Thursday - 11 January 2024 - 5:22 PM

जापान को कुशिमा त्रासदी से निपटने पर खर्च करेने होंगे 146 बिलियन अमेरिकी डॉलर

डा सीमा जावेद

जापानी सरकार का वर्तमान में अनुमान है कि फ्यूकोशिमा परमाणु ऊर्जा संयंत्र की तबाही से निपटने की लागत लगभग 21.5 ट्रिलियन जापानी येन (लगभग 146 बिलियन अमेरिकी डॉलर) होगी ।जापान के बोर्ड ऑफ ऑडिट के सूत्रों के अनुसार, फ्यूकोशिमा नंबर 1 परमाणु ऊर्जा संयंत्र में 2011 की त्रासदी से निपटने के लिए लगभग 12.1 ट्रिलियन येन (82 बिलियन डॉलर) पहले ही खर्च किए जा चुके हैं।

कुल मिलकर 226 बिलियन अमेरिकी डॉलर लगभग 258,000 मेगावाट की सोलर / सौर पीवी क्षमता के निर्माण की लागत के बराबर है – जो जापान की वर्तमान स्थापित बिजली क्षमता (313,000 मेगावाट) के 82% के बराबर है। इतने ही पैसों से 177,400 मेगावाट ऑनशोर विंड कैपेसिटी या 65,300 मेगावाट ऑफशोर विंड कैपेसिटी का निर्माण हो सकता है। जिससे किसी क़िस्म का कोई ख़तरा नहीं होगा।

ग़ौरतलब है कि पिछले 11 साल से फुकुशिमा और उसके आसपास रहने वाले लोगों को सामान्‍य जीवन की झलक भी वापस पाने के लिये बेहद संघर्ष करना पड़ रहा है।

रेडियोधर्मी विकर्ण के प्रभावों के चलते अनेक इलाकों के हालात अब भी वहां लोगों को रहने की इजाज़त नहीं देते। इस कारण अपना घर छोड़ने को मजबूर हुए 140000 लोग अधर में लटके हैं।

वे ना तो अपने घर वापस जा सकते हैं और ना ही समुचित मुआवजे और सहयोग के अभाव के कारण अपनी जिन्‍दगी को दोबारा पटरी पर ला सकते हैं। दरअसल तो परमाणु आपदा से निपटने के लिये किसी भी तरह की तैयारी पर्याप्‍त नहीं होती है। यहां तक कि जापान जैसा विकसित देश भी इससे निपटने के लिये संघर्ष कर रहा है।

इसका मतलब है कि मेल्ट डाउन होने के बाद से 11 वर्षों में, मुआवजे के भुगतान और रिएक्टर डी कमीशनिंग के खर्चों सहित सरकार द्वारा 21.5 ट्रिलियन येन की कुल अनुमानित लागत में से आधे से अधिक का उपयोग किया गया है।

फिर भी न्यूक्लियर डीकमीशनिंग प्रोसेस अच्छी तरह से सुचारू रूप से नहीं चल रही है, और डर है कि संयंत्र से निकालने वाला ट्रीटेड रेडियोधर्मी पानी को समुद्र में छोड़ने की योजना आपदा प्रभावित क्षेत्रों की को नुकसान पहुंचा सकती है।

छह बायलिंग वाटर रियेक्टर वाले फुकुशिमा नाभिकीय उद्यान में कुल मिलाकर 4600 मेगावाट बिजली उत्पादन करने की क्षमता है। फुकुशिमा की परमाणु त्रासदी से करीब 250 अरब डॉलर का नुक़सान हुआ है और इसके लिए जिम्‍मेदार टेप्‍को (टीईपीसीओ) दुनिया की सबसे बड़ी ऊर्जा इकाइयों में शुमार की जाती है, फिर भी वह इस नुक़सान के बोझ से बच रही है।

