदार्थों का सम्मान करना शुरू कर दिया। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नये मुद्दे के साथ फिर मुलाकात होगी। तब तक के लिए खुदा हाफिज।

Radio_Prabhat
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