ज्ञात हो कि टोक्यो इलेक्ट्रिक पावर कंपनी (टेप्को) के मालिकों पर 2011 पर सुनामी के कारण हुए मेल्टडाउन को लेकर शेयरधारकों ने मुकदमा दायर किया था।जिसमें टेप्को के मालिकों पर परमाणु दुर्घटना को रोकने में विफल रहने के लिए शेयरधारकों द्वारा 13 ट्रिलियन जापानी येन यानी लगभग 80 बिलियन अमेरिकी डॉलर का मोआवज़ा माँगा। अदालत ने निर्णय दिया कि यदि अधिकारियों ने उचित सावधानी बरती होती तो दुर्घटना को रोका जा सकता था और उनको भुगतान करने का आदेश भी दिया। लेकिन मोवज़े की जगह टेप्को ने केवल अपनी गलती के लिए अदालत से माफी मांगी और इस बारे में कोई टिप्पणी करने से इनकार किया है ।

दरअसल, नाभिकीय ऊर्जा न केवल ऊर्जा उत्पादन का सबसे विवादास्पद और खतरनाक रूप है बल्कि यह सबसे खर्चीले स्वरूपों में से एक भी है। किसी शहर के परमाणु परिशोषण की समस्या काफी जटिल होती है, क्योंकि इसमें कई और चीजें भी जुड़ी होती है। परमाणु ऊर्जा संयंत्रों की सुरक्षा एक महत्वपूर्ण चिंता का विषय है, मुख्य रूप से परमाणु दुर्घटनाओं के विनाशकारी परिणामों के कारण।

चेरनोबिल और फुकुशिमा में हुई दुर्घटनाएँ अभी भी ताज़ा हैं। भले ही परमाणु सुरक्षा में सुधार हुआ है, लेकिन इंसानी ग़लतियों , प्राकृतिक आपदाओं, या परमाणु दुर्घटनाओं की ओर ले जाने वाली अन्य घटनाओं की संभावना को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।

फुकुशिमा त्रासदी इस बात का जीता जागता उदाहरण है कि नाभिकीय तकनीक पर बहस सिर्फ अर्थशास्त्र से जुडे पहलुओं तक सीमित नहीं होनी चाहिए, बल्कि मानवीय व पर्यावरणीय कीमत से जुडे पहलुओं और समाज पर हो रहे दुष्प्रभावों पर भी गौर करने की ज़रूरत है।

साथ ही देशों के लिए परमाणु दायित्व एक महत्वपूर्ण बाधा है। परमाणु दुर्घटना की स्थिति में जवाबदेही का सवाल उठता है। यह मुद्दा जैतापुर, महाराष्ट्र में यूरोपीय दाबित (pressurized) रिएक्टर स्थापित करने के लिए फ्रांस के साथ भारत के सौदे के लिए एक चर्चा का विषय रहा। संभावित देयता लागत बहुत अधिक हो सकती है, जिससे कई देशों के लिए परमाणु ऊर्जा एक महंगा प्रस्ताव बन जाता है।

परमाणु ऊर्जा संयंत्रों से निकला हुआ ईंधन अत्यधिक रेडियोधर्मी होता है और महत्वपूर्ण स्वास्थ्य जोखिम पैदा कर सकता है। परमाणु कचरे का निपटान और भंडारण। यूरेनियम हानिकारक उप-परमाणु द्रव्यमानों में विघटित हो जाता है। विकिरण का आकस्मिक रिसाव और बड़े पैमाने पर दुर्घटनाएँ विनाशकारी हो सकती हैं।

आज भी परमाणु कचरे का निपटान एक विवादास्पद मुद्दा है, जिसका अभी तक कोई संतोषजनक समाधान नहीं मिला है। हालाँकि परमाणु ऊर्जा से जुड़ी सुरक्षा, लागत और कचरे के बारे में चिंताएं हैं, फिर भी यह एनर्जी के एक निम्न-कार्बन स्रोत के रूप में देखा जाता है।

